चीन स्थित ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ में काम करने वाले वैज्ञानिक एंड्रयू हफ का दावा: कोविड-19 एक मानव निर्मित वायरस है, जो WIV से लीक हो गया था attacknews.in

अमेरिका का पैसा और सिक्योरिटी, चीन का लैब… ऐसे लीक हुआ कोरोना: वैज्ञानिक का खुलासा


बीजिंग 5 दिसम्बर । कोरोना की उत्पत्ति को लेकर तरह-तरह के दावे किए जाते रहे हैं। कई इसे जीव-जनित बताते हैं तो कई लोगों का मानना है कि यह चीन स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (WIV) से लीक हुआ था। अब इस दावे को और बल मिल रहा है। यहाँ काम कर चुके एक वैज्ञानिक ने इस संबंध में एक अहम खुलासा किया है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान ‘द सन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन स्थित ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ में काम करने वाले वैज्ञानिक एंड्रयू हफ का दावा है कि कोविड-19 एक मानव निर्मित वायरस है, जो WIV से लीक हो गया था।

एंड्रयू हफ ने वायरस का अध्ययन करने वाले न्यूयॉर्क स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था के लिए भी काम किया है।

उन्होंने कहा कि कोविड को ढाई साल से पहले चीन में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से लीक किया गया। हफ ने इसे 9/11 के बाद की सबसे बड़ी अमेरिकी खुफिया विफलता बताया और इसके लिए अधिकारियों को दोषी ठहराया। यह प्रयोगशाला कोविड की उत्पत्ति के बारे में बहस के केंद्र रहा है।

हालाँकि, चीन के सरकारी अधिकारियों और प्रयोगशाला कर्मियों ने हमेशा इससे इनकार किया है कि वायरस लैब से लीक हुआ था।

महामारी वैज्ञानिक हफ ने अपनी नई पुस्तक ‘द ट्रूथ अबाउट वुहान’ में कहा कि चीन में कोरोना वायरस अमेरिकी सरकार के वित्त पोषण का परिणाम था।

उन्होंने कहा कि चीन में एक्सपेरिमेंट को LAX सुरक्षा के साथ किया गया, जिसके कारण वुहान लैब में लीक हुआ। ‘लॉस एंजिल्स एयरपोर्ट सिक्योरिटी (LAX सुरक्षा)’ लॉस एंजिल्स एयरपोर्ट पुलिस का एक प्रभाग है।

उन्होंने अपनी पुस्तक में कहा, “विदेशी प्रयोगशालाओं में बायो-सेफ्टी (खतरनाक रोगाणुओं से निपटने के उपाय), बायो-सिक्योरिटी (वायरस के प्रसार को रोकना) और को सुनिश्चित करने और जोखिम प्रबंधन के लिए जरूरी तैयारियाँ नहीं की गई थीं। अंततः यही चीजें WIV से वायरस लीक होने का कारण बनीं।

पिछले दो वर्षों में लगातार ऐसे सबूत सामने आए हैं जिससे पता चलता है कि वायरस लैब से लीक हो गया था।

हफ ‘इकोहेल्थ एलायंस’ के एक पूर्व उपाध्यक्ष हैं, जो न्यूयॉर्क स्थित एक गैर-लाभकारी समूह है। ये अमेरिका के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH)’ के साथ एक दशक से अधिक समय से चमगादड़ों में अलग-अलग कोरोना वायरस का अध्ययन कर रहा है और इस संस्था ने वुहान लैब से भी घनिष्ठ संबंध बनाए थे।

वैज्ञानिक हफ ने लिखा, “चीन पहले दिन से यह जानता था कि कोरोना वायरस को जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से बनाया गया था। इसका जिम्मेदार अमेरिका को ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि बायोटेक्नोलॉजी की ये तकनीक उसी ने चीन को दी थी।”

बता दें कि ‘जेनेटिक इंजिनयरिंग’ के माध्यम से किसी जीव के जीन्स में छेड़छाड़ कर के उसके स्वभाव को बदला जा सकता है।

चीन में मुसलमानों की नजरबंदी पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की रिपोर्ट में गंभीर तथ्यों पर भड़का चीन ने उइगर मुसलमानों से संबंधित रिपोर्ट को खारिज किया attacknews.in

बीजिंग, एक सितंबर (एपी) चीन ने संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि शिनजियांग में उइगर और अन्य मुस्लिम जातीय समूह के लोगों को सरकार द्वारा जबरन नजरबंद रखना मानवता के खिलाफ अपराध के दायरे में आ सकता है। मानवाधिकार समूहों और जापान की सरकार ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया है।


जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपनी आतंकवाद और उग्रवाद रोधी नीतियों के तहत मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है।

संगठन ने संयुक्त राष्ट्र, विश्व बिरादरी और खुद चीन से इस पर ‘‘तत्काल ध्यान’’ देने का आह्वान किया है।

इस बीच, जिनेवा में चीन के राजनयिक मिशन ने तीखी प्रतिक्रिया देते संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का कड़ा विरोध किया।

चीन ने कहा कि इस रिपोर्ट में शिनजियांग में किए गए मानवाधिकार संबंधी कार्यों की उपलब्धियों और आबादी को आतंकवाद व उग्रवाद से हुए नुकसान की अनदेखी की गई है।

चीन के मिशन ने एक बयान में इस रिपोर्ट को “चीन विरोधी तत्वों” का कृत्य करार दिया और कहा कि यह गलत जानकारी व झूठ पर आधारित है, जिसका उद्देश्य चीन की छवि धूमिल करना है।

इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने रिपोर्ट को रोकने के चीन के अनुरोध को खारिज कर दिया।

बैचलेट ने मई में शिनजियांग की यात्रा की थी, जिसके बाद यह रिपोर्ट आयी है। इस रिपोर्ट ने क्षेत्र के मूल उइगर और अन्य प्रमुख मुस्लिम जातीय समूहों के अधिकारों पर पश्चिमी देशों के साथ राजनयिक प्रभाव को लेकर रस्साकशी शुरू की है।

पश्चिमी राजनयिकों और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि रिपोर्ट लगभग तैयार थी, लेकिन बैचलेट का चार साल का कार्यकाल पूरा होने से कुछ ही मिनटों पहले इसे जारी किया गया।

कई पत्रकारों, स्वतंत्र मानवाधिकार समूहों ने शिनजियांग में वर्षों से मानवाधिकार उल्लंघन पर काफी कुछ लिखा है।

बैचलेट की इस रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र तथा उसके सदस्य देशों की मुहर लगी है। इसके जारी होने के बाद विश्व संस्था में चीन के प्रभाव पर बहस छिड़ गई।

रिपोर्ट जारी होने से कुछ देर पहले संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून ने कहा था कि बीजिंग इस रिपोर्ट का ‘‘दृढ़ता से विरोध’’ करता है। जापान रिपोर्ट पर टिप्पणी करने वाले शुरुआती देशों में से एक था।

रिपोर्ट बृहस्पतिवार की सुबह एशिया में जारी की गयी थी। जापान के शीर्ष सरकारी प्रवक्ता ने चीन से शिनजियांग क्षेत्र में पारदर्शिता और मानवाधिकार की स्थिति में सुधार करने का आग्रह किया।

मानवाधिकार संगठनों ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने संयुक्त राष्ट्र और सरकारों से मानवाधिकारों के हनन की एक स्वतंत्र जांच करने का आह्वान किया।
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भारत रत्न लता मंगेशकर: जिनकी आवाज ही उनकी पहचान बन गई attacknews.in

मुंबई, छह फरवरी । देश के संगीत जगत की सबसे बड़ी हस्तियों में शुमार रहीं और स्वर कोकिला के नाम से जानी जाने वाली तथा ‘भारत रत्न’ से सम्मानित लता मंगेशकर का रविवार को निधन हो गया, लेकिन वह अपने सुरीले गीतों के जरिए संगीत प्रेमियों के दिलों में सदा अमर रहेंगी।


उनके गीतों ने कभी प्रेम, कभी खुशी, कभी दुख की भावनाओं को व्यक्त किया तो कभी संगीत की धुनों पर नाचने पर मजबूर कर दिया।

उन्होंने मनुष्य की हर भावना को अपनी आवाज के जरिए संगीत प्रेमियों के दिलों तक पहुंचाया। उनकी आवाज ने ग्रामोफोन की दुनिया से लेकर डिजिटल युग तक का सफर तय किया और कई गीतों को अविस्मरणीय बना दिया।

मंगेशकर का रविवार को यहां ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। वह 92 वर्ष की थीं। उन्होंने केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि भारत की लगभग हर भाषा में गीत गाए।

मंगेशकर ने मधुबाला से लेकर प्रीति जिंटा तक कई पीढ़ियों के फिल्मी कलाकारों के लिए पार्श्व गायन किया। दक्षिण एशिया में लाखों लोग मंगेशकर की ‘स्वर्णिम आवाज’ से अपने दिन की शुरुआत करते हैं और सुकून देने वाली उनकी आवाज सुनकर ही अपना दिन समाप्त करते हैं।

उन्हें ‘सुर सम्राज्ञी’, ‘स्वर कोकिला’ और ‘सहस्राब्दी की आवाज’ समेत कई उपनाम दिए गए। उन्हें उनके प्रशंसक लता दीदी के नाम से संबोधित करते थे।

इंदौर में जन्मीं मंगेशकर ने मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिए मात्र 13 वर्ष की आयु में 1942 में अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया था। इसके 79 वर्ष बाद पिछले साल अक्टूबर में विशाल भारद्वाज ने मंगेशकर का गाया ‘ठीक नहीं लगता’ गीत जारी किया था। इस गीत के बोल गुलजार ने लिखे हैं और ऐसा माना जा रहा था कि यह गीत खो गया था।

मंगेशकर ने यह गीत जारी होने के कुछ दिन बाद ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘यह लंबी यात्रा मेरे साथ है और वह छोटी बच्ची अब भी मेरे अंदर है। वह कहीं गई नहीं है। कुछ लोग मुझे ‘सरस्वती’ कहते हैं या वे कहते हैं कि मुझ पर उनकी कृपा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह उनका आशीर्वाद है कि मेरे गाए गीत लोगों को पसंद आते हैं, अन्यथा मैं कौन हूं? मैं कुछ नहीं हूं।’’

लता मंगेशकर की इस बात से उनके लाखों प्रशंसक सहमत नहीं होंगे। न केवल उनके प्रशंसकों के लिए, बल्कि उनके संगीत से अपरिचित दुनियाभर के कई लोगों के लिए भी मंगेशकर उन कुछेक भारतीयों में से एक हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बनाई है। संगीत जगत को दिया उनका योगदान अतुलनीय है।

ऐसा कहा जाता है कि मंगेशकर ने 1963 में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में जब देश के जवानों के लिए ‘ऐ मेरे वतन के लोगो गीत’ गाया था, तो नेहरू अपने आंसू नहीं रोक पाए थे।

मंगेशकर ने ‘मोहे पनघट पे’ (मुगल-ए-आजम) जैसे शास्त्रीय गीतों, ‘अजीब दास्तां हैं ये’ (दिल अपना और प्रीत पराई) और ‘बांहों में चले आओ’ (अनामिका) जैसे रोमांटिक गीतों से सुरों का जादू बिखेरा।

उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मृदुभाषी मंगेशकर अपने निजी जीवन पर सार्वजनिक रूप से बात करना पसंद नहीं करती थीं। वह आजीवन अविवाहित रहीं।

ऐसा कहा जाता था कि क्रिकेटर राज सिंह डूंगरपुर और मंगेशकर एक-दूसरे से प्रेम करते थे। राज सिंह ने इसे लेकर बात की, लेकिन मंगेशकर ने इस विषय पर कभी कुछ नहीं कहा।

अपनी बहन आशा भोसले के साथ कथित प्रतिद्वंद्वता को लेकर भी मंगेशकर कई बार सुखिर्यों में रहीं, लेकिन उन्होंने इस बात की कभी परवाह नहीं की और कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। दोनों बहनों ने इस बारे में कोई बात नहीं की और संगीत जगत पर राज किया।

इसके अलावा रॉयल्टी को लेकर गायक मोहम्मद रफी के साथ उनका झगड़ा और अभिनेता राज कपूर के साथ उनका विवाद भी चर्चा में रहा।

मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को इंदौर में एक मराठी संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर और गुजराती गृहिणी शेवंती के घर हुआ था। वह दीनानाथ और शेवंती के पांच बच्चों में सबसे बड़ी थीं। लता के अलावा मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ उनके बच्चे थे।

मंगेशकर जब मात्र पांच साल की थीं, तभी उनके पिता ने उनके भीतर की महान गायिका को पहचान लिया था।

दीनानाथ मंगेशकर के अचानक निधन के कारण परिवार का आर्थिक बोझ 13 वर्षीय लता मंगेशकर के कंधों पर आ गया। ऐसे में उनके पारिवारिक मित्र मास्टर विनायक ने उनकी मदद की और लता मंगेशकर ने उनकी रंगमंच कंपनी में गाना और अभिनय करना शुरू कर दिया।

जब वह मुंबई गईं तो निर्माता एस मुखर्जी ने यह कहकर मंगेशकर को खारिज कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत पतली है, लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि यही आवाज कई भावी पीढ़ियों तक संगीत जगत पर राज करेगी।

लता मंगेशकर ने जब 1949 में फिल्म ‘महल’ के लिए ‘आएगा आने वाला’ गीत गाया, तो उस समय पार्श्व गायकों को अधिक तवज्जो नहीं दी जाती थी और यह सार्वजनिक नहीं किया गया था कि यह गीत किसने गाया है, लेकिन यह गीत इतना हिट हुआ कि लोग इसकी गायिका के बारे में जानने को उत्सुक थे, जिसके कारण रेडियो स्टेशन को यह जानने के लिए एचएमवी से संपर्क करना पड़ा कि इस गीत को आवाज किसने दी है।

मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर के वृत्तचित्र ‘लता मंगेशकर: इन हर ओन वर्ड्स’ में इस बात का जिक्र किया था। रेडियो स्टेशन ने श्रोताओं को बताया कि यह गीत मंगेशकर ने गाया है और इसी के साथ देश को एक सितारा मिल गया।

मंगेशकर ने 1950 के दशक में शंकर जयकिशन, नौशाद अली, एस डी बर्मन, हेमंत कुमार और मदन मोहन जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया। उस समय गायकों को अधिक धन नहीं मिलता था, इसलिए मंगेशकर एक दिन में छह से आठ गीत गाती थीं और फिर घर जाकर कुछ घंटे सोने के बाद अगले दिन फिर ट्रेन से रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंच जाया करती थीं।

उनकी आवाज सफलता का पर्याय बन गई थी और इसीलिए मुख्य अभिनेता इस बात पर जोर देते थे कि उनकी फिल्मों के गीत लता मंगेशकर ही गाएं और अपने अनुबंधों में यह शर्त भी रखते थे।

साठ के दशक में एक बार फिर मधुबाला मंगेशकर की आवाज का चेहरा बनीं। मंगेशकर ने ‘मुगल-ए-आजम’ के लिए ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ गीत गाकर संगीत जगत में तहलका मचा दिया।

इसी दशक में उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। मंगेशकर ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए 35 साल में 700 से अधिक गीत गाए, जिनमें से अधिकतर बहुत लोकप्रिय हुए।

मंगेशकर ने मुकेश, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के साथ युगल गीत गाए। सत्तर के दशक में मंगेशकर ने अभिनेत्री मीना कुमारी की आखिरी फिल्म ‘पाकीजा’ और ‘अभिमान’ के लिए बेहतरीन गीत गाए। उन्होंने 80 के दशक में ‘‘सिलसिला’’, ‘‘चांदनी’’, ‘‘मैंने प्यार किया’’, ‘‘एक दूजे के लिए’’, ‘‘प्रेम रोग’’, ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ और ‘‘मासूम’’ फिल्मों के लिए गीत गाए।

वर्ष 1990 और 2000 के दशक में उन्होंने गुलजार निर्देशित फिल्म ‘लेकिन’ और यश चोपड़ा की फिल्मों ‘लम्हे’, ‘डर’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और ‘दिल तो पागल’ के गीतों को अपनी सुरीली आवाज दी।

उन्होंने आखिरी बार 2004 में ‘वीर-जारा’ फिल्म की पूरी अलबम के गीत गाए।

लता मंगेशकर आज भले ही दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अपनी आवाज के जरिए वह संगीत प्रेमियों के बीच सदा अमर रहेंगी।

मंगेशकर ने 1977 में ‘किनारा’ फिल्म के लिए ‘मेरी आवाज ही मेरी पहचान है’ गीत गाया था और वाकई आज उनकी आवाज किसी पहचान की मोहताज नहीं।

भारत रत्न लता मंगेशकर, “मेरी आवाज ही पहचान हैं ….”

लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929 – 6 फ़रवरी 2022) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।

लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। लता दीदी को भारत सरकार ने ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया । इनकी मृत्यु कोविड से जुड़े कॉम्प्लिकेशन से 6 फरवरी 2022 में ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल मुंबई में हुई। वे एक अरसे से बीमार थीं। उनकी महान गायकी और सुरम्य आवाज के दीवाने पूरी दुनिया मे है।

लता का जन्म गोमंतक मराठा समाज परिवार में, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में सबसे बड़ी बेटी के रूप में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता रंगमंच एलजीके कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना। हालाँकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र मे हुई. वह बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं।

बचपन में कुन्दन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी। पहली बार लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये।

पिता की मृत्यु के बाद (जब लता सिर्फ़ तेरह साल की थीं), लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की वज़ह से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में काम करना पड़ा।

अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ, में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका निभाई आशा भोंसलेने। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया।

वर्ष 1942 ई में लताजी के पिताजी का देहांत हो गया इस समय इनकी आयु मात्र तेरह वर्ष थी. भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कंधों पर आ गया था. दूसरी ओर उन्हें अपने करियर की तलाश भी थी. जिस समय लताजी ने (1948) में पार्श्वगायिकी में कदम रखा तब इस क्षेत्र में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी. ऐसे में उनके लिए अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था.

लता का पहला गाना एक मराठी फिल्म कीति हसाल के लिए था, मगर वो रिलीज नहीं हो पाया. 1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर (जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी) अपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये जिसमे कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थी। वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे। लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दिया। इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों “अंग्रेजी छोरा चला गया” और “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने” जैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की। हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी। 1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म “महल” के “आयेगा आनेवाला” गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

विविध

पिता दिनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे।

उन्होने अपना पहला गाना मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था।

लता मंगेशकर को सबसे बड़ा ब्रेक फिल्म महल से मिला। उनका गाया “आयेगा आने वाला” सुपर डुपर हिट था।

लता मंगेशकर अब तक 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गाने गा चुकी हैं।

लता मंगेशकर ने 1980 के बाद से फ़िल्मो में गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी।

लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति रही हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते रहे हैं।

लता मंगेशकर ने आनंद घन बैनर तले फ़िल्मो का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है।

वे हमेशा नंगे पाँव गाना गाती थी ।

बनते- बिगड़ते भारत और नेपाल के संबंध फिर से हुए मजबूत attacknews.in

काठमांडू, 28 दिसंबर । राजनीतिक उथल-पुथल और कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित रहे 2021 में नेपाल ने भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को उच्च स्तरीय वार्ता और यात्राओं के साथ फिर से मजबूत करने के प्रयास किए। यह सब हिमालयी राष्ट्र में शीर्ष नेतृत्व में बदलाव के बीच हुआ।

पिछले साल भारत-नेपाल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाले सीमा विवाद की छाया से बाहर आते हुए, भारत ने 2021 की शुरुआत जनवरी में नेपाल को घरेलू रूप से निर्मित कोविशील्ड टीके की 10 लाख खुराक उपहार में उस समय दीं, जब वह कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए संघर्ष कर रहा था। घातक वायरस से नेपाल में अब तक 8,25,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और लगभग 12,000 लोगों की मौत हुई है।

उसी महीने, भारत ने नेपाल को 2015 में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान क्षतिग्रस्त हुए शैक्षणिक संस्थानों के पुनर्निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में 30.66 करोड़ नेपाली रुपये (19.21 करोड़ रुपये) की अनुदान सहायता प्रदान की। इस भूकंप में लगभग 9,000 लोगों की जान गई थी और लगभग 22,000 घायल हुए थे। इसके साथ, भारत ने शैक्षणिक क्षेत्र की पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए नेपाल को 81.98 करोड़ नेपाली रुपये (51.37 करोड़ रुपये) की प्रतिपूर्ति की।

नेपाल द्वारा लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपने क्षेत्रों के रूप में दिखाते हुए एक नया नक्शा जारी करने के बाद 2020 में द्विपक्षीय संबंध नये निचले स्तर पर चले गए थे, जिस पर भारत ने काठमांडू को चेतावनी दी थी कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा “कृत्रिम विस्तार” उसे स्वीकार्य नहीं होगा।

घरेलू राजनीतिक मोर्चे पर, नेपाल ने 2021 में शीर्ष नेतृत्व में बदलाव देखा, जिसमें नेपाली कांग्रेस (नेकां) के प्रमुख शेर बहादुर देउबा एक महीने तक चले नाटकीय घटनाक्रम के बाद जुलाई में रिकॉर्ड पांचवीं बार प्रधानमंत्री बने।

शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसले में, राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को विपक्षी नेता देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का निर्देश दिया और प्रतिनिधि सभा को भंग करने के उनके “असंवैधानिक” कदम को खारिज कर दिया।

देउबा 13 जुलाई को औपचारिक रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री बने। हालांकि कुछ ही दिन बाद 18 जुलाई को 75 वर्षीय नए प्रधानमंत्री ने बहाल किए गए निचले सदन में विश्वास मत कराने की बात कर आश्चर्यचकित कर दिया और आराम से जीत हासिल कर ली, जिससे कोविड -19 महामारी के बीच हिमालयी राष्ट्र में एक आम चुनाव टल गया।

एक दिन बाद, 19 जुलाई को देउबा ने अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, परंपरागत और धार्मिक संबंधों पर आधारित द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर अपने विचार साझा किए।

इस वर्ष मुख्य विपक्षी दल एवं नेपाल की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएन-यूएमएल को अगस्त में आधिकारिक रूप से विभाजित होते देखा गया, जब वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल ने नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) छोड़ दी और सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट की स्थापना की।

इस बीच, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत से संबंधित टिप्पणी करके विवाद भड़काने का अपना सिलसिला जारी रखा। जून में, प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ओली ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित एक कार्यक्रम में दावा किया कि योग की उत्पत्ति नेपाल में हुई थी, न कि भारत में।

हालांकि, ओली की इस बार की टिप्पणी द्विपक्षीय संबंधों को कोई बड़ा नुकसान पहुंचाने में विफल रही। उन्होंने 2020 में यह दावा करके एक विवाद खड़ा कर दिया था कि भगवान राम का जन्म नेपाल के चितवन जिले के माडी क्षेत्र में हुआ था, न कि भारत के अयोध्या में।

नेपाल के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने जनवरी में नयी दिल्ली का दौरा किया और अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात की। यात्रा के दौरान, उन्होंने कहा कि सीमा मुद्दे को हल करना नयी दिल्ली और काठमांडू दोनों की “साझा प्रतिबद्धता” है और सुझाव दिया कि दोनों पक्ष इससे निपटने के तौर-तरीकों पर काम कर रहे हैं।

देउबा प्रशासन में नेपाल-भारत द्विपक्षीय संबंधों में गति लाने और द्विपक्षीय जुड़ाव के स्तर को बढ़ाने के प्रयास जारी रहे। जुलाई में देउबा के सत्ता में आने के बाद से दोनों पक्षों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है।

सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान, जयशंकर ने न्यूयॉर्क में अपने नए नेपाली समकक्ष डॉ नारायण खड़का से मुलाकात की और दोनों ने दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति व्यक्त की।

नवंबर की शुरुआत में, ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के मौके पर, प्रधानमंत्री मोदी ने देउबा के हिमालयी राष्ट्र का प्रमुख बनने के बाद पहली बार उनसे मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 का मुकाबला करने तथा महामारी के बाद उबरने के प्रयासों पर ‘सार्थक चर्चा’ की।

उसी महीने, नेपाल के सेना प्रमुख जनरल प्रभु राम शर्मा ने दो पड़ोसी देशों के बीच रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए भारत की चार दिवसीय यात्रा शुरू की। अपने भारतीय समकक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे के निमंत्रण पर नयी दिल्ली आए जनरल शर्मा को राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने ‘भारतीय सेना के जनरल’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया

कनाडा और अमेरिका में भीषण गर्मी से सैकड़ों लोगों की मौत की आशंका, गर्मी ने सभी रिकॉर्ड तोड़े attacknews.in

सालेम (अमेरिका), 3 जुलाई (एपी) कनाडा और अमेरिका के ओरेगन तथा वाशिंगटन में भीषण गर्मी पड़ रही है और वहां गर्मी ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

ओरेगन के स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि गर्मी के कारण 95 से अधिक लोगों की मौत हो गयी है और राज्य की सबसे बड़ी काउंटी मुल्टनोमा में शुक्रवार से लू चलने के बाद से 45 लोगों की मौत हो चुकी है।

वहीं, कनाडा के पश्चिमी प्रांत ब्रिटिश कोलंबिया के मुख्य कोरोनर लीसा लैपोइंते ने बताया कि उनके कार्यालय को शुक्रवार से बुधवार को दोपहर एक बजे के बीच कम से कम 486 लोगों की ‘‘अचानक और प्रत्याशित तरीके से मौत’’ होने की खबरें मिली हैं।

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इनमें से कितनी मौत गर्मी की वजह से हुई लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अत्यधिक गर्मी के कारण मौत की संख्या बढ़ रही है।’’

वैंकूवर के पुलिस सर्जेंट स्टीव एडिसन ने एक बयान में कहा, ‘‘वैंकूवर में कभी इस तरह की गर्मी नहीं पड़ी और दुखद यह है कि इसके कारण दर्जनों लोग मर रहे हैं।’’

वाशिंगटन राज्य प्राधिकारियों ने गर्मी के कारण 20 से अधिक लोगों के मरने की खबर दी है लेकिन यह संख्या बढ़ सकती है।

मौसम विज्ञानियों ने उत्तरपश्चिम पर अत्यधिक दबाव बढ़ने और मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन को इस गर्मी की वजह बताया है।

सिएटल, पोर्टलैंड और कई अन्य शहरों में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं और कुछ स्थानों पर पारा 46 डिग्री सेल्सियस से पार चला गया है। हालांकि पश्चिमी वाशिंगटन, ओरेगन और ब्रिटिश कोलंबिया में तापमान थोड़ा कम हुआ है लेकिन अंदरुनी क्षेत्रों में अब भी भीषण गर्मी पड़ रही है। कनाडा के दक्षिण अल्बर्टा और सस्काचवान और वाशिंगटन, ओरेगन, इडाहो और मोंटाना में गर्मी की चेतावनी जारी की गयी है।

ओरेगन की मुल्टनोमा काउंटी के मेडिकल परीक्षक ने 45 लोगों की मौत हाइपरथर्मिया यानी शरीर का तापमान असामान्य रूप से बढ़ने के कारण बतायी। इनकी आयु 44 से 97 वर्ष के बीच की थी। इस काउंटी के तहत पोर्टलैंड भी आता है। काउंटी ने बताया कि ओरेगन में 2017 और 2019 के बीच हाइपरथर्मिया से केवल 12 लोगों की मौत हुई थी।

किंग काउंटी के मेडिकल परीक्षक कार्यालय ने बताया कि गर्मी के कारण कम से कम 13 लोगों की मौत हो गयी। इनकी आयु 61 से 97 वर्ष के बीच थी। पूर्वी वाशिंगटन में स्पोकेन दमकल विभाग को बुधवार को एक अपार्टमेंट में दो लोग मृत मिले जिनकी मौत गर्मी की वजह से होने की आशंका है।

अमेरिका, कनाडा में गर्मी के कारण मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका

अमेरिका में प्रशांत उत्तरपश्चिमी क्षेत्र में मृतकों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है और चिकित्सा कर्मियों का कहना है कि अत्यधिक गर्मी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है।

ओरिगोन, वाशिंगटन राज्य और कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में सैकड़ों लोगों की मौत हुई और यह पता लगाया जा रहा है कि क्या सभी की मौत गर्म हवा की वजह से हुई। इस क्षेत्र में 25 जून को भयंकर गर्मी पड़नी शुरू हुई और मंगलवार को ही कुछ इलाकों को थोड़ी राहत मिली।

ओरिगन के चिकित्सक परीक्षक ने शुक्रवार को बताया कि अकेले इस राज्य में मृतकों कि संख्या कम से कम 95 पर पहुंच गयी है। सबसे अधिक मौतें मुल्टनोमा काउंटी में हुई। मृतकों में ग्वाटेमाला का एक प्रवासी मजदूर भी शामिल है।

कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया की मुख्य कोरोनर, लीजा लैपोइंते ने बताया कि उनके कार्यालय को 25 जून और बुधवार के बीच कम से कम 486 लोगों की ‘‘अचानक और अप्रत्याशित मौत’’ होने की सूचनाएं मिली हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इनमें से कितनी मौत गर्म हवा की वजह से हुई लेकिन गर्मी की वजह से ही ये मौत होने की आशंका है।

वाशिंगटन राज्य प्राधिकारियों ने गर्म हवा के कारण करीब 30 लोगों के मरने की खबर दी है लेकिन यह संख्या बढ़ सकती है। सिएटल में हार्बरव्यू मेडिकल सेंटर के आपात औषधि विभाग के निदेशक डॉ. स्टीव मिचेल ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वक्त के साथ यह संख्या बढ़ेगी। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि मृतकों की संख्या इससे अधिक हो सकती है।’’

मौसम विज्ञानियों ने इस भीषण गर्मी के लिए तापमान के सामान्य से 30 डिग्री अधिक जाने को जिम्मेदार बताया है जिससे उच्च दबाव का क्षेत्र बन गया है। पश्चिमी वाशिंगटन और ओरिगन में पारा थोड़ा गिरा लेकिन अंदरुनी उत्तरपश्चिमी इलाकों और कनाडा में गर्मी की चेतावनी अब भी जारी है।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से कहा:पाकिस्तान से आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ‘प्रमाणिक’ कार्रवाई करने की अपील करे attacknews.in

संयक्त राष्ट्र, 29 जून । भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को बताया कि अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान से उसकी सरजमीं से संचालित आतंकवादी संगठनों के खिलाफ “प्रभावी एवं अपरिवर्तनीय’’ कार्रवाई करने के लिए कहा जाए। भारत ने कहा कि इस्लामाबाद को “नैतिकता के उच्च मार्ग” पर चलने की बात नहीं कहनी चाहिए जो केवल झूठ की खानों से भरा हुआ है।

भारत के खिलाफ “तल्ख आक्षेप’’ लगाने के लिए पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए भारत के गृह मंत्रालय में विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) वी एस के कौमुदी ने कहा, “जैसा कि उम्मीद थी, पाकिस्तान का शिष्टमंडल फिर से भारत के खिलाफ निराधार आरोप लगाने और झूठे किस्से गढ़ने का रुख अपना रहा है।”

वह सोमवार को महासभा में सदस्य राष्ट्रों के आतंकवाद रोधी एजेंसियों के प्रमुख के दूसरे उच्च स्तरीय सम्मेलन में बोल रहे थे।

उन्होंने ‘आतंकवाद के वैश्विक संकट: वर्तमान खतरों और नये दशक के लिए उभरते चलनों के मूल्यांकन’ सत्र में कहा, “ जो देश अपने अल्पसंख्यक नागरिकों के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा में लिप्त रहता है और भारत के प्रति असुरक्षा की गहरी भावना रखता है एवं सुनियोजित नफरत पैदा करता है, उसके प्रतिनिधिमंडल से कुछ नया सुनने की हम उम्मीद भी नहीं कर सकते थे।”

उन्होंने कहा कि वैश्विक आतंकवाद रोधी रणनीति (जीसीटीएस) की सातवीं समीक्षा समाप्त हो गई है और पाकिस्तान के झूठे विमर्श को संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने सरसरी तौर पर खारिज कर दिया था।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन द्वारा जारी कौमुदी के बयान के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान से उसके नियंत्रण वाली सीमा में काम कर रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ प्रभावी, प्रमाणिक और अपरिवर्तनीय कार्रवाई करने को कहे और सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने को न कहे जिसमें सिर्फ झूठ छिपा है।”

पिछले साल प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक पड़ोस के अफगानिस्तान में अनुमानित 6,000 से 6,500 पाकिस्तानी आतंकवादी हैं, जिनमें से अधिकतर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के साथ हैं जो दोनों ही देश के लिए खतरा हैं।

यह रिपोर्ट भारत द्वारा पाकिस्तान से संयुक्त राष्ट्र में यह पूछे जाने के दो हफ्ते बाद आई थी कि क्यों दुनिया भर में उसे आतंकवाद का “अंतरराष्ट्रीय केंद्र” और “आतंकवादियों के लिए बेहतरीन पनाहगाह” माना जाता है।”

पिछले साल जून में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में 40,000 तक आतंकवादियों की मौजूदगी और वहां से आतंकवादियों ने पड़ोसी देशों पर हमला किया है यह बात सार्वजनिक तौर पर स्वीकार की थी।

कोरोना वायरस के प्रसार पर अंकुश के लिए ब्रिटेन से आने वाली यात्री उड़ानों पर रोक लगाएगा हांगकांग; जो भी व्यक्ति ब्रिटेन में दो घंटे से अधिक समय रहा उसे विमानों में चढ़ने की अनुमति नहीं होगी attacknews.in

हांगकांग, 29 जून (एपी) हांगकांग ने कहा है कि ब्रिटेन में फैल रहे कोरोना वायरस के नए स्वरूप के मद्देनजर वहां से आने वाली सभी यात्री उड़ानों पर रोक लगाई जाएगी और यह रोक बृहस्पतिवार से शुरू होगी।

सोमवार को जारी बयान में कहा गया कि ब्रिटेन को, वहां महामारी के फिर से बढ़ रहे प्रकोप को देखते हुए और वहां कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप के बड़े पैमाने पर फैलने के मद्देनजर ‘‘अत्यधिक उच्च जोखिम’’ की श्रेणी में रखा गया है।

उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में कोविड-19 के नए मामलों में से 95 प्रतिशत से अधिक मामले कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप के हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि डेल्टा स्वरूप अत्यधिक संक्रामक है।

हांगकांग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति ब्रिटेन में दो घंटे से अधिक समय रहा है उसे हांगकांग के विमानों में चढ़ने की अनुमति नहीं होगी। इससे पहले, पिछले वर्ष दिसंबर में भी हांगकांग ने ब्रिटेन से आने वाली उड़ानों पर रोक लगाई थी। बयान में बताया गया कि ब्रिटेन से आनी वाली उड़ानों पर एक जुलाई से पाबंदी है लेकिन यात्री हांगकांग से लंदन जाने वाली कुछ एयरलाइन की उड़ानों में टिकट बुक कर सकेंगे।

लीसेस्टर विश्वविद्यालय में विषाणु विज्ञानी डॉ. जुलियन टैंग ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से प्रतिबंध लगाया जाना उचित है। उन्होंने कहा, ‘‘ब्रिटेन पहले भी वायरस पर सफलतापूर्वक काबू नहीं पा सका और अब वायरस की इस हालिया लहर के पीछे संभवत: टीके को लेकर अति आत्मविश्वास है।’’ टैंग ने कहा कि देशों को कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप के प्रकोप को थामने के लिए अपनी कम से कम 80 फीसदी आबादी को टीका लगाना होगा।

हांगकांग ने यह पाबंदी ऐसे समय में लगाई है जब उसे लेकर ब्रिटेन तथा चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है। अर्द्ध-स्वायत्त हांगकांग 1997 में चीन को सौंपे जाने से पहले तक ब्रिटेन का एक औपनिवेशिक क्षेत्र था। ब्रिटेन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने पर चीन की आलोचना की है। हालांकि हांगकांग द्वारा उड़ान पर प्रतिबंध वहां फैल रहे कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने की सरकार की नीति का हिस्सा है।

रूसी कंपनी रोसातोम ने भारत की कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की पांचवीं इकाई का निर्माण शुरू किया attacknews.in

नयी दिल्ली, 29 जून । कुडनकुलम परमाणु बिजली घर (केएनपीपी) की पांचवीं इकाई के लिए निर्माण कार्य मंगलवार को शुरू हो गया और रूसी कंपनी रोसातोम ने कहा कि सबसे पहले रिएक्टर भवन का निर्माण किया जाएगा।

सरकार द्वारा संचालित रूसी कंपनी ने एक बयान में कहा कि 29 जून को एक आधिकारिक समारोह आयोजित किया गया था जिसमें कुडनकुलम बिजली घर के लिए रिएक्टर भवन की नींव में पहले कंक्रीट डाला गया।

कंपनी ने कहा कि मौजूदा महामारी के कारण लागू प्रतिबंधों को देखते हुए यह समारोह वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए से आयोजित किया गया।

रूसी कंपनी रोसातोम इस रिएक्टर का निर्माण कर रही है। भारत और रूस के बीच 10 अप्रैल 2014 को यूनिट तीन और यूनिट चार के निर्माण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। उसके बाद दोनों देशों के बीच कुडनकुलम एनपीपी यूनिट पांच और यूनिट छह के निर्माण पर बातचीत शुरू हुई और बाद में इस संबंध में समझौता हुआ। इन इकाइयों का निर्माण उसी डिजाइन के अनुरूप किया जाएगा जो यूनिट तीन और यूनिट चार के लिए तय किया गया था।

कंपनी ने कहा कि कई वर्षों से, कुडनकुलम एनपीपी निर्माण परियोजना रूस और भारत के घनिष्ठ सहयोग का प्रतीक रही है।

इस बिजली घर की यूनिट एक और यूनिट दो पहले ही चालू हो गयी है और यूनिट तीन तथा यूनिट चार के लिए काम चल रहा है।

हांगकांग के एप्पल डेली अखबार के संपादकीय लेखक फंग वाई कोंग को राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए विदेशी साठगांठ करने के संदेह पर किया गया गिरफ्तार attacknews.in

हांगकांग, 28 जून (एपी) हांगकांग के अब बंद हो चुके लोकतंत्र समर्थक समाचार-पत्र ‘एप्पल डेली’ के एक संपादकीय लेखक को रविवार की रात हवाईअड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया जब वह शहर से जाने का प्रयास कर रहे थे। स्थानीय मीडिया ने यह खबर दी।

स्थानीय समाचार-पत्र ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ और ऑनलाइन समाचार संगठन ‘सिटिजन न्यूज’ ने अज्ञात सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि संपादकीय लेखक फंग वाई कोंग को राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए विदेशी साठगांठ करने के संदेह पर गिरफ्तार किया गया।

स्थानीय मीडिया में आई खबरों के अनुसार फंग को जब गिरफ्तार किया गया उस वक्त वह संभवत: ब्रिटेन के लिए रवाना हो रहे थे।

पुलिस ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत रविवार रात हवाईअड्डे पर 57 वर्षीय एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था लेकिन उसकी पहचान नहीं बताई।

फंग दो हफ्तों के भीतर गिरफ्तार किए गए एप्पल डेली के सातवें कार्यकारी है ।

हांगकांग के अधिकारी अर्ध स्वायत्त शहर में असहमति की आवाजों को दबा रहे हैं, शहर की अधिकतर प्रख्यात लोकतंत्र समर्थक हस्तियों को गिरफ्तार कर रहे हैं और विधायिका से विपक्षी आवाजों को बाहर रखने के लिए हांगकांग के चुनाव कानूनों में सुधार कर रहे हैं।

उनकी गिरफ्तारी ऐसे वक्त में हुई है जब लोकतंत्र समर्थक ऑनलाइन समाचार संगठन ‘स्टैंड न्यूज’ ने एक बयान में कहा कि वह जून से पहले अपनी साइट पर प्रकाशित टिप्पणियों को हटा लेगा और सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर चिंताओं के चलते चंदा जुटाने के अपने प्रयासों को रोक देगा।

स्टैंड न्यूज ने एक बयान में कहा कि ये कदम समाचार संगठन के समर्थकों, लेखकों को और हांगकांग की “साहित्यिक न्यायिक जांच’’ में संपादकीय कर्मियों को सुरक्षित रखने के लिए उठाए गए हैं।

एहतियाती कदम उठाने के बावजूद स्टैंड न्यूज ने समाचार देने की प्रतिबद्धता जताई।

पिछले हफ्ते, एप्पल डेली ने अपना अंतिम संस्करण प्रकाशित किया था और कर्मचारियों की सुरक्षा एवं भुगतान कर पाने में असमर्थता जताते हुए अखबार का प्रकाशन-संचालन बंद कर दिया था।

सऊदी अरब के पुरुष संरक्षकता कानूनों की खुलकर आलोचना करने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ताओं समर बदावी और नसीमा अल-सदा – को जेल से रिहा किया,सुनाई गई थी 5 साल के कारावास की सजा attacknews.in

दुबई (संयुक्त अरब अमीरात), 28 जून (एपी) सऊदी अरब की दो महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया है।

इससे करीब तीन साल पहले युवराज (क्राउन प्रिंस) मोहम्मद बिन सलमान ने अधिक स्वतंत्रता दिए जाने की शांतिपूर्ण रूप से वकालत करने वाली महिला कार्यकर्ताओं के खिलाफ व्यापक कार्रवाई की थी।

मानवाधिकार समूहों ने दो महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा किए जाने की रविवार को जानकारी दी।

ऐसा प्रतीत होता है कि 2018 की कार्रवाई में हिरासत में ली गईं सभी कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया है, लेकिन एक महिला कार्यकर्ता माया अल जहरानी की रिहाई के बारे में अभी स्पष्ट जानकारी नहीं है।

मुख्य रूप से सऊदी अरब पर ध्यान केंद्रित करने वाले लंदन स्थित ‘एएलक्यूएसटी’ अधिकार समूह ने बताया कि दो महिलाओं – समर बदावी और नसीमा अल-सदा – को शनिवार देर रात या रविवार तड़के रिहा कर दिया गया। ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने भी उनकी रिहाई की पुष्टि की। महिलाओं को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिनमें से दो साल की सजा निलंबित कर दी गई है।

इन महिलाओं ने सऊदी अरब के पुरुष संरक्षकता कानूनों की खुलकर आलोचना की थी। इन कानूनों ने महिलाओं के पतियों, पिताओं और कुछ मामलों में उनके बेटों को अधिकार दिया था कि वे महिलाओं को पासपोर्ट हासिल करने और यात्रा करने के संबंध में नियंत्रित कर सकते थे। उन्होंने महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार दिए जाने की भी वकालत की थी। ये दोनों प्रतिबंध हटा दिए गए हैं।

मानवाधिकार समूहों ने ‘एसोसिएडेट प्रेस’ को बताया कि दोनों महिलाओं को सशर्त रिहा किया गया है और वे पांच साल तक विदेश यात्रा नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा कि जेल से रिहा की गई अन्य सऊदी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की तरह इन दोनों महिलाओं को भी मीडिया से बात करने और अपने मामले को लेकर कुछ भी ऑनलाइन पोस्ट करने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।

इससे पहले, लगभग एक दर्जन महिलाओं ने सऊदी न्यायाधीशों को बताया था कि पूछताछ के दौरान नकाबपोश पुरुषों ने उन्हें उनकी पीठ एवं जांघों पर बेंत से मारा था और उन्हें पानी के भीतर ले जाकर यातनाएं दी थीं। कुछ महिलाओं का आरोप है कि उन्हें जबरन छुआ गया और उन्हें बलात्कार एवं जान से मारने की धमकी दी गई। एक महिला ने जेल में आत्महत्या का प्रयास किया था।

आज भी मनुष्य की औसत आयु 150 बरस जीवन की है;सबसे पुराना और अभी भी सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका”गोम्पर्ट्ज़ समीकरण” से जीवन प्रत्याशा और जीवनकाल की गणना की गयी attacknews.in

ब्राइटन (ब्रिटेन), 28 जून (द कन्वरसेशन) हम में से ज्यादातर लोग 80 वर्ष के आसपास जीने की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन कुछ लोग उम्मीद से आगे जाकर सौ बरस से अधिक भी जीते है। ओकिनावा, जापान और सार्डिनिया, इटली जैसे स्थानों में, ऐसे कई लोग हैं जो अपनी उम्र का सैकड़ा पार कर चुके हैं।

इतिहास के सबसे उम्रदराज व्यक्ति के तौर पर फ्रांस की महिला जीन कैलमेंट का नाम लिया जाता है, जो 122 वर्ष की थी। वह 1875 में पैदा हुई थीं और उस समय औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 43 वर्ष थी।

ऐसे में एक सवाल जो लोग सदियों से पूछते आ रहे हैं कि दरअसल मनुष्य कितने समय तक जीवित रह सकता है? एक ओर जहां औसत जीवन प्रत्याशा (एक व्यक्ति के कितने वर्ष तक जीवित रहने की उम्मीद है) की गणना करना अपेक्षाकृत आसान है, वहीं अधिकतम जीवनकाल (एक मानव संभवतः कितनी लंबी उम्र तक जी सकता है) का अनुमान लगाना बहुत कठिन है।

पिछले अध्ययनों ने इस सीमा को 140 वर्ष की आयु के करीब रखा है। लेकिन हाल ही के एक अध्ययन में कहा गया है कि मानव जीवन काल की सीमा 150 वर्ष के करीब है।

जीवनकाल की गणना

जीवन प्रत्याशा और जीवनकाल की गणना के लिए सबसे पुराना और अभी भी सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका गोम्पर्ट्ज़ समीकरण है। इस संबंध में पहला आकलन 19वीं शताब्दी में किया गया था कि बीमारी से मानव मृत्यु दर समय के साथ तेजी से बढ़ती है। निश्चित रूप से, इसका मतलब है कि कैंसर, हृदय रोग और अन्य संक्रमणों से आपकी मृत्यु की संभावना हर आठ से नौ साल में लगभग दोगुनी हो जाती है।

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे सूत्र में बदलाव किया जा सकता है कि कैसे विभिन्न कारक किसी आबादी के जीवन काल को प्रभावित करते हैं। गोम्पर्ट्ज़ गणना का उपयोग स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम की गणना के लिए भी किया जाता है – यही कारण है कि ये कंपनियां यह जानने की इच्छुक रहती हैं कि क्या आप धूम्रपान करते हैं, क्या आप विवाहित हैं, या ऐसा ही कुछ और, जिससे वह यह अनुमान लगा सकें कि आप कितने दिन और जीएंगे।

हम कितने समय तक जीवित रहेंगे, यह पता लगाने का एक तरीका यह है कि उम्र के साथ हमारे अंगों की कार्यक्षमता कैसे और कितनी घटती है। अंगों की घटती कार्यक्षमता का मिलान हम अपनी उम्र से करते हैं। उदाहरण के लिए, आंख का कार्य और व्यायाम करते समय हम कितनी ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, उम्र बढ़ने के साथ गिरावट का एक सामान्य रूख दिखाते हैं, अधिकांश गणनाओं से संकेत मिलता है कि औसत व्यक्ति के अंग लगभग 120 वर्ष का होने तक काम करेंगे।

लेकिन ये अध्ययन लोगों की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनमें बढ़ती भिन्नता को भी उजागर करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों की किडनी की कार्यक्षमता उम्र के साथ तेजी से कम होती जाती है जबकि अन्य में ऐसा नहीं होता।

अब सिंगापुर, रूस और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने अधिकतम मानव जीवन काल का अनुमान लगाने के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपनाया है। एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करते हुए, वे अनुमान लगाते हैं कि मानव जीवन की सीमा लगभग 150 वर्ष है।

150 वर्ष तक जीना

स्वाभाविक रूप से, आपकी मृत्यु की संभावना और बीमारी से आप कितनी तेजी से और पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, के बीच एक संबंध होना चाहिए। यह आपका सामान्य शारीरिक संतुलन बनाए रखने का एक मापदंड है। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ इस संतुलन को बनाए रखने की क्षमता कम होती जाती है। आमतौर पर, व्यक्ति जितना कम उम्र होता है, बीमारी से उतनी ही तेजी से ठीक होता है।

लेकिन इस प्रकार के अनुमान यह मानते हैं कि मौजूदा बड़ी उम्र की आबादी को नये प्रयोगों का कोई फायदा नहीं मिल पाएगा। जैसे कि सामान्य बीमारियों के लिए उन्हें कोई नया चिकित्सा उपचार नहीं मिलेगा। हालांकि इस दिशा में प्रगति तो होती है, लेकिन उसका लाभ कुछ लोगों को मिल पाता है, दूसरों को नहीं।

उदाहरण के लिए, आज जन्म लेने वाला बच्चा अपनी जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने के लिए लगभग 85 वर्षों की चिकित्सा प्रगति पर भरोसा कर सकता है, जबकि आज जो व्यक्ति 85 वर्ष का है उसे अपनी जीवन प्रत्याशा के लिए वर्तमान चिकित्सा तकनीकों तक ही सीमित रहना होगा।

अध्ययन के अनुसार अधिकतम जीवनकाल के लिए आपको तीन महत्वपूर्ण चीजों की आवश्यकता है। पहला है अच्छा जीन, जो सौ वर्ष से अधिक जीने की अच्छी उम्मीद जगाता है। दूसरा, एक उत्कृष्ट आहार और व्यायाम योजना, जो जीवन प्रत्याशा में 15 साल तक जोड़ सकती है। और अंत में, तीसरा है समय के साथ उपचार और दवाओं के ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि जो स्वस्थ जीवन काल को बढ़ा सकती है।

वर्तमान में, सामान्य स्तनधारियों के स्वस्थ जीवन काल को 15-20% तक बढ़ाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि उम्र बढ़ने के जीव विज्ञान के बारे में हमारी समझ अधूरी है। लेकिन प्रगति की वर्तमान गति को देखते हुए, हम विश्वासपूर्वक जीवन प्रत्याशा में वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला को कोविशील्ड का टीका लगवाने वालों के यूरोपीय संघ की यात्रा पर रोक की समस्या हल होने की उम्मीद attacknews.in

नयी दिल्ली, 28 जून । सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला ने सोमवार को कहा कि उन्होंने कोविशील्ड का टीका लगवाने वाले भारतीयों को यूरोपीय संघ की यात्रा के दौरान आ रही समस्या का मसला यूरोपीय संघ के उच्चतम स्तर पर उठाया है और इसके जल्द ही समाधान की उम्मीद है।

कोविशील्ड वैक्सीन का विकास ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका ने किया है और इसे पुणे स्थित वैक्सीन विनिर्माता द्वारा भारत में बनाया जा रहा है।

पूनावाला ने ट्वीट किया, ‘‘मुझे पता चला कि कोविशील्ड लेने वाले बहुत से भारतीयों को यूरोपीय संघ की यात्रा को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मैं सभी को विश्वास दिलाता हूं कि मैंने इसे उच्चतम स्तर पर उठाया है और उम्मीद है कि इस मामले को जल्द ही नियामकों और राजनयिक स्तर पर हल कर लिया जाएगा।’’

यूरोपीय संघ (ईयू) ने अब तक एस्ट्राजेनेका, ऑक्सफोर्ड द्वारा विकसित वैक्सजेवरिया को ही मान्यता दी है।

यूरोपीय चिकित्सा एजेंसी द्वारा अनुमोदित अन्य टीके बायोएनटेक-फाइजर, मॉडर्ना और जेनसेन (जॉनसन एंड जॉनसन) हैं।

दुनिया का नंबर वन आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को शहीद बताते समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की जुबान फिसल गई थी attacknews.in

इस्लामाबाद, 27 जून । पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने जबान फिसलने के कारण अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को ‘शहीद’ कह दिया था।

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने जून 2020 में संसद में एक भाषण के दौरान कहा था, “अमेरिकी एबटाबाद आए और ओसामा बिन लादेन को शहीद कर दिया। उसके बाद क्या हुआ? पूरी दुनिया ने हमें शाप दिया और हमारे बारे में बुरा बोला।”

दुनिया के नंबर एक आतंकी ओसामा बिन लादेन के खात्मे को 10 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन उसका भूत आज भी पाकिस्तान का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है. पाकिस्तान आज भी यह तय नहीं कर पा रहा है कि ओसामा बिन लादेन आतंकी था या शहीद।

इमरान खान ने ओसामा को बताया था शहीद

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ अरसा पहले संसद में खड़े होकर अलकायदा के आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को शहीद बता दिया था।इसके साथ ही खुद को आतंक पीड़ित बताने का ढोंग करने वाला पाकिस्तान पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो गया था।

इमरान के कबूलनामे के बाद FATF ने पाकिस्तान पर शिकंजा कसते हुए उस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लागू कर दिए. जिनसे बाहर निकलने के लिए वह आज भी छटपटा रहा है।

पीएम इमरान की जुबान फिसल गई थी’

अब FATF के फंदे से बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान ने एक बार फिर नई चाल चली है. पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि पीएम इमरान खान की संसद में जबान फिसल गई थी और उनका देश ओसामा बिन लादेन को अलकायदा का आतंकी मानता है।

‘Geo TV’ को दिए इंटरव्यू में फवाद चौधरी ने कहा, ‘पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के खिलाफ जंग के समर्थन में मतदान किया था।हम यूएन के उस लिस्ट के वोटर हैं, जिसने ओसामा को आतंकवादी घोषित किया था.’ फवाद चौधरी ने ओसामा बिन लादने पर इमरान के बयान के बारे में पूछे जाने पर कहा कि पीएम की जुबान फिसल गई थी।

कुरैशी ने लादेन पर साध ली थी चुप्पी

ओसामा बिन लादेन को लेकर पाकिस्तान की उलझन हाल ही में तब सामने आई थी,जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अफगानिस्तान के टोलो न्यूज को इंटरव्यू दिया था।तब रिपोर्टर ने इमरान के बयान का हवाला देते हुए उनसे पूछा था कि पाकिस्तान ओसामा बिन लादेन को आतंक मानता है या शहीद. उस समय कुरैशी ने सवाल पर चुप्पी साध ली थी और कहा था कि वे इस सवाल पर बात नहीं करना चाहते।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को घोषित आतंकवादी देश बताकर कहा कि;कुछ देश ऐसे हैं जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने एवं आतंकवादियों को पनाह देने के लिए “साफ तौर पर दोषी” हैं attacknews.in

संयुक्त राष्ट्र, 27 जून । भारत ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुये संयुक्त राष्ट्र में कहा कि वह पिछले कई दशकों से खासकर सीमा पार से होने वाले आतंकवाद का शिकार रहा है और कुछ देश ऐसे हैं जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने एवं आतंकवादियों को पनाह देने के लिए “साफ तौर पर दोषी” हैं।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि और राजदूत टी एस तिरुमूर्ति ने दूसरे आतंकवाद निरोधक सप्ताह के दौरान ‘कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में ‘आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटना’ विषय पर उच्च स्तरीय ऑनलाइन कार्यक्रम में कहा कि आतंकवाद के खतरे से सफलतापूर्वक निपटने के लिए आर्थिक संसाधनों तक आतंकवादियों की पहुंच को रोकना अहम है।

तिरुमूर्ति ने शुक्रवार को कहा, “भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है। वह खासकर सीमा पार से आतंकवाद का शिकार रहा है।”

उन्होंने कहा कि कुछ देश ऐसे हैं, जिनके पास आतंकवाद को धन मुहैया कराने से रोकने के लिए जरूरी क्षमताओं और कानूनी-परिचालन ढांचों का अभाव है, वहीं “कुछ अन्य देश हैं जो आतंकवाद को सहायता देने और आतंकवादियों को इच्छा से आर्थिक सहयोग और पनाह देने के साफ-साफ दोषी’’ हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें अक्षम देशों की क्षमताओं को निश्चित तौर पर बढ़ाना चाहिए, वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दोषियों का सामूहिक रूप से साफ तौर पर नाम लेना चाहिए और उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहिए।’’

संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि की ये टिप्पणियां पाकिस्तान की ओर स्पष्ट तौर पर इशारा करती हुई प्रतीत होती हैं।

तिरुमूर्ति ने आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) को मजूबत करने और संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद निरोधक ढांचे को अधिक वित्त उपलब्ध कराने की जरूरत पर बल दिया। भारत ने इस कार्यक्रम का आयोजन फ्रांस के स्थायी मिशन, संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय, संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद निरोध कार्यालय और सुरक्षा परिषद की आतंकवाद रोधी समिति कार्यकारी निदेशालय के साथ मिलकर किया था।

उन्होंने चिंता जतायी कि कोविड-19 महामारी से आतंकवाद वित्त पोषण निरोधक (सीएफटी) के प्रयासों को नए खतरे पैदा हुए है और फर्जी परमार्थ, फर्जी गैर लाभकारी संगठन (एनपीओ) और लोगों से निधि एकत्रित करने जैसे तरीके आतंकवाद के वित्त पोषण के अधिक स्रोत बन रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवादी संगठनों ने वित्त जुटाने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। क्षेत्र में विभिन्न व्यक्तियों, एनपीओ और आतंकवादी संगठनों के बीच संबंधों की पहचान को उचित महत्व दिया गया है। हम आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नयी तकनीकों के दुरुपयोग से होने वाले खतरे को लेकर सतर्क हैं लेकिन इनमें से कई तकनीकों के लाभ जोखिम से कहीं अधिक हैं और हमारे सीएफटी के प्रयासों को मजबूत करने के लिए इनका उपयोग करने की आवश्यकता है।’’

तिरुमूर्ति ने कार्यक्रम में कहा कि भारत उन्नत विश्लेषण करने, वित्तीय खुफिया ढांचे को मजबूत करने और आतंकवाद के वित्त पोषण वाले मामले कानून प्रवर्तन एजेंसियों को जल्द से जल्द सौंपने के लिए कृत्रिम बुद्धिमता, चैटबॉट्स ऐप, वर्चुअल सहायक, लोकेशन बुद्धिमता समेत अन्य चीजें लाकर अपने वित्तीय खुफिया नेटवर्क को उन्नत बनाने की प्रक्रिया में है।

उन्होंने कहा कि ऑडिट से बचने के लिए नकद में लेनदेन अब भी आतंकवाद के वित्त पोषण के प्रमुख तरीकों में से एक है। उन्होंने कहा कि बैंकों के जरिए नकद लेनदेन को कम करने की ओर सरकार के कदम बैंकों के जरिए नकदी के प्रवाह को नियंत्रित करने में प्रभावी साबित हो रहे हैं।

राजूदत ने कहा कि भारत 2010 से वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) का सदस्य है और एफएटीएफ की अनुशंसा के अनुसार आतंकवाद के वित्त पोषण से जुड़ा राष्ट्रीय जोखिम आकलन नियमित तौर पर किया जाता है ताकि आतंकवादियों द्वारा पैदा खतरों की पहचान की जा सके।

उन्होंने कहा कि भारत ने 2019 और 2020 में राष्ट्रीय जोखिम आकलन किया और धन शोधन तथा आतंकवाद के वित्त पोषण के खतरों के संबंध में एफएटीएफ की अनुशंसाओं को लागू करने में ‘‘जबरदस्त प्रगति’’ की है। भारत एफएटीएफ के आगामी आकलन की तैयारी कर रहा है।

पाकिस्तान आतंकवादी देश होने की मुहर बरकरार, FATF ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर पर कार्रवाई में विफल रहने से ‘ग्रे (संदिग्ध)सूची’ में डाला attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 जून । धन शोधन और आतंकवाद को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाले संगठनों पर लगाम लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (एफएटीएफ) ने शुक्रवार को कहा कि इस्लामाबाद, संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर पर कार्रवाई करने में विफल रहा इसलिए पाकिस्तान को ‘ग्रे (संदिग्ध)सूची’ में बरकरार रखा जाएगा।

एफएटीएफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को अपनी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कमियों को दूर करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए। पेरिस स्थित एफएटीएफ के प्रमुख मार्कस प्लेयर ने कहा कि डिजिटल माध्यम से आयोजित बैठक में यह निर्णय लिया गया।

प्लेयर ने डिजिटल माध्यम से आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पाकिस्तान “इन्क्रीज्ड मॉनिटरिंग लिस्ट” (निगरानी की सूची) में रहेगा जिसे ‘ग्रे सूची’ के नाम से भी जाना जाता है। प्लेयर ने कहा कि पाकिस्तान को 2018 में जिन 27 बिंदुओं पर कार्रवाई करने का लक्ष्य दिया गया उसमें से 26 पर कार्रवाई की गई है।

उन्होंने कहा कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान से कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई करे। पाकिस्तान में रह रहे इन आतंकवादियों में जैश ए मोहम्मद का सरगना अजहर, लश्कर ए तय्यबा का संस्थापक सईद और उसका ‘ऑपरेशनल कमांडर’ जकीउर रहमान लखवी शामिल है।

अजहर, सईद और लखवी, 26/11 मुंबई हमला और 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमलों समेत कई आतंकी वारदातों में शामिल रहे हैं जिसके कारण भारत को उनकी तलाश है। प्लेयर ने कहा कि पाकिस्तानी सरकार धन शोधन को रोकने में नाकामयाब रही है जिससे भ्रष्टाचार और आतंकवाद का वित्त पोषण होता है।