मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की 2019 की पूरी परीक्षा को निरस्त करने का फैसला गलत था. यह पूरी तरह से औचित्यहीन;मध्यप्रदेश हाईकोर्ट नेअब नये तरीके से परीक्षा कराने को कहा attacknews.in

जबलपुर 15 दिसम्बर।मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पीएससी 2019 की परीक्षा से जुड़े मामले में बड़ा फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MP PSC EXAM 2019) की 2019 की पूरी परीक्षा को निरस्त करने का फैसला गलत था. यह पूरी तरह से औचित्यहीन है.


हाईकोर्ट ने एमपी पीएससी से कहा है कि परीक्षा में आरक्षित वर्ग के उन उम्मीदवारों के लिए विशेष मुख्य परीक्षा आयोजित करें, जिन्होंने अनारक्षित वर्ग के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं.

6 माह के भीतर पूरी करें परीक्षा और साक्षात्कार की प्रक्रिया

एमपी हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया है कि भर्ती नियम 2015 से मुख्य और विशेष मुख्य परीक्षा के परिणाम के आधार पर इन उम्मीदवारों के साक्षात्कार के लिए नई सूची तैयार करें.

हाईकोर्ट ने पीएससी को कहा कि इसके लिए वही प्रक्रिया अपनाएं जो कि पूर्व की परीक्षाओं में अपनाई गई है.

हाईकोर्ट की जस्टिस नंदिता दुबे की एकलपीठ ने निर्देश दिए कि विशेष मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार की पूरी प्रक्रिया 6 माह के भीतर पूरी करें.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने पीएससी के 7 अप्रैल 2022 को दिए उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत पीएससी 2019 की मुख्य परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर नए सिरे से परीक्षा कराने कहा था.

कोर्ट के इस फैसले से अनारक्षित वर्ग के सैकड़ों छात्रों को राहत मिली है.

हाईकोर्ट ने याची की अपील को माना सही

बता दें कि जबलपुर निवासी हर्षित जैन, सागर निवासी जय प्रताप भदौरिया समेत, उमरिया, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, पन्ना और प्रदेश के अन्य जिलों के 102 उम्मीदवारों ने याचिका दायर कर पीएससी के फैसले को गैर कानूनी करार दिया था।

याचिकाकर्ताओं की अपील पर हाईकोर्ट ने पीएससी परीक्षा 2019 के प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के परिणाम निरस्त कर दिए थे.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने दलील दी थी कि पीएससी के उक्त आदेश से हजारों उम्मीदवारों का भविष्य खतरे पड़ गया है.

उन्होंने बताया कि जिन अभ्यर्थियों ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार के लिए तैयारी की है,अब उन्हें फिर से परीक्षा देनी होगी, जो कि पूरी तरह अनुचित है.

याची ने कोर्ट से मांग की थी कि 2019 की परीक्षा के बाद पूरी चयन प्रक्रिया निरस्त करने की बजाय, कुछ उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित की जाए.

पूरी परीक्षा को रद्द करना जरूरी नहीं

याचिकाकर्ताओं की इस अपील पर हाईकोर्ट ने कहा कि नए सिरे से मुख्य परीक्षा आयोजित करने से बड़े स्तर पर आर्थिक और सार्वजनिक तौर पर नुकसान होगा. इससे बिना कोई गलती के उन उम्मीदवारों के एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय होगा जो मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण कर साक्षात्कार के लिए चयनित हुए हैं. यानि पूरी परीक्षा को निरस्त करना सही नहीं होगा.

हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद सिंह व विनायक प्रसाद शाह ने बताया कि पूर्व में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया था कि आरक्षित वर्ग के उन उममीदवारों को सामान्य श्रेणी में स्थान मिलना चाहिए जिनके अंक कट-ऑफ से ज्यादा आए हैं.

उन्होंने कहा कि एकलपीठ का फैसला संविधान के प्रावधानों पर प्रश्नचिन्ह है, इसलिए इस फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच के समक्ष अपील दायर की जाएगी.

बता दें कि इससे पहले भी परीक्षा के आयोजन में अनियमितताओं की वजह से साल 2011, 2013 व 2015 में कोर्ट से परीक्षा की पात्रता पाये उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित हुईं थी.

भारत के chief justice of India डीवाई चंद्रचूड़ शुरुआती दिनों में रेडियो जॉकी के तौर पर करते थे मूनलाइटिंग attacknews.in

आज Moonlighting पर चली जाती है नौकरी, कभी CJI चंद्रचूड़ भी यही करते थे


नईदिल्ली 5 दिसम्बर ।भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुलासा किया कि वह ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में एक रेडियो जॉकी के तौर मूनलाइटिंग कर चुके हैं।

सीजेआई ने शनिवार (3 दिसंबर, 2022) को इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च, गोवा के पहले शैक्षणिक सत्र का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने ‘प्ले इट कूल, ए डेट विद यू और संडे रिक्वेस्ट’ जैसे कार्यक्रमों को भी होस्ट किया था।

डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “बहुत से लोग इस बारे में नहीं जानते हैं कि मैं अपने शुरुआती दिनों (20वें दशक) में रेडियो जॉकी के तौर पर मूनलाइटिंग भी करता था। संगीत के लिए मेरा प्यार आज भी कायम है। कानून के क्षेत्र में संगीत सुनना मुश्किल होता है। इसलिए जब भी मैं अपने काम से फ्री होकर घर जाता हूँ, तो संगीत का आनंद जरूर लेता हूँ।”

उनकी वीडियो क्लिप को बार एंड बेंच ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है। इस कार्यक्रम में उन्होंने 20 के दशक की शुरुआत में अपने जीवन, कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) के अलावा कई और मुद्दों पर भी चर्चा की।

उन्होंने कहा कि शायद नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के सामने एक समस्या यह थी कि वे कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) को क्रैक करने के लिए छात्रों की क्षमता को जाँचते हैं। उनके अनुसार, जरूरी नहीं है कि जिन छात्रों ने सीएलएटी (CLAT) क्रैक कर लिया हो, वे कानून की पढ़ाई के लिए सही सोच रखते हों।

क्या है मूनलाइटिंग?

मूनलाइटिंग (Moonlighting), यानि एक समय में एक से अधिक कंपनी के लिए काम करना। विप्रो के चेयरमैन ऋषद प्रेमजी  ने इसको लेकर सितंबर 2022 में ट्वीट किया था।

उन्होंने ‘मूनलाइटिंग’ की तुलना धोखाधड़ी से करते हुए अपने ट्वीट में लिखा था, “तकनीक उद्योग में मूनलाइटिंग करने वाले लोगों के बारे में बहुत सारी बकवास है। सादा और सरल भाषा में यह धोखा है।”

वहीं, ऋषद प्रेमजी से उलट ‘टेक महिंद्रा’ के सीईओ सीपी गुरनानी ने ‘मूनलाइटिंग (Moonlighting)’ का समर्थन करते हुए लिखा था, “समय के साथ बदलते रहने के लिए मूनलाइटिंग जरूरी है।”

पंजाब में जनता को शराब की लत्त लगाने वाली आप पार्टी की सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार “34,000 FIR, मुकदमा किसी पर नहीं” पंजाब में अवैध शराब बिक्री पर SC- सरकार सिर्फ FIR करती है, कार्रवाई नहीं attacknews.in

नईदिल्ली 5 दिसम्बर ।सुप्रीम कोर्ट ने बड़े पैमाने पर अवैध शराब के निर्माण और बिक्री को लेकर आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार को फटकार लगाई है।


कोर्ट ने कहा कि राज्य में ड्रग्स और शराब की समस्या एक गंभीर मुद्दा है। पंजाब सरकार ऐसे मामलों में केवल एफआईआर दर्ज कर रही है और आगे की कार्रवाई नहीं कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से अवैध शराब बनाने के खतरे को रोकने के लिए उठाए गए विशिष्ट कदमों की सूची बनाने के लिए भी कहा।

कोर्ट ने चिंता जताते हुए यह भी कहा कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और अगर कोई देश को खत्म करना चाहता है, तो वह सीमाओं से ही शुरुआत करेगा।

पंजाब सरकार से सवाल करते हुए कोर्ट ने जब्त किए गए पैसे के इस्तेमाल की जानकारी माँगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को इस पैसे का इस्तेमाल नशा विरोधी अभियानों के लिए करना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अब तक 2 सालों में 34000 से ज्यादा एफआईआर हो चुकी है, लेकिन किसी पर मुकदमा नहीं हुआ है।

पंजाब सरकार की ओर से जवाब देते हुए एएसजी ने कहा कि चीजें आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है और आगे कार्रवाई भी होगी।

वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने भी भगवंत मान सरकार पर इस मुद्दे को लेकर निशाना साधा है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ”नशीले पदार्थों और शराब की बढ़ती समस्या के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आप की अगुवाई वाली पंजाब सरकार को फटकार लगाई है। आप ने पंजाब और दिल्ली को नशामुक्त के बजाय नशायुक्त बना दिया है। नशा माफिया को खुली छूट दी गई है। उनके साथ संभवतः दिल्ली की तरह ही सौदा किया गया है। आप पंजाब के युवाओं को बर्बाद कर रही है।”

इसके साथ ही ट्वीट के साथ उन्होंने एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिसमे उन्होंने कहा, ”आज सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नशा, अवैध ड्रग्स फटकार लगाई है। आम आदमी पार्टी की सरकार जब से पंजाब में आई है, ड्रग्स से संबंधित मामलों में 168 लोगों की मौत हुई है। कई तरह के युवाओं के वीडियो सामने आ रहे हैं, जिसमें वह ड्रग्स की वजह से पैरों पर खड़े नहीं हो पाते। आम आदमी पार्टी ने कहा था कि एक महीने में शराब माफियाओं को समाप्त कर देंगे, लेकिन इन्होंने शराब माफियाओं को खुली छूट दी है, जिस वजह से घर-घर साफ़ पानी तो नहीं पहुँचा है बल्कि मोहल्ले-मोहल्ले नशा जरुर पहुँच चुका है।

उन्होंने आगे कहा, ”वहीं जब पुलिस इनसब पर कार्रवाई करती है तो आप के कार्यकर्ता पुलिस के सामने खड़े हो जाते हैं। आज आम आदमी पार्टी के तहत राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। आज आप को सुप्रीम कोर्ट से जो फटकार मिली है, वह दिखाता है कि पार्टी ने दिल्ली और पंजाब को नशा मुक्त बनाने के बदले नशा युक्त बना दिया है।”

उज्जैन में सामूहिक बलात्कार करने वाले तीसरे आरोपी को देरी से गिरफ्तारी के बाद अब दी गई 20 वर्ष कठोर कारावास की सजा attacknews.in

उज्जैन 24 नवम्बर ।न्यायालय श्रीअम्बुज पाण्डेय, अपर सत्र न्यायाधीश , जिला उज्जैन के न्यायालय द्वारा आरोपी सुनील पिता भैरूलाल, उम्र-42 वर्ष निवासी-उज्जैन को धारा 376(घ) भादवि में आरोपी को 20 वर्ष के कठोर कारावास एवं 2,000/- रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया।

उप-संचालक अभियोजन डॉ0 साकेत व्यास ने अभियोजन घटना अनुसार बताया कि, घटना इस प्रकार है कि, पीड़िता ने पुलिस थाने पर उपस्थित होकर प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध कराई कि मैं दिनांक 27.12.2013 को सुबह ट्रेन से उज्जैन आई थी। उज्जैन रेल्वे स्टेशन के पास मुझे तीन व्यक्ति मिले। उन व्यक्ति में से एक ने मुझसे शादी करने का कहा और मुझे उज्जैन रेल्वे स्टेशन के पुल के पास ले गये। मैंने उक्त तीनों व्यक्ति ने नाम पता पूछा तो एक ने प्रेम, सुनील तथा राजू उर्फ रईस होना बताया। तीनों ने मुझे दारू पिलाई तथा तीनो ने मेरे साथ दुष्कर्म किया। मेरे द्वारा चिल्लाने पर मुझे जान से खत्म कर देने की धमकी दी। मेरे चिल्लाने की आवाज सुनकर आस-पास के लोग वहॉ पर इकट्ठा हो गये तथा रईस को पकड़ लिया और प्रेम तथा सुनील वहॉ से भाग गये।

पीड़िता की रिपोर्ट पर पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध की गई तथा राजू उर्फ रईस तथा प्रेम को गिरफ्तार किया गया व आवश्यक अनुसंधान पश्चात् न्यायालय में अभियोग पत्र पेश किया गया था।

अभियोग पत्र प्रस्तुत करते समय आरोपी सुनिल फरार था, जिसे दिनांक 04.07.2020 को गिरफ्तार किया गया।

नोटः- पूर्व में दिनंाक 14.05.2015 के निर्णय में अभियुक्त प्रेम को दोषमुक्त किया गया तथा राजू उर्फ रईस को 20 वर्ष के कठोर कारावास से दण्डित किया गया था।

दण्ड का प्रश्न:- अभियुक्त सुनील द्वारा निवेदन किया गया है कि यह मेरा प्रथम अपराध है इसलिये न्यूनतम सजा देने का निवेदन किया गया। अभियोजन अधिकारी द्वारा कठोर दण्ड देने का निवेदन किय गया।

टिप्पणीः-अभियुक्त के द्वारा जिस प्रकार एक बाहर से आई महिला की स्थिति का लाभ लेते हुये सामूहिक बलात्कार कर घृणित कृत्य किया है, उसके लिये वह उदारता का पात्र नही है।

प्रकरण में शासन की ओर से पैरवी श्री रविन्द्र सिंह कुशवाह, ए0जी0पी0 उज्जैन द्वारा की गई।

मुस्लिम निकाह एक अनुबंध है जिसके कई अर्थ हैं और यह हिंदू विवाह की तरह संस्कार नहीं है: कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला- मुस्लिम पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है attacknews.in

बेंगलुरु, 20 अक्टूबर । कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम निकाह एक अनुबंध है, जिसके कई अर्थ हैं, यह हिंदू विवाह की तरह कोई संस्कार नहीं और इसके विघटन से उत्पन्न कुछ अधिकारों एवं दायित्वों से पीछे नहीं हटा जा सकता।

यह मामला बेंगलुरु के भुवनेश्वरी नगर में एजाजुर रहमान (52) की एक याचिका से संबंधित है, जिसमें 12 अगस्त, 2011 को बेंगलुरु में एक पारिवारिक अदालत के प्रथम अतिरिक्त प्रिंसिपल न्यायाधीश का आदेश रद्द करने का अनुरोध किया गया था। रहमान ने अपनी पत्नी सायरा बानो को पांच हजार रुपए के ‘मेहर’ के साथ विवाह करने के कुछ महीने बाद ही ‘तलाक’ शब्द कहकर 25 नवंबर, 1991 को तलाक दे दिया था।

इस तलाक के बाद रहमान ने दूसरी शादी की, जिससे वह एक बच्चे का पिता बन गया। बानो ने इसके बाद गुजारा भत्ता लेने के लिए 24 अगस्त, 2002 में एक दीवानी मुकदमा दाखिल किया था।

पारिवारिक अदालत ने आदेश दिया था कि वादी वाद की तारीख से अपनी मृत्यु तक या अपना पुनर्विवाह होने तक या प्रतिवादी की मृत्यु तक 3,000 रुपये की दर से मासिक गुजारा भत्ते की हकदार है।

न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने 25,000 रुपए के जुर्माने के साथ याचिका खारिज करते हुए सात अक्टूबर को अपने आदेश में कहा, ‘‘निकाह एक अनुबंध है जिसके कई अर्थ हैं, यह हिंदू विवाह की तरह एक संस्कार नहीं है। यह बात सत्य है।’’

न्यायमूर्ति दीक्षित ने विस्तार से कहा कि मुस्लिम निकाह कोई संस्कार नहीं है और यह इसके समाप्त होने के बाद पैदा हुए कुछ दायित्वों एवं अधिकारों से भाग नहीं सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘तलाक के जरिए विवाह बंधन टूट जाने के बाद भी दरअसल पक्षकारों के सभी दायित्वों एवं कर्तव्य पूरी तरह समाप्त नहीं होते हैं।’’

उसने कहा कि मुसलमानों में एक अनुबंध के साथ निकाह होता है और यह अंतत: वह स्थिति प्राप्त कर लेता है, जो आमतौर पर अन्य समुदायों में होती है।

अदालत ने कहा, ‘‘यही स्थिति कुछ न्यायोचित दायित्वों को जन्म देती है। वे अनुबंध से पैदा हुए दायित्व हैं।’’

अदालत ने कहा कि कानून के तहत नए दायित्व भी उत्पन्न हो सकते हैं। उनमें से एक दायित्व व्यक्ति का अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने का परिस्थितिजन्य कर्तव्य है जो तलाक के कारण अपना भरण-पोषण करने में अक्षम हो गई है।

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कुरान में सूरह अल बकराह की आयतों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी बेसहारा पूर्व पत्नी को गुजारा-भत्ता देना एक सच्चे मुसलमान का नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है।

अदालत ने कहा कि एक मुस्लिम पूर्व पत्नी को कुछ शर्तें पूरी करने की स्थिति में गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है और यह निर्विवाद है।

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा कि ‘मेहर’ अपर्याप्त रूप से तय किया गया है और वधु पक्ष के पास सौदेबाजी की समान शक्ति नहीं होती।

न्यायमूर्ति नागरत्ना सितंबर 2027 में होगी भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), आज बनी सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस,नौ नए न्यायाधीश नियुक्त attacknews.in

नयी दिल्ली, 26 अगस्त । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नियुक्ति पत्रों पर हस्ताक्षर करने के साथ ही उच्चतम न्यायालय में तीन महिलाओं समेत नौ नए न्यायाधीशों की बृहस्पतिवार को नियुक्ति हुई।

सरकार के सूत्रों ने बताया कि इस संबंध में जल्द ही एक औपचारिक अधिसूचना जारी की जाएगी।

शीर्ष अदालत के नए न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी एस नरसिम्हा शामिल हैं। न्यायमूर्ति नागरत्ना को सितंबर 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किए जाने की संभावना है।

इनके अलावा न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार माहेश्वरी भी उच्चतम न्यायालय में नियुक्त किए गए न्यायाधीशों में शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट का आईटी अधिनियम की रद्द धारा 66ए में मुकदमे दर्ज करने पर राज्यों को नोटिस,इस धारा में भड़काऊ सामग्री ऑनलाइन पोस्ट करने पर जेल और जुर्माने का प्रावधान attacknews.in

नयी दिल्ली, दो अगस्त । उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक गैर सरकारी संगठन के उस आवेदन पर राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किये जिसमें कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की रद्द हो चुकी धारा 66ए के तहत अब भी लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 2015 में एक फैसले में इस धारा को रद्द कर दिया था।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि चूंकि पुलिस राज्य का विषय है, इसलिए यह बेहतर होगा कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को पक्षकार बनाया जाए तथा “हम एक समग्र आदेश जारी कर सकते हैं जिससे यह मामला हमेशा के लिये सुलझ जाए।”

पीठ ने अपने आदेश में कहा, “क्योंकि यह मामला पुलिस और न्यायपालिका से संबंधित है, हम सभी राज्यों, केंद्र शासित क्षेत्रों और सभी उच्च न्यायालयों के महापंजीयकों को नोटिस जारी करते हैं।”

पीठ ने कहा कि इन सभी को चार हफ्ते के अंदर नोटिस का जवाब देना होगा। साथही पीठ ने यह निर्देश भी दिया कि नोटिस के साथ सभी पक्षों को याचिका का विवरण भी भेजा जाए।

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि इस मामले में दो पहलू हैं, पहला पुलिस और दूसरा न्यायपालिका जहां अब भी ऐसे मामलों पर सुनवाई हो रही है।

पीठ ने कहा कि जहां तक न्यायपालिका का सवाल है तो उसका ध्यान रखा जा सकता है और हम सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी करेंगे। शीर्ष अदालत ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख चार हफ्ते बाद तय की है।

केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शुरुआत में कहा कि उन्हें सरकार के हलफनामे पर यूपीसीएल का प्रत्युत्तर रविवार को ही मिला है और वह इसे पढ़ना चाहेंगे।

उच्चतम न्यायालय ने पांच जुलाई को इस बात पर “हैरानी” और “स्तब्धता” जाहिर की थी कि लोगों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत अब भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं जबकि शीर्ष अदालत ने 2015 में ही इस धारा को अपने फैसले के तहत निरस्त कर दिया था।

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की निरस्त की जा चुकी धारा 66ए के तहत भड़काऊ पोस्ट करने पर किसी व्यक्ति को तीन साल तक कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था।

शीर्ष अदालत ने पीयूसीएल के आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया था और एनजीओ के वकील से कहा था, “आपको नहीं लगता कि यह हैरान और स्तब्ध करने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वास्तव में स्तब्ध करने वाला है। जो हो रहा है वह भयावह है।”

इस संगठन ने दावा किया कि नयायालय के 24 मार्च, 2015 के फैसले के प्रति पुलिसकर्मियों को संवेदनशील बनाने के 2019 के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज किये गए हैं।

केंद्र की तरफ से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इससे पहले कहा था कि आईटी अधिनियम को देखने पर यह पता चलता है कि धारा 66ए उसमें नजर आती है, लेकिन फुटनोट (पन्ने के नीचे की तरफ की गई टिप्पणी) में लिखा है कि यह प्रावधान निरस्त कर दिया गया है।

शीर्ष अदालत पीयूसीएल की एक नये आवेदन पर सुनवाई कर रहा था। इसमें कहा गया, “हैरानी की बात है कि 15 फरवरी 2019 के आदेश और उसके अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों के बावजूद, याचिकाकर्ता ने पाया कि आईटी अधिनियम की धारा 66ए न सिर्फ उपयोग पुलिस थानों में उपयोग में है बल्कि निचली अदालत के समक्ष चल रहे मामलों में भी।”

आवेदन में केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई कि ऐसे सभी मामलों के आंकड़े/जानकारी एकत्रित की जाए जहां प्राथमिकी/जांच में धारा 66ए को लागू किया गया और देश भर में ऐसे मामलों की संख्या की जानकारी भी मांगी जहां 2015 के फैसले का उल्लंघन करते हुए इस धारा के प्रावधानों के तरह कार्यवाही जारी है।

उच्च अदालत ने 15 फरवरी 2019 को सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे सभी पुलिसकर्मियों को उसके 24 मार्च 2015 के फैसले से अवगत कराए जिसके तहत आईटी अधिनियम की धारा 66ए को निरस्त कर दिया गया था, जिससे लोगों को अनावश्यक रूप से इस प्रावधान के तहत गिरफ्तार न किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों से भी कहा था कि वे उस फैसले की प्रति निचली अदालतों में उपलब्ध कराएं जिससे निरस्त हो चुके प्रावधान के तहत लोगों के अभियोजन से बचा जा सके। इस धारा के तहत भड़काऊ सामग्री ऑनलाइन पोस्ट करने पर जेल और जुर्माने का प्रावधान है।

लालू प्रसाद यादव की बढ़ी मुश्किलें;शुरू हुई चारा घोटाले के सबसे बड़े केस में रोजाना सुनवाई,डोरंडा कोषागार से करोडों रुपये की अवैध निकासी मामले में लालू समेत 110 आरोपियों पर लटकी तलवार attacknews.in

रांची, 25 जुलाई । अविभाजित बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भले ही इस वक्त जेल से बाहर हैं। भले ही उन्हें झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दे दी हो लेकिन लालू से जुड़े चारा घोटाला मामले में सबसे बड़े केस के अंदर 6 महीने में फैसला आने वाला है।

लालू प्रसाद से जुड़े चारा घोटाले के पांचवें और अंतिम मामले में 6 महीने के अंदर फैसला आने की संभावना है। चार मामलों में लालू प्रसाद को सजा हो चुकी है।

गौरतलब है कि कि 25 साल पुराने चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले आरसी 47ए/96 की सुनवाई वर्चुअल मोड पर शुरू हो चुकी है। हर दिन एक घंटे सुनवाई के लिए निर्धारित है। इसके साथ ही डोरंडा कोषागार से लगभग 139.5 करोड़ रुपये की अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद समेत अन्य 110 आरोपियों की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।

कोरोना के कारण पिछले 15 महीने में केवल 12 डेट पर सुनवाई हुई थी। लेकिन अब तीन महीने बाद मामले की सुनवाई फिर से सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके शशि के कोर्ट में वर्चुअल मोड पर शुरू हो गयी है। फिलहाल इस मामले में सीबीआई की तरफ से स्पेशल पीपी बीएमपी सिंह बहस कर रहे हैं। इस मामले में 26 फरवरी को बचाव पक्ष की गवाही पूरी होने के बाद मामला बहस पर चला गया था।

छह महीने में पूरी करनी है सुनवाई

मार्च में राज्य के न्यायिक अफसरों का प्रमोशन और तबादला किया गया था। इसमें विशेष न्यायाधीश एसके शशि का भी नाम शामिल था। उन्हें न्यायायुक्त के पद पर पदोन्नत देते तबादला किया गया है। लेकिन चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 47ए/96 की सुनवाई पूरी होने तक वह सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बने रहेंगे। साथ ही न्यायायुक्त को मिलनेवाली सुविधा भी मिलेगी।

मिली जानकारी के अनुसार छह महीने में मामले की सुनवाई पूरी करनी है। न्यायिक प्रकिया के तहत सीबीआई की ओर से जारी बहस पूरी होने के बाद बचाव पक्ष को बहस करने का मौका दिया जाएगा। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद मामला फैसला पर चला जाएगा।

170 आरोपियों पर हुआ था चार्जशीट

प्रारंभ में 170 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गयी है। पहली चार्जशीट आठ मई 2001 को 102 आरोपियों को एवं सात जून 2003 को पूरक चार्जशीट में 68 आरोपियों के खिलाफ दाखिल किया था। आरोप तय सितंबर 2005 को किया गया था। सीबीआई ने 11 मार्च 1996 को प्राथमिकी दर्ज करायी थी। इस मामले के सात आरोपी को सरकारी गवाह बनाये गये, दो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। पांच आरोपी फरार चल रहे हैं।

महाभारत का प्रसंग याद दिलाते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर लगायी रोक, सरकार को सीधा प्रसारण के दिये निर्देश;सरकार यात्रा को दे चुकी थी मंजूरी attacknews.in

नैनीताल, 28 जून । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओें को ध्यान में रखते हुए चारधाम यात्रा के सीधा प्रसारण (लाइव स्ट्रीमिंग) के निर्देश दिये हैं। उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार को बड़ा झटका लगा है।

मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने सचिदानंद डबराल, अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली एवं अनु पंत समेत छह से अधिक जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं। अदालत में मुख्य सचिव ओमप्रकाश व संयुक्त सचिव पर्यटन डाॅ. आशीष चौहान वर्चुअल पेश हुए।

संयुक्त सचिव पर्यटन की ओर से शपथ पत्र पेश कर अदालत के समक्ष चारधाम यात्रा की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की गयी। शपथपत्र में कहा गया कि विगत 25 जून को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में चारधाम यात्रा को मंजूरी दे दी गयी है। प्रथम चरण में प्रदेश के तीन जिलों उत्तरकाशी, चमोली एवं रूद्रप्रयाग की जनता को चारधाम यात्रा की अनुमति दी गयी है। निर्धारित यात्रा के दौरान बदरीनाथ में एक दिन में अधिकतम 600, केदारनाथ में 400, गंगोत्री में 300 एवं यमुनोत्री में 200 तीर्थयात्री दर्शन के लिये जा सकेंगे।

शपथपत्र में यह भी कहा गया कि केन्द्र एवं राज्य सरकार की ओर से जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का सख्ती से पालन कराया जायेगा लेकिन अदालत ने शपथपत्र को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि शपथपत्र में जो जानकारी दी गयी हैं वह अपूर्ण एवं गलत हैं।

अदालत ने कोरोना की तीसरी लहर खासकर डेल्टा प्लस वेरिएंट का हवाला देते हुए कहा कि चारधाम यात्रा में स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव है।

अदालत ने कहा कि चारधाम यात्रा कोे लेकर अस्पताल, एम्बुलेंस, वेटिंलेटर, आक्सीजन कंसेट्रेटर, आइसोलेशन वार्ड समेत अन्य चीजें पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि एशिया, यूरोप एवं अमेरिका महाद्वीप कोरोना की तीसरी लहर डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर चितिंत है। आस्ट्रेलिया एवं बंगलादेश लाकडाउन घोषित कर चुके हैं। भारत में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं केरल तीन राज्यों में डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामले सामने आये हैं।

अदालत ने आगे कहा कि प्रदेश सरकार कोरोना महामारी के चलते ही इस वर्ष की महत्वपूर्ण कावंड यात्रा पर रोक लगा चुकी है। उच्चतम न्यायालय की ओर से भी लोगों की सुरक्षा की खातिर ओडिशा की प्रसिद्ध जगन्नाथ (पुरी) यात्रा को लेकर कई तरह के सख्त निर्देश जारी किये गये।

अदालत ने सरकार की सलाह देते हुए कहा कि महाभारत में कहा गया है कि देश को बचाने के लिये राज्य, राज्य को बचाने के लिये जिला व जिला को बचाने के लिये गांव को कुर्बान करना पड़े तो जनहित में उचित है।

महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने अदालत को बताया कि चारधाम यात्रा का सजीव प्रसारण शास्त्रानुकूल नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि जब शास्त्रों की रचना की गयी थी तो तब प्रोद्योगिकी एवं तकनीक का ईजाद नहीं हुआ था। इसलिये यह तर्क स्वीकार योग्य नहीं है। यही नहीं अदालत ने तीन जिलों के टीकाकरण पर भी सवाल उठाये और सुरक्षा के लिहाज से अपर्याप्त बताया।

अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली एवं अभिजय नेगी ने बताया कि सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने चारधाम यात्रा को लेकर विगत 25 जून को मंत्रिमंडल में लिये गये निर्णय पर रोक लगा दी है और सरकार को कहा कि सरकार चारधाम यात्रा के लिये लोगों को अनुमति न दे। साथ ही तीर्थयात्रियों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए सरकार को कहा कि देश के अन्य पवित्र धामों की तरह से चारधाम का भी सजीव प्रसारण की व्यवस्था सुनिश्चित करे।

अदालत ने मुख्य सचिव को भी निर्देश दिये कि वह सीधा प्रसारण को लेकर सरकार के निर्णय की जानकारी सात जुलाई को अदालत के समक्ष पेश करे। इस मामले में अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी।

दिल्ली हाईकोर्ट की अवकाश पीठ ने डिजिटल मीडिया के लिए तय किये गए नए आईटी नियमों पर रोक लगाने से किया इनकार,7 जुलाई को सुनवाई attacknews.in

नयी दिल्ली, 28 जून । दिल्ली उच्च न्यायालय ने नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया और कहा कि वह इस समय ऐसा आदेश पारित करने के लिए याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं है। ‘फॉउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म’, ‘द वायर’, क्विंट डिजिटल मीडिया लिमिटेड और ‘ऑल्ट न्यूज’ चलाने वाली कंपनी प्रावदा मीडिया फॉउंडेशन ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

इन कंपनियों का कहना था कि उन्हें एक ताजा नोटिस जारी किया गया है जिसके तहत उन्हें नियमों का पालन करना होगा अन्यथा उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

न्यायमूर्ति सी हरि शंकर और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की अवकाश पीठ ने कहा कि उक्त कंपनियों को केवल अधिसूचना का पालन करने के लिए नोटिस जारी किया गया था जिस पर कोई रोक नहीं है।

पीठ ने कहा, “हम आपसे सहमत नहीं हैं। आप चाहते हैं तो हम एक विस्तृत आदेश जारी कर देंगे या यदि आप चाहते हैं तो हम इसे रोस्टर पीठ के सामने दोबारा अधिसूचित कर देंगे। अनुदेश लेने के बाद आप हमें बता दीजिये।”

उक्त कंपनियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने अदालत से अनुरोध किया कि अवकाश के बाद अदालत खुलने पर मामले को सूचीबद्ध किया जाए।

अदालत ने रोक लगाने के आवेदनों को रोस्टर पीठ के समक्ष सात जुलाई को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।

इस बीच आईटी नियमों की वैधता को लेकर प्रावदा मीडिया फॉउंडेशन की ओर से दायर नई याचिका पर अदालत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

सुनंदा पुष्कर की हत्या या मौत के मामले में जमानत पर चल रहे पति शशि थरूर के खिलाफ आरोप तय करने की तिथि दो जुलाई निर्धारित attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 जून । वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर मौत मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को श्री थरूर के खिलाफ आरोप तय करने की तिथि दो जुलाई निर्धारित की है। वह 17 जनवरी 2014 की रात राजधानी के एक होटल में अपने कमरे में मृत पाई गईं थी।

इससे पहले की सुनवाई में राउज एवेन्यू कोर्ट की विशेष न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने कहा था कि अगर 16 अप्रैल तक आदेश जारी नहीं किया जाता है तो एक अल्प अवधि वाली तारीख दे दी जाएगी।

इस मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की श्री थरूर के खिलाफ आपराधिक मामले में आरोप तय किये जाने चाहिए या नहीं तय किये जाने चाहिए, संबंधी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

श्री थरूर की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास पाहवा ने कहा कि अभियोजन पक्ष श्री थरूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आरोप साबित करने के लिए धारा 498ए और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 ए को एक साथ लेकर चलना चाहता है, लेकिन उनका केस कुछ भी हो लेकिन वह यह साबित करने में असफल हुए हैं कि यह आत्महत्या का मामला है।

श्री पाहवा ने कहा कि सीएफएसएल की रिपोर्ट (जिस पर अभियोजन पक्ष विश्वास नहीं करता) के अनुसार श्रीमती पुष्कर के रक्त में वह ड्रग्स नहीं मिला था जिसको लेकर कयास लगाए जा रहे थे।

सरकारी पक्ष के वकील अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि यह कोई दुर्घटनावश मौत नहीं थी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इसे जहर दिए जाने का मामला मानती है चाहे वह मुंह के जरिए दिया गया हो या इंजेक्शन लगाया गया हो।

अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि श्रीमती पुष्कर को उनके पति शशि थरूर मानसिक तौर पर आघात पहुंचाते थे क्योंकि वह अपने पति के कथित विवाहेत्तर संबंधाें के बारे में परिचित थी।

श्री पाहवा ने दलील दी कि उनके मुवक्किल का किसी भी महिला के साथ कोई संबंध या अफेयर नहीं था।

गौरतलब है कि श्रीमती पुष्कर राजधानी के एक लक्जरी होटल में 17 जनवरी 2014 को अपने कमरे में मृत पाई गई थी। थरूर दंपति अपने आधिकारिक बंगले की मरम्मत के कारण इस हाेटल में रह रहा था। दिल्ली पुलिस ने श्री थरूर के खिलाफ भारतीय दंड़ संहिता की धारा 498ए और 306 के तहत मामला दर्ज किया था लेकिन इस मामले में उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था।

पांच जुलाई 2018 को अदालत ने उनकी जमानत मंजूर कर ली थी।

मुख्तार अंसारी नहीं है किसी वकील के भरोसे; एम्बुलेंस मामले में बाराबंकी नहीं पहुंचा मुख्तार अंसारी,बांदा जेल से खुद ही बहस की attacknews.in

बाराबंकी,14 जून । एम्बुलेंस मामले में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को आज प्रशासन सीजेएम की अदालत पर उपस्थित नहीं करा सका और उसने बांदा जिला जेल से ही खुद बहस की।

प्रभारी सीजेएम कमला पति ने वीडियो कांफ्रेंसिंग हाल में जाकर मामले की वर्चुअल सुनवाई की। सुनवाई के दौरान आरोपी मुख्तार अंसारी ने बांदा जिला जेल से ही अपने इस केस की खुद बहस की।

इस दौरान मुख्तार अंसारी के तर्क को प्रभारी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कमलापति ने ध्यान पूर्वक सुनने के बाद मामले में अगली तिथि 28 जून नियत कर दी।

आरोपी मुख्तार अन्सारी ने सुनवाई के दौरान कहा कि उनपर कोई आरोप एम्बुलेंस के पंजीयन मामले में नही बनते।

क्या है मामला

गौरतलब है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे वर्ष 2013 में एक एम्बुलेंस बाराबंकी एआरटीओ कार्यालय से पंजीकृत कराई गई थी। इस एम्बुलेंस का प्रयोग मुख्तार अंसारी द्वारा किया जा रहा था और पंजाब की रोपड जेल में बंद रहने के दौरान मुख्तार अंसारी इसी एम्बुलेंस से मोहाली अदालत में पेशी पर गया था। जिसके बाद ये एम्बुलेंस चर्चा में आई थी और बाराबंकी जिले के वढ41 अळ 7171 नम्बर से रजिस्टर्ड एम्बुलेंस को लेकर हड़कम्प मचा गया था।

बाराबंकी संभागीय परिवहन विभाग में जब इस एम्बुलेंस की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि इसका रिनिवल ही नहीं कराया गया था। बाद में जब इस एम्बुलेंस के कागजात खंगाले गए तो ये डॉ. अलका राय की फर्जी आईडी से पंजीकृत पाई गई। इस मामले में डॉ. अलका राय, डॉ. शेषनाथ राय, राजनाथ यादव, मुजाहिद समेत कई के खिलाफ नगर कोतवाली में मुकदमा लिखाया गया था। बाद में छानबीन में मुख्तार अंसारी की संलिप्तता पाए जाने पर मुकदमें में धाराएं बढ़ाते हुए उनका नाम भी जोड़ा गया था।

भोजपुर में बैग व्यापारी इमरान खान हत्याकांड में दस लोगों को फांसी की सजा:₹10 लाख रंगदारी देने से इंकार करने पर दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया था attacknews.in

आरा, 14 जून । बिहार में भोजपुर जिले की सत्र अदालत ने सोमवार को चर्चित इमरान हत्याकांड में दस लोगों को फांसी की सजा सुनायी।

अपर जिला एवम सत्र न्यायाधीश (नवम) मनोज कुमार ने यहां मामले में सुनवाई के बाद चर्चित इमरान हत्याकांड में खुर्शीद कुरेशी, उनके भाई अब्दुल्लाह कुरेशी समेत 10 लोगों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने दोषियों पर एक लाख रूपये का अर्थ दंड भी लगाया।

गौरतलब है कि 06 दिसंबर 2018 को आरा चौक पर इमरान की हत्या हुई थी। इस मामले में (सेशन ट्रायल 117/2019) के मुख्य अभियुक्त खुर्शीद कुरेशी, अब्दुल्लाह कुरेशी, अहमद मियां, बबली मियां, राजू खान, अनवर खान उर्फ सलामिया, तौसीफ मियां तथा (209/19) के अभियुक्त शमशेर मियां ,फूलचंद्र मियां और गुडु मियां को सजा हुई है।

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार के कोर्ट ने सभी आरोपितों को हत्या, आपराधिक षड़यंत्र आर्म्स एक्ट और रंगदारी के लिये भय पैदा करने में दोषी पाते हुए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सजा-ए- मौत सुनाई है। 9 मार्च को ही सभी आरोपियों को दोषी पाया गया था।

मालूम हो कि छह दिसंबर 2018 को दिनदहाड़े शहर के धर्मन चौक स्थित शोभा मार्केट पर अंधाधुंध फार्यंरग की गई थी। उसमें दूध कटोरा निवासी बैग कारोबारी इमरान खान की मौत हो गई थी। इमरान के भाई अकील अहमद और एक बीएसएनएल कर्मी भी गोली लगने से जख्मी हो गए थे। उसे लेकर अकील अहमद के बयान पर टाउन थाना में खुर्शीद कुरैशी और उसके भाई सहित अन्य के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी।

उसमें कहा गया था कि उससे दस लाख रुपये रंगदारी की मांग की गई थी। पैसे देने से इंकार किया तो आरोपितों द्वारा उन पर अंधाधुंध गोली चलाई गई। जिसमें इमरान की मौत हो ग गई थी। जबकि ,उनके भाई अकील अहमद और एक कर्मी जख्मी हो गए थे।

सनद हो कि नौ मार्च को दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद नवम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार ने भादवि की धारा 387/34, 302/34, 307/34,120 (बी ) व 27 आम्र्स एक्ट तहत खुर्शीद कुरैशी उसके भाई अब्दुल्ला कुरैशी, नजीरगंज के राजू खान, रौजा मोहल्ला के अनवर कुरैशी, मिल्की मोहल्ला के अहमद मियां, खेताड़ी मोहल्ला के बब्ली मियां, तौशिफ आलम व फुरचन उर्फ फुचन मियां, रोजा के गुड्डू मियां व अबरपुल मुहल्ला शमशेर मियां को दोषी करार दिया था। जिन्हें सोमवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए फांसी की सजा सुना दी गई।

छह दिसंबर 2018 को घटना के दिन आरा शहर के काफी भीड़-भाड़ वाले धर्मन चौक के पास बैग और बेल्ट कारोबारी इमरान को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था। उसे नजदीक से दर्जन भर गोलियां मारी गई थी। उस दौरान अंधाधुंध फार्यंरग की गई थी। जिसमें इमरान के भाई और बगल में काम कर रहे बीएसएनएल के एक कर्मी को भी गोली लग गई थी।

दिनदहाड़े ताबड़तोड़ फायरिंग की घटना से पूरा शहर दहल उठा था। गोलियों की आवाज सुन लोग भाग गये थे। कुछ देर के बाद जब गोली बारी थमी, तब लोगों को इमरान के मारे जाने और दो लोगों गोली लगने की खबर मिली थी। उस घटना के बाद जबरदस्त बवाल भी मचा था।

उत्तर प्रदेश में जलनिगम नियुक्ति घोटाले में आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा सांसद आजम खान की अग्रिम जमानत याचिका खारिज attacknews.in

लखनऊ 12 जून । समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आजम खान की मुश्किलें थमने का नाम नही ले रही है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ ने उत्तर प्रदेश में जलनिगम नियुक्ति धांधली मामले में पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा सांसद की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

25 अप्रैल 2018 को इस मामले में आजम खां के विरूद्ध लखनऊ के एसआईटी थाने में आईपीसी की धारा,409,420,120 बी और 201 के तहत केस दर्ज हुआ था ।

अदालत ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से स्पष्ट इनकार कर दिया है।

गौरतलब है कि जल निगम में 1300 पदों पर नियुक्तियों से जुड़े धांधली के मामले में लखनऊ खंडपीठ ने आजम खान की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई की थी।

इसके बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था ।

यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव सिंह की पीठ ने मोहम्मद आजम खान की याचिका पर दिया है।

बेंच के समक्ष इस याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हुई थी ।

आजम की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और लखनऊ पीठ के वरिष्ठ अधिवक्ता आई बी सिंह तथा सहयोगी अधिवक्ता नदीम मुर्तज़ाने दलीले पेश की थी ।

याचिका में आजम खान को जमानत देने की मांग की गई थी।

याचिका का विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि रामपुर जिले के दो आपराधिक मुकदमों में आजम खान पहले से न्यायिक हिरासत में जेल में है।

18 अप्रैल 2020 को इस मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा उनके विरूद्ध बी वारंट जारी किया जा चुका है।

19 नवंबर 2020 को यह वारंट सीतापुर जेल में आजम खान को प्राप्त भी करा दिया गया है।

सरकारी वकील ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी मार्कशीट बनाने वाले गिरोह में बिचौलियों, मास्टरमाइंड व लाभार्थियों की लंबी चेन की जड़ों तक जाने के लिए जांच को जरूरी बताते शिक्षक की अग्रिम जमानत खारिज की attacknews.in

फर्जी मार्कशीट बनाने वाले शिक्षा पद्धति को नुकसान व सामाजिक ढांचे को कर रहे हैं पंगु :हाईकोर्ट

प्रयागराज, 11 जून । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर 11 वर्ष से प्राइमरी स्कूल में नौकरी कर रहे शिक्षक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करते हुए अग्रिम जमानत देने से इन्कार करते हुए कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वाले गिरोह सामाजिक ढांचे को पंगु बना रहे हैं और शिक्षा पद्धति के जड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं ।

शिक्षक पर आरोप है कि वह आगरा विश्वविद्यालय से बीएड की फर्जी मार्कशीट के आधार पर नियुक्त हुआ और वर्ष 2009 से पढ़ा रहा था ।

फर्जी मार्कशीट को लेकर उसके खिलाफ थाना- अहमदगढ़, बुलंदशहर में भारतीय दंड संहिता की धारा 420,467,468,471 के तहत दर्ज कराया गया है।

इस मुकदमे में याची ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अग्रिम जमानत की मांग की थी।

याची के वकील का कहना था कि इस मार्कशीट को पाने में उसका कोई दोष नहीं है ।

उसे नहीं मालूम था कि उसकी मार्कशीट फर्जी है जबकि अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता विनोद कान्त का कहना था कि यूपी में बिचौलियों के मार्फत फर्जी मार्कशीट बनाने व देने का रैकेट चल रहा है।

याची कई वर्षों तक फर्जी मार्कशीट का लाभ लेता रहा है ।

वह यह नहीं कह सकता कि उसे फर्जी मार्कशीट का ज्ञान नहीं था।

याची अध्यापक सुनील कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि याची अदालत में अपने को सरेन्डर करे और विवेचना में सहयोग करे।

न्यायालय ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वाले गिरोह में बिचौलियों, मास्टरमाइंड व लाभार्थियों की लंबी चेन है।

इसकी जड़ों तक जाने के लिए जांच जरूरी है ।

ऐसे मामलों में जांच के लिए कस्टडी कभी-कभी जरूरी हो जाती है ।