केंद्र सरकार ने देश के 383 रिहायशी स्कूलों एवं 680 हॉस्टलों का नाम बदल कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय स्कूल रखने का निर्णय लिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 05 फरवरी । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सभी को समावेशी एवं गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शिक्षा मंत्रालय ने देश के 383 रिहायशी स्कूलों एवं 680 हॉस्टलों का नाम बदल कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय स्कूल रखने का निर्णय लिया है।

मंत्रालय के इस निर्णय पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ़ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा, “शिक्षा मंत्रालय ने कम आबादी वाले खासकर आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ स्कूल खोलना मुश्किल है और उन शहरी बच्चों, जिन्हें देखभाल की विशेष आवश्यकता है, के लिए समग्र शिक्षा योजना के तहत राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को आर्थिक सहायता प्रदान की है ताकि वे रिहायशी स्कूल एवं हॉस्टल खोल सकें। हमने नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए यह निर्णय लिया है कि इन रिहायशी स्कूलों एवं हॉस्टलों का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय स्कूल रखा जाएगा।”

उन्होंने कहा कि देश भर में कुल 383 स्कूल एवं 680 हॉस्टलों का नाम बदला जाएगा। इसके अलावा यह सभी संस्थान कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालयों के लिए बनाए गए नियमों का पालन करेंगे और उन जैसी गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए प्रयास करेंगे।

डॉ निशंक ने कहा, “नेताजी का नाम ना सिर्फ छात्रों बल्कि शिक्षकों, अन्य स्टाफ के सदस्यों को और स्कूलों के प्रशासन को गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा.।”

इन सभी स्कूलों में नियमित पाठ्यक्रम के अलावा विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण, सेल्फ-डिफेन्स, इत्यादि का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

यूजीसी नेट परीक्षा मई माह में 2, 3, 4, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 14 और 17 तारीख को दो पालियों में आयोजित होगी attacknews.in

नयी दिल्ली, 2 फरवरी। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी मई महीने में जूनियर प्रोफेसर फेलोशिप और सहायक प्रोफेसर के लिए यूजीसी-नेट परीक्षा आयोजित करेगी। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने मंगलवार को ट्वीट कर यूजीसी नेट परीक्षा 2021 की तारीखों का एलान किया।

उन्होंने बताया, ‘‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी 2, 3, 4, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 14 और 17 मई को यूजीसी-नेट परीक्षा आयोजित करेगी।’’ परीक्षा का आयोजन दो पालियों में होगा। पहली पाली सुबह 9 बजे से 12 बजे और दूसरी पाली दोपहर बाद 3 बजे से 6 बजे तक आयोजित होगी।

यूजीसी नेट परीक्षा का आयोजन राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) करेगी। परीक्षा की अवधि तीन घंटे की होगी ।

परीक्षा का आयोजन कम्प्यूटर आधारित परीक्षा विधि के माध्यम से होगा।

आनलाइन आवेदन फार्म 2 फरवरी 2021 से उपलब्ध होंगे और 2 मार्च 2021 तक आवेदन किये जा सकते हैं।

कमलनाध सरकार के मंत्रियों का खुद को बाप बताने वाली दमोह पथरिया सीट से बसपा विधायक रामबाई हो गई 10वीं की परीक्षा में फेल, विज्ञान विषय का प्रश्नपत्र उनकी समझ में नहीं आया attacknews.in

दमोह, 31 जनवरी । मध्यप्रदेश के दमोह जिले की पथरिया विधानसभा क्षेत्र की बसपा विधायक श्रीमती रामबाई सिंह ने ओपन स्कूल की दसवीं की परीक्षा दी थी, जिसमें वे एक विषय में फेल हो जाने के कारण उत्तीर्ण होने से वंचित रह गई।

अपनी कार्यप्रणाली के लिए चर्चित रहने वाली प्रदेश के पथरिया विधानसभा क्षेत्र की विधायक श्रीमती रामबाई ने शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य ओपन स्कूल के माध्यम से दसवीं की परीक्षा दमोह के शासकीय जेपीबी कन्या शाला के परीक्षा केंद्र पर दी थी, जिसमें उनके द्वारा सभी विषयों पर उपस्थित होकर प्रश्न पत्र हल किए थे। लेकिन इन प्रश्न पत्रों में विज्ञान विषय में उन्हें उत्तीर्ण होने लायक अंक भी प्राप्त हुए और वे दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सकी। अब उन्हें एक बार फिर विज्ञान विषय की परीक्षा देकर 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण के लिए प्रयास करना होगा।

बसपा विधायक राम बाई ने खुद को बताया था ‘मंत्रियों का बाप’, वीडियो सोशल मीडिया पर हुआ था वायरल

कमलनाध के मुख्यमंत्री बनने पर राज्य की 230 सीटों में से कांग्रेस की 114, बसपा की दो, सपा की एक और निर्दलीय चार विधायकों के समर्थन से कांग्रेस को कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल था।

इसी दौरान पथरिया विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की विधायक राम बाई ने एक बार फिर विवादित बयान दिया था । इस कथित बयान में उन्होंने खुद को राज्य की कमलनाध सरकार के मंत्रियों का बाप बताया है। बसपा विधायक रामबाई का गणतंत्र दिवस के दिन वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था ।

इस वीडियो में वे मंत्री न बनाए जाने के सवाल पर कह रही हैं कि, “मंत्री बन जाएंगे तो अच्छा काम करेंगे और नहीं बनेंगे तो भी अच्छे काम करेंगे, विधायक बनना था सो बन गए, अब मुख्यमंत्री को मंत्री बनाना होगा तो बनाएंगे, नहीं बनाना हो तो नहीं बनाएंगे, वैसे हम मंत्रियों के बाप हैं।”

राज्य की 230 सीटों में से कांग्रेस की 114, बसपा की दो, सपा की एक और निर्दलीय चार विधायकों के समर्थन से कांग्रेस को कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल था।

मंत्री न बनाए जाने से राम बाई काफी नाराज थी और लगातार विवादित बयान देती रहीं । पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि राज्य में भी कांग्रेस सरकार की कर्नाटक जैसी स्थिति हो सकती है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि का चयन संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा के लिए हुआ attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच जनवरी । लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि का चयन संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा के लिए हुआ है। यूपीएससी ने अपनी रिजर्व सूची के 89 उम्मीदवारों की सूची जारी की है।

रामजस कॉलेज से राजनीति विज्ञान (स्नातक) की पढ़ाई करने वाली अंजलि ने पहले प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा 2019 के लिए उत्तीर्ण किया।

अंजलि ने मंगलवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इस परीक्षा में चुने जाने पर मैं काफी खुश हूं। मैं समाज के लिए कुछ करने की खातिर सिविल सेवा में शामिल होना चाहती हूं क्योंकि मैंने हमेशा अपने पिता की प्रतिबद्धता देश के लोगों के प्रति देखी।’’

उन्होंने कहा कि उनकी बड़ी बहन आकांक्षा ने उन्हें परीक्षा पास करने में मदद की जो चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सफलता का श्रेय विशेष रूप से मेरी बड़ी बहन को जाता है। उन्होंने मुख्य परीक्षा की तैयारियों में मेरी काफी मदद की।’’

सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन वार्षिक रूप से तीन चरणों में होता है — प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार। इस परीक्षा के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) एवं अन्य सेवाओं के अधिकारियों का चयन होता है।

2019 के सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम चार अगस्त 2020 को घोषित किए गए थे जिनमें आईएएस, आईएफएस, आईपीएस एवं अन्य समूह ‘ए’ तथा समूह ‘बी’ की सेवाओं के लिए 829 उम्मीदवार उत्तीर्ण हुए थे, जबकि रिक्त पदों की संख्या 927 थी।

2019 के सिविल सेवा परीक्षा के आधार पर आयोग ने सोमवार को अंजलि सहित 89 और उम्मीदवारों को अपनी रिजर्व सूची से उत्तीर्ण घोषित किया।

CBSE की कक्षा दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं चार मई से 10 जून के बीच आयोजित की जाएगीं जबकि प्रैक्टिकल मार्च में होंगे attacknews.in

नयी दिल्ली, 31 दिसंबर । केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की कक्षा 10वीं और 12 वीं की बोर्ड परीक्षाएं चार मई से 10 जून के बीच आयोजित की जाएगीं जबकि प्रैक्टिकल मार्च में होंगे।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने बोर्ड परीक्षाएं देने वाले देशभर के लाखों छात्रों की अनिश्चितताओं को विराम लगाते हुए गुरुवार को परीक्षाओं की तिथियां घोषित की। इस बार बोर्ड परीक्षाएं चार मई से प्रारम्भ होकर 10 जून तक चलेगी जबकि प्रैक्टिकल एक मार्च से शुरू होगें। सीबीएसई जल्द ही परीक्षा की समय सारिणी भी जारी करेगा। बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों की घोषणा 15 जुलाई से पहले की जाएगी।

केंद्रीय मंत्री ने परीक्षाओं की तिथियां घोषित करते हुए कहा, “जैसा कि आप सभी जानते हैं, कोविड-19 महामारी के कारण छात्रों, शिक्षकों और स्कूलों को एक अभूतपूर्व और अनिश्चित स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान सत्र में, सभी शिक्षकों ने यह सुनिश्चित करने के लिए अथक परिश्रम किया है ताकि छात्रों को पढाई में कोई भी दिक्कत न हो। स्कूल प्रबंधन और प्रधानाचार्यों ने लॉकडाउन के तुरंत बाद, यह सुनिश्चित किया कि कक्षाएं बिना किसी बाधा के जारी रहें।

शिक्षकों ने शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को हर संभव सहायता प्रदान की है। शिक्षकों ने कड़ी मेहनत करके नई तकनीक और शिक्षण के तरीके अपनाए। ऐसा परिवर्तन शायद ही कहीं देखा गया होगा। सरकार द्वारा पीएम ई-विद्या कार्यक्रम भी शुरू किया गया जिससे की डिजिटल माध्यम से सीखने के लिए एक मंच और सामग्री प्रदान की जा सके।”

उन्होनें कहा,” शिक्षा के साथ सुरक्षा’ के सिद्धांत का पालन करते हुए सीबीएसई हर छात्र की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए विभिन्न उपायों को अपनाएगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि बोर्ड परीक्षाएं, जेईई और नीट की परीक्षाओं जैसी समान दक्षता के साथ आयोजित की जाएँगी। सीबीएसई द्वारा परीक्षाओं के समय छात्रों के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए साथ ही, छात्रों को पढाई की मूलभूत सुविधाओं के अन्तर के कारण उनकी पढाई प्रभावित न हो, इसके लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।”

डॉ निशंक ने कहा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि सीबीएसई, छात्रों के मूल्यांकन करने के लिए लिखित व प्रायोगिक परीक्षा आयोजित करके छात्रों और स्कूल को सभी सहायता प्रदान करेगा। इस क्रम में, परीक्षाओं की तैयारी के लिए लगभग चार महीने का समय छात्रों और स्कूलों के लिए उपलब्ध होगा। सीबीएसई ने यह भी निर्णय लिया है कि इस वर्ष, प्रायोगिक परीक्षाओं को कराने की अंतिम तिथि, संबंधित कक्षा की लिखित परीक्षाओं की अंतिम तिथि के सतुल्य होगी साथ ही यह भी तय किया गया है कि आगामी परीक्षाओं के लिए अधिक परीक्षा केंद्र बनाये जाएंगे ताकि छात्र परीक्षा केंद्रों तक आसानी से पहुंच सकें।”

उन्होनें अभिभावकों, छात्र-छात्राओं एवं सभी हितधारकों से आग्रह किया कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए कि परीक्षाओ के लिए छात्रों के पास एक सुरक्षित, तनाव मुक्त और सुविधाजनक वातावरण तैयार हो सके एक साथ मिल कर काम करें। यदि कोई भी छात्र तनाव महसूस करता है तो वह ‘मनोदर्पण’ पोर्टल के साथ-साथ टोल फ्री नंबर 844-844-0632 का उपयोग कर सकता है।

केंद्रीय मंत्री ने विश्वास दिलाया कि समय-समय पर सीबीएसई स्कूलों, छात्रों और अभिभावकों द्वारा परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिए और छात्रों और हितधारकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा और इन दिशानिर्देशों का सभी संबंधितों द्वारा सख्ती से पालन किया जाएगा।

उन्होंने अंत में सभी छात्रों को परीक्षाओं के लिए शुभकामनाएं दीं और उन्हें बेफिक्र होकर तैयारी करने के लिए प्रेरित किया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्‍दी समारोह में नरेन्द्र मोदी ने कहा:विकास को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, राजनीति इंतजार कर सकती है विकास नहीं attacknews.in

अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश), 22 दिसंबर । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि विकास को ‘‘राजनीतिक चश्मे’’ से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति इंतजार कर सकती है लेकिन विकास इंतजार नहीं कर सकता।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के शताब्‍दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने बिना किसी का नाम लिए विपक्षी दलों पर भी निशाना साधा और कहा कि मतभेदों के नाम पर बहुत समय पहले ही गंवाया जा चुका है, अब सभी को एक लक्ष्य के साथ मिलकर नया भारत, आत्मनिर्भर भारत बनाना है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें समझना होगा कि सियासत सोसाइटी का अहम हिस्सा है। लेकिन सोसाइटी में सियासत के अलावा भी दूसरे मसले हैं। सियासत और सत्ता की सोच से बहुत बड़ा, बहुत व्यापक किसी देश का समाज होता है।’’

उन्होंने कहा कि समाज में वैचारिक मतभेद होते हैं लेकिन जब बात राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति की हो तो हर मतभेद किनारे रख देने चाहिए।

मोदी ने कहा, ‘‘राष्ट्र के, समाज के विकास को राजनीतिक चश्मे से ना देखा जाए। जब एक बड़े उद्देश्य के लिए हम आते हैं तो संभव है कुछ तत्व इससे परेशान हों। ऐसे तत्व दुनिया की हर सोसाइटी में मिल जाएंगे। यह कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके अपने स्वार्थ होते हैं । वह अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए हर हथकंडा अपनाएंगे, नकारात्मकता फैलाएंगे।’’

प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग को लेकर पिछले कुछ हफ्तों से आंदोलन कर रहे हैं। सरकार इस आंदोलन को विपक्षी दलों की साजिश करार देती रही है।

मोदी ने आगे कहा, ‘‘पॉलिटिक्स इंतजार कर सकती है लेकिन देश का विकास इंतजार नहीं कर सकता।’’

उन्होंने कहा कि पिछली शताब्दी में मतभेदों के नाम पर बहुत वक्त पहले ही जाया हो चुका है, अब वक्त नहीं गंवाना है तथा सभी को मिलकर, एक लक्ष्य के साथ मिलकर नया भारत, आत्मनिर्भर भारत बनाना है

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आज पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। जिस सदी को भारत की बताया जा रहा है, उस लक्ष्य की तरफ भारत कैसे आगे बढ़ता है, इसे लेकर सब उत्सुक हैं। इसलिए हम सबका एकनिष्ठ लक्ष्य ये होना चाहिए कि भारत को आत्मनिर्भर कैसे बनाएं।’’

छात्रों से मुखातिब प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘जब आप सभी युवा साथी इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो ऐसी कोई मंजिल नहीं, जो हम हासिल न कर सकें।’’

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस अवसर पर एएमयू की उपलब्धियों को याद किया और इसके पूर्व छात्रों के योगदान का सराहा।

मालूम हो कि यह पहली बार है जब पांच दशक से भी ज्यादा वक्त में किसी प्रधानमंत्री ने एएमयू के कार्यक्रम में शिरकत की है। 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एएमयू के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था।

शास्त्री से पहले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार 1948 में एएमयू का दौरा किया था। इसके बाद उन्होंने 1955, 1960 और 1963 में यहां का दौरा किया।

सर सैयद अहमद खान ने 1877 में मोहम्मडन एंग्लो ऑरिएंटल (एमएओ) स्कूल की स्थापना की थी। 1920 में उसी स्कूल ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का रूप लिया। इसका कैंपस उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 467.6 हेक्टेयर में फैला हुआ है। कैंपस से इतर केरल के मल्लपुरम, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद-जांगीपुर और बिहार के किशनगंज में भी इसके केंद्र हैं।

स्वच्छ भारत अभियान से मुस्लिम छात्राओं के बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर में आई कमी: मोदी

समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मुस्लिम छात्राओं के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की दर में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि पहले इसकी दर 70 फीसदी तक थी लेकिन अब यह कम होकर 30 फीसदी के करीब रह गई है।

प्रधानमंत्री ने इस उपलब्धि का श्रेय स्वच्छ भारत अभियान को दिया, जिसकी शुरुआत 2 अक्‍टूबर 2014 को हुई थी।

उन्होंने कहा कि लिंग के आधार पर भेदभाव ना हो, सबको बराबर अधिकार मिले और देश के विकास का लाभ सबको मिले, ये एएमयू की स्थापना के उद्देश्यों की प्राथमिकताओं में था। उन्होंने कहा कि इसे ही आगे बढ़ाते हुए तीन तलाक की ‘‘कुप्रथा’’ का अंत किया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘पहले मुस्लिम बेटियों का शिक्षा में ड्रॉप आउट रेट 70 प्रतिशत से ज्यादा था। मुस्लिम समाज की प्रगति में बेटियों का इस तरह पढ़ाई बीच में छोड़ देना हमेशा से बहुत बड़ी बाधा रहा है। लेकिन 70 साल से हमारे यहां स्थिति यही थी। 70 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम बेटियां अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती थी। आज देश के सामने क्या स्थिति है। पहले जो ड्रॉपआउट रेट 70 प्रतिशत से ज्यादा था वह अब घटकर करीब 30 प्रतिशत रह गया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘पहले लाखों मुस्लिम बेटियां शौचालय की कमी की वजह से पढ़ाई छोड़ देती थी। इन्हीं स्थितियों में स्वच्छ भारत मिशन शुरू हुआ। गांव-गांव में शौचालय बनें। सरकार ने स्कूल जाने वाली छात्राओं के लिए मिशन मोड में शौचालय बनाएं। अब हालात बदल रहे हैं। मुस्लिम बेटियों का ड्रॉपआउट रेट कम से कम हो, इसके लिए केंद्र सरकार निरंतर प्रयास कर रही है।’’

उन्होंने एएमयू में मुस्लिम छात्राओं की संख्या बढ़ने का उल्लेख करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन को बधाई दी और कहा कि मुस्लिम छात्राओं की शिक्षा और उनके सशक्तिकरण पर सरकार का बहुत ध्यान है।

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 6 साल में सरकार द्वारा करीब-करीब एक करोड़ मुस्लिम बेटियों को स्कॉलरशिप दी गई है।’’

मुस्लिम समाज की महिलाओं में शिक्षा पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर एक महिला शिक्षित होती है तो उससे एक परिवार शिक्षित होता है।

उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं को शिक्षित इसलिए होना है ताकि वह अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकें। अपना भविष्य खुद तय कर सकें। शिक्षा अपने साथ रोजगार और उद्यमिता लेकर आती है। रोजगार और उद्यमिता अपने साथ आर्थिक स्वतंत्रता लेकर आते हैं और इससे सशक्तिकरण होता है।’’

उन्होंने देश के अन्य शिक्षा संस्थानों से भी ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को शिक्षित करने और उच्च शिक्षा तक लेकर जाने का आग्रह किया।

मोदी ने कहा कि सरकार उच्च शिक्षा पर जोर दे रही है और इसके लिए पंजीकरण और सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए भी लगातार काम कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2014 में हमारे देश में 16 आईआईटी थे, आज 23 हैं। वर्ष 2014 में हमारे देश में 9 ट्रिपल आईटी थे, आज 25 हैं। वर्ष 2014 में हमारे यहां 13 आईआईएम थे जो आज 20 हो गए हैं।’’

जो देश का है, वह हर देशवासी का है: मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’’ को केंद्र सरकार की नीतियों का मूल आधार बताते हुए कहा कि जो देश का है, वह हर देशवासी का है और उसका लाभ हर देशवासी को मिलना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस विश्वविद्यालय से निकले छात्र भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने छात्रों से अपील की कि एएमयू के कैंपस में ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’’ की भावना दिनोंदिन मजबूत होती रहे, इसके लिए मिलकर काम करें।

इस अवसर को यादगार बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘देश की समृद्धि के लिए उसका हर स्तर पर विकास होना आवश्यक है। आज देश भी उस मार्ग पर बढ़ रहा है, जहां प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के देश में हो रहे विकास का लाभ मिले। देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है, जहां पर प्रत्येक नागरिक संविधान से मिले अपने अधिकारों को लेकर निश्चिंत रहें, भविष्य को लेकर निश्चिंत रहें।’’

उन्होंने कहा कि देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां किसी मत, मजहब के भेद के बिना हर वर्ग तक योजनाएं पहुंच रही हैं। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, यह मंत्र इसका मूल आधार है । देश की नियत नीतियों में यही संकल्प झलकता है ।

उन्होंने कहा, ‘‘बिना किसी भेदभाव के 40 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खुले, दो करोड़ लोगों को घर मिले, आठ करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला। बिना किसी भेदभाव के कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में 80 करोड़ देशवासियों को मुफ्त अनाज सुनिश्चित किया गया। आयुष्मान योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रूपये तक का मुफ्त इलाज संभव हुआ।’’

मोदी ने कहा, ‘‘जो देश का है, वह हर देशवासी का है। इसका लाभ हर देशवासी को मिलना ही चाहिए। हमारी सरकार इसी भावना के साथ काम कर रही है।’’

मध्यप्रदेश के महाविद्यालयों में एक जनवरी से शुरू की जायें प्रायोगिक कक्षाएँ; दसवीं एवं बारहवीं की कक्षाएं 18 दिसंबर से संचालित होंगी attacknews.in

भोपाल, 14 दिसंबर । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रालय में आयोजित उच्च शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान महाविद्यालयों में एक जनवरी, 2021 से प्रायोगिक कक्षाओं का संचालन करने के निर्देश दिये।

आधिकारिक जानकारी में श्री चौहान ने कहा कि कोविड-19 की गाइड-लाइन को ध्यान में रखते हुए 50 प्रतिशत क्षमता के साथ सामाजिक दूरी का पालन करते हुए तीन-तीन दिन के लिये बैच निर्धारित कर कक्षाएँ शुरू की जायें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक विद्यार्थियों को बेहतर सुविधाएँ दिलाई जायें। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाये, ताकि विद्यार्थियों को रोजगार प्राप्त करने एवं अपना व्यवसाय स्थापित करने में आसानी हो सके।

दसवीं एवं बारहवीं की कक्षाएं 18 दिसंबर से संचालित होंगी: परमार

इधर मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) इन्दर सिंह परमार ने कहा है कि कक्षा 10 वीं और 12 वीं के विद्यार्थियों के लिए स्कूल आगामी 18 दिसंबर से नियमित रूप से पूरे निर्धारित समय तक के लिए संचालित होंगी। यह निर्णय बोर्ड की परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

श्री परमार ने आज यहां मंत्रालय में स्कूल शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक ली। बैठक में उन्होंने इसके अलावा कक्षा 9वीं एवं 11वीं के लिए विद्यार्थियों के नामांकन और उपलब्ध अध्यापन कक्ष के आधार पर प्राचार्य द्वारा स्थानीय स्तर पर कक्षाओं के संचालन पर निर्णय लिया जा सकेगा।

उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा चार दिसंबर को की गई विभागीय समीक्षा के दौरान दिए गए निर्देशों पर की गई विभागीय तैयारियों और कार्ययोजना की विस्तृत जानकारी ली।

भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ जयंत सोनवलकर के खिलाफ गृह मंत्रालय ने दिये सीबीआई जांच के आदेश,पूर्व विधायक किशोर समरीते की शिकायत पर कार्रवाई attacknews.in

नईदिल्ली 15 नवम्बर । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पूर्व विधायक किशोर समरीते की शिकायत पर नकल के द्वारा पीएचडी किए जाने की जांच के चलते मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति बना दिए गये जयंत सोनवलकर द्वारा विश्वविद्यालय में फर्जीवाड़े की सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी है ।

इस संबंध में विश्वविद्यालय के कुलपति सोनवलकर द्वारा प्रस्तुत फर्जी प्रमाण दस्तावेजों को लेकर राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार को अभिलेखों की जांच कर कार्यवाही करने के निर्देश सचिव भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गये है।

पीएचडी थीसिस में 80% साहित्यिक चोरी पकड़ में आने के बावजूद कार्यवाही नहीं

जयंत सोनवलकर द्वारा पीएचडी उपाधि के लिए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में जमा की गई थीसिस में 80% साहित्यिक चोरी पकड़ में आने के बावजूद आज तक जांच होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई।

ज्ञात हो कि यूजीसी और राज्यपाल द्वारा शोधगंगा एवं उरकुण्ड से नकल न पाए जाने पर ही शोध प्रबंध मान्य किया जाता है। ज्ञात हो कि 2010 में ऐसा ही नकल प्रकारण पाए जाने पर भोज विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कमलाकर सिंह की बागसेवनिया थानें में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद कमलाकर सिंह की पीएचडी निरस्त कर शासन ने उन्हें कुलपति पद निलंबित कर दिया था। जो 13 वर्षों तक निलंबित रहे। परंतु जयंत सोनवलकर के मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और बीजेपी युवा मोर्चा इंदौर के पदाधिकारियों के विरोध प्रदर्शन के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।

जयंत सोनवलकर की अर्हता पर संदेह

जयंत सोनवलकर के पास कुलपति के लिए अनिवार्य 10 साल की अर्हता रखने पर संदेह है। सोनवलकर का मूल विषय मैनजमेंट/कॉमर्स/पत्रिकारिता/समाजशास्त्र/कम्प्यूटर-आईटी इनमें से क्या है आज तक किसी को समझ नहीं आया। ये अपने को प्रत्येक विषय का विभागाध्यक्ष और विद्वान बताते है, जबकि कोई प्राध्यापक किसी एक ही विषय का प्रकांड विद्वान होता है।

जयंत सोनवलकर की कुलपति पद पर नियुक्ति ही विवादों में रही क्योंकि नकल से पीएचडी करने के प्रमाण की जांच के चलते कुलपति बना दिए गये,जबकि नियम है कि,गंभीर जांच के दौरान इस तरह की नियुक्ति नहीं की जा सकती ।

इस नियुक्ति के बाद सोनवलकर ने विश्वविद्यालय को जमकर फर्जीवाड़ा और घोटालों की चरागाह बना दिया

जहां एक ओर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और राज्यपाल अच्छी शिक्षा और भ्रष्टाचार मुक्त विश्वविद्यालय परिसर की बात कर रहे हैं, वहीं भोपाल का भोज विश्वविद्यालय आज भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है।

कुलपति जयंत सोनवलकर के पिछले 3 साल के कार्यकाल में हुये षड्यंत्र पूर्वक वित्तीय अनियमितता, रुपये के गबन और अधिकारों के दुरुपयोग के कई मामले सामने आये है।

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन काल के दौरान राज्यपाल महोदय से ऑनलाइन शिक्षण कराने के निर्देश प्राप्त हुए तो इसकी आड़ लेकर भोज विश्वविद्यालय के कुलपति जयंत सोनवलकर ने अपने इष्ट मित्रों को करोड़ों का भुगतान कर व्याख्यान करा डाला, जबकि इन व्याख्यानों की रिकार्डेड सीडी पहले से ही विश्वविद्यालय में मौजूद थी।

इसके अलावा दिल्ली की एक फर्म से उन पाठ्य सामग्री को तैयार कराकर क्रय किया गया जो विश्वविद्यालय में पूर्व से ही उपलब्ध है। ये सामग्री मात्र मुद्रण खर्च पर ही तैयार कराई जा सकती थी। हाल ही में जब प्रबंध बोर्ड की बैठक में इस तथ्य को उठाया गया तो कुलपति ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर रिश्वत लेने का आरोप लगाए। जिसके बाद अधिकारी बैठक छोड़कर चले गए जोकि विश्वविद्यालय में रिश्वतखोरी का खुला प्रमाण है।

इसी बीच विश्वविद्यालय की ऑडिट रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि भोज मुक्त विश्वविद्यालय में वर्ष 2017 से 2020 के बीच दो निजी सुरक्षा एजेंसियों को खुली निविदा के बिना ही कार्यादेश जारी कर करोड़ों का अवैध भुगतान किया गया । इसके अलावा सुरक्षा कंपनी के संचालकों ने ईपीएफ खाते में सुरक्षाकर्मियों का पैसा जमा नहीं किया। यह जानकारी होते हुए भी विश्वविद्यालय नें सुरक्षा एजेंसियों को दो करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। यह सीधे तौर पर षडयंत्र पूर्वक भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन और आर्थिक गबन है। जबकि पूर्व में ऑडिट विभाग ने यह आपत्ति लगाकर भुगतान पर रोक लगा रखी थी कि जब तक कर्मचारियों के ईपीएफ की राशि खाते में जमा नहीं होती तब तक निजी सुरक्षा एजेंसी को भुगतान न किया जाए। पिछले छः वर्षों से आज भी लगभग 150 कर्मचारियों के ईपीएफ खाते में राशि जमा नहीं है। इतना ही नहीं सुरक्षा एजेंसी के संचालकों ने विश्वविद्यालय के सामने फर्जी चालान प्रस्तुत कर दिया, जिसमें उल्लेख था कि सुरक्षाकर्मियों के ईपीएफ का पैसा ईपीएफओ में जमा करा दिया गया है। उक्त चालान के बाद जब विश्वविद्यालय ने पता लगाया तो खुलासा हुआ की एजेंसी संचालकों ने ईपीएफ का पैसा जमा नहीं किया और फर्जी चालान विश्वविद्यालय के सामने प्रस्तुत किया है। आर्थिक गबन का मामला उजागर होने के बाद कुलपति जयंत सोनवलकर के कहने पर मामले को दबा दिया गया।

ज्ञात हो कि इसी प्रकार वर्ष 2004-05 में भोज विश्वविद्यालय में बिना खुली निविदा के 2.50 करोड़ की पुस्तकें क्रय करने पर तत्कालीन कुलपति को राज्यपाल नें पद से बर्खास्त कर दिया था और ईओडब्लू में प्रकरण दर्ज कराया गया था। इस प्रकरण में भुगतान करने वालों पर आज भी कार्यवाही चल रही है। साथ ही विश्वविद्यालय ने खुली निविदा में हेर फेर होनें के कारण इसकी कार्यवाही निरस्त कर दी थी। परंतु 8 निविदा फर्मों की धरोहर राशि के ड्राफ्ट आज तक वापिस नहीं किये गए है क्योंकि ये ड्राफ्ट पूर्व कुलपति द्वारा गुम दिए गए है। इस संबंध में कुछ कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।

अवैध नियुक्तियों का हुआ था पर्दाफाश

भोज विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जयंत सोनवलकर द्वारा की गई अवैध नियुक्तियों की एक-एक परत खुल कर सामने आ रही है। कुछ समय पहले विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय में जिन शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति में रोस्टर के उल्लघंन का हवाला देकर याचिका लगाई थी, उसी रोस्टर के आधार पर चुनाव आचार संहिता की अवधि सहित लगभग 50 अवैध नियुक्तियां कर दी गई । इसके अलावा जयंत सोनवलकर नें अपने चहेते मित्र इंदौर के चार्टेड एकाउंटेंट को 30 हजार मासिक वेतन में रखकर गुपचुप तरीके से 50 हजार की वेतन वृद्धि के आदेश भी जारी कर दिए। भोपाल में सैकड़ों चार्टेड अकाउंटेंट होते हुए भी इंदौर के अपने चहेते को बिना विज्ञापन के नियुक्ति देना खुला गबन था। इसके साथ ही कुलपति सोनवलकर नें अपने परिचित एक अयोग्य सलाहकार को बिना प्रशासनिक एवं वित्तीय अनुमति के स्वयं ही विज्ञापन निकालकर यूजीसी के अनुसार योग्यता न होने पर भी नियुक्ति दे दी। सलाहकार की मेरिट स्वयं कुलपति ने बनाई और सेलेक्शन कमेटी में भी वही थे।

पूर्व कुलपति के भ्रष्टाचार के मामलों को दबा कर बैठे रहे सोनवलकर

पूर्व कुलपति के कार्यकाल में हुए घोटालों (जैसे खुली निविदाओं में नियमों का उल्लघंन कर निजी फर्मों को दिए गये आदेश एवं उनके भुगतानों की जांच) को कुलपति जयंत सोनवलकर ने रफा-दफा कर दिया। इस जांच में पाया गया था कि विश्वविद्यालय द्वारा पूर्व वर्षों में 5 रुपये में मुद्रित कराई गई अंकसूची के 100 रुपये और 3 रुपये की उत्तरपुस्तिका के मुद्रण एवं आपूर्ति के लिए 100 रुपये का भुगतान किया गया था। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को खुली निविदा के बिना भुगतान करने सहित एलएलएम का पुनर्मूल्यांकन घोटाला और बीएड (विशेष शिक्षा) का मूल्यांकन घोटाला शामिल है।

स्कॉलरशिप घोटाला: हजम कर ली छात्रवृत्ति की रकम

भोज मुक्त विश्वविद्यालय में एससी-एसटी छात्रवृत्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। एससी,एसटी विद्यार्थियों के लिए प्राप्त अनुदान को एससी-एसटी के विद्यार्थियों को भुगतान न कर कूटरचित उपयोगिता प्रमाणपत्र विश्वविद्यालय द्वारा शासन को भेज दिया गया। छात्रवृत्ति की इस राशि से कुलपति निवास में ऐशो आराम की सामग्री क्रय करने की शिकायत के बावजूद आज तक शासन द्वारा कोई जांच नहीं कराई गई।

कुलपति निवास में लाखों रुपयों के ऐसे विलासिता के सामान मौजूद है जो कि नहीं होने चाहिए। ये सामान रिश्वत के तौर पर लेकर उपयोग की जा रही है। इसकी सत्यता स्टॉक रजिस्टर और कोई क्रय वाउचर न होने से प्रमाणित की जा सकती है। यह लाखों की रिश्वत पूर्व कुलपति कान्हेरे के कार्यमुक्त होनें और वर्तमान कुलपति के कार्यभार ग्रहण करते समय संयुक्त रूप से ली गई थी। इसके प्रमाण अनेकों जगह हैं। जिन फर्मों ने रिश्वत दी थी उनका काम न होने पर वे फर्में समान वापसी अथवा समान का भुगतान प्राप्त न होने पर कानूनी कार्यवाही करने चली गई ।

बिना सत्यापन के लाखों का भुगतान

विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध चल रहे अनियमित भुगतान अब कुलपति जायंत सोनवलकर को भारी पड़ रहे है। ऑडिट विभाग ने इस विषय पर कड़ी आपत्ति ली है कि एक मंत्री कार्यालय के फर्जी सत्यापन के आधार पर ग्वालियर की एक ट्रेवल एजेंसी को 8 लाख का अवैध भुगतान कैसे और किसके कहने पर कर दिया।

प्राप्त दस्तावेजों से यह भी ज्ञात हुआ है कि जैम पोर्टल से क्रय किये गए कम्प्यूटरों के बदले नकली कम्प्यूटरों का प्रयोग होने की जांच भी रिश्वत लेकर रफ-दफा कर दी गई है। इसका प्रमाण जीरापुर के एक भौतिकी के लेक्चरर के फर्जी सत्यापन से हुआ है।

भोज विवि और ‘स्कूल गुरु’ का एमओयू अवैध

हाल ही में बिहार के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में स्कूल गुरु के साथ किया गया अनुबंध बिना खुली निविदा के कारण (स्कूल गुरु की एक ही निविदा होनें के कारण) निरस्त किया गया और स्कूल गुरु द्वारा कुलपति के निर्देश पर विद्यार्थियों से जबरिया वसूल की गई राशि वापस की गई। राज्यपाल द्वारा कराई गई जांच में कुलपति एवं सहयोगियों को दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया गया था। परंतु ऐसा ही अवैध अनुबंध मध्यप्रदेश के भोज विश्वविद्यालय और स्कूल गुरु के बीच हुआ। जिसकी शिकायत उच्च शिक्षा विभाग में होनें पर भी न तो आज तक जांच हुई और न ही दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही।

प्रबंध बोर्ड, वित्त समिति और उच्च शिक्षा विभाग के सुझावों को नहीं मानते कुलपति

प्रबंध बोर्ड और वित्त समिति को दरकिनार कर जयंत सोनवलकर अनाधिकृत निर्णय लेकर करोड़ों के अवैध भुगतान किए जा रहे है। कुलपति अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर शासन से प्रतिनियुक्ति पर आए तीन प्राध्यापकों का शासन द्वारा दो बार स्थानांतरण आदेश जारी होनें पर भी उनको आज तक कार्यमुक्त नहीं किया है। विश्वविद्यालय में शासन द्वारा नियुक्त दो कुलसचिव होने के बावजूद प्रतिनियुक्ति पर आये इन तीन प्राध्यापकों को परीक्षा नियंत्रक, प्रिंटिंग विभाग सहित भंडार विभाग आदि जैसे मलाईदार पद दे दिए गए ।

विश्वविद्यालय की पुताई का 1 करोड़ 80 लाख का ठेका प्रबंध बोर्ड द्वारा पीडब्लूडी से करने के निर्णय के बावजूद कुलपति नें अपने मित्र ऊर्जा विकास निगम के इंजीनियर से कम सेवा शुल्क का प्रस्ताव मंगाकर ये काम बीडीए से करने का आदेश दिया है, जबकि ये कार्य पिछले वर्ष में 60 लाख में कराया गया है।

चहेतों को दोगुना वेतनमान

जयंत सोनवलकर के राज में उनके चहेते कम्प्यूटर ऑपरेटरों को दुगना वेतनमान दिया जा रहा जबकि अन्य कम्प्यूटर ऑपरेटरों को शासकीय वेतनमान देकर दोहरी नीति अपनाई जा रही है और इनके बदले रिश्वत ली जा रही है।

कुलपति ने अपने बेटे की कंपनी को पहुंचाया लाभ,कोरोना संकट में भी चालू रहा भ्रष्टाचार

कुलपति जायंत सोनवलकर नें इंदौर स्थित अपने पुत्रों की मूल कंपनी से लाखों रुपये के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्रय कर भंडार नियमों का उल्लंघन किया । इसके अलावा हाल ही में लाखों रुपये की सामग्री बिना जैम पोर्टल के क्रय की गई है, जिसमे कोविड 19 की सुरक्षा सामग्री भी शामिल है। इनमें हजारों रुपये के सेनेटाइजर के नाम पर फर्जी बिलों का भुगतान का मामला सामने आया है। साथ ही मीडिया रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि विश्वविद्यालय के आवासों एवं अतिथि गृह में चहेतों को निःशुल्क आवास व्यवस्था कराकर कुलपति सोनवलकर ने शासकीय धन का गबन किया गया।

सोनवलकर के कहने पर डीएविवि नें विज्ञान भारती को भेजा था 45 लाख का बिल

वर्तमान कुलपति जयंत सोनवलकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, इनको कांग्रेसी राज्यपाल के समय भी कांग्रेसी नेताओं द्वारा कुलपति बनाने की अनुशंसाएं की गई थीं। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में रहते हुए वहां के पूर्व कांग्रेसी कुलपति अजीतसिंह के खास रहे जयंत सोनवलकर के कहने पर ही कुलपति ने वर्ष 2009 में विज्ञान भारती के “भारतीय विज्ञान सम्मेलन” को कराने से साफ इनकार कर दिया था। हालांकि बाद में सरकार के आदेश के बाद कार्यक्रम देवी अहिल्या विवि में ही हुआ। सम्मेलन के बाद कुलपति प्रो. सेहरावत ने जयंत सोनवलकर की सलाह पर विज्ञान भारती को 45 लाख रुपए का बिल भी भिजवाया था।

वहीं वर्ष 2010 में जयंत सोनवलकर के कहने पर तात्कालिक कुलपति अजीतसिंह सेहरावत नें विवि परिसर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का निःशुल्क कार्यक्रम कराया था। इसके कुछ माह बाद ही बीजेपी सरकार द्वारा धारा 52 लगाने के पहले कुलपति सेहरावत नें पद से इस्तीफा दे दिया था। परंतु जयंत सोनवलकर के रिश्ते ग्वालियर और भोपाल स्थित आरएसएस पदाधिकारियों से होने के कारण उन पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी थी।

कांग्रेस सरकार में सोनवलकर जमकर किया गबन और भ्रष्टाचार

प्रदेश में कमलनाध सरकार के सत्तासीन होते ही कांग्रेस सरकार में कुलपति जयंत सोनवलकर की अच्छी घुसपैठ रही। इसी कारण से भाजपाई राज्यपाल द्वारा बनाये गए कुलपति सोनवलकर को इतने घोटाले होने के बावजूद भी पद से नहीं हटाया गया। कांग्रेसी नेताओं के मार्गदर्शन में जयंत सोनवलकर ने भरपूर रिश्वतखोरी की जिसमें अवैध नियुक्तियां, रुके हुए अवैध भुगतान और टेंडर कार्यवाही की कूटरचना शामिल है।

भ्रष्टाचार से बचने अपने रिश्तेदारों के किया उपयोग

भ्रष्टाचार के कारण भविष्य में सरकार या राजभवन द्वारा कोई कार्यवाही न हो इससे बचने के लिए कुलपति जयंत सोनवलकर नें अपने ग्वालियर और भोपाल के आरएसएस से जुड़े रिश्तेदारों के उपयोग करके भारतीय शिक्षण मंडल में प्रांत उपाध्यक्ष बन गया।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति मामले में थी प्रमुख भूमिका

कांग्रेस शासनकाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बी. के. कुठियाला पर ईओडब्लू में केस रजिस्टर कराने में भी जयंत सोनवलकर की प्रमुख भूमिका रही । कुठियाला के खिलाफ ईओडब्लू में केस रजिस्टर होनें से पहले जयंत सोनवलकर के कांग्रेसी मित्रों ने सलाह ली थी।

पिछले दो वर्षों में कुलपति जयंत सोनवलकर नें किया लगभग 6 करोड़ का ईपीएफ और कर्मचारी बीमा का आर्थिक गबन

पिछले दो वर्षों से भोज विश्वविद्यालय में किये जा रहे आर्थिक घोटालों में 6 करोड़ का सुरक्षा एजेंसी घोटाला सामने आया है। विवि में कार्यरत लगभग 150 कर्मचारियों के हाथों में निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ईपीएफ और कर्मचारी बीमा राशि जमा नही करने पर भी सुरक्षा एजेंसियों को अवैध भुगतान कर दिया। जबकि पिछले पांच वर्षों के ऑडिट प्रतिवेदनों में अभी ये आपत्ति यथावत है कि कर्मचारियों के इन खातों में राशि जमा न होने पर निजी सुरक्षा एजेंसियों को भुगतान न किया जाए। परंतु रिश्वतखोरी के आधार पर निजी सुरक्षा एजेंसियों को रोकी गई राशि भुगतान की गई है। ये घोटाला पिछले पांच वर्षों में जिन कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान अकश्मिक मौतें और कुछ कर्मचारियों को गंभीर बीमारियां होने के कारण उनको ईएसआईसी द्वारा कोई बीमा राशि नहीं दी और इन कमर्चारियों के बीमा खातों में कोई राशि जमा होना ही नहीं पाई गई।

विश्वविद्यालय में कार्यरत एवं सेवा से बाहर किये गए कर्मचारियों ने कोरोना के दौरान आर्थिक तंगी के चलते जब ईपीएफ राशि प्राप्त करना चाही तो उनके खातों में ये राशि जमा ही नहीं पाई गई।

नियमानुसार भोज विश्वविद्यालय द्वारा इन निजी सुरक्षा एजेंसियों से किये गये अनुबंध में ये शर्त अनिवार्य थी कि निजी सुरक्षा एजेंसी अपने द्वारा उपलब्ध कराए गए कर्मचारियों को कलेक्टर दर से उनके बैंक खातों में वेतन राशि और 25.61% राशि उनके ईपीएफ खातों में और 2%राशि उनके बीमा खातों में जमा करेगी इन भुगतान की रशीदों के साथ प्रस्तुत देयकों पर भुगतान किया जाएगा । परंतु इन अभिलेखों की अनुपलब्धता के कारण ऑडिट द्वारा करोड़ों के भुगतान रोक दिए गए थे क्योंकि निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अनुबंध होनें के एक दो माह तक तो उक्त राशियां भुगतान की गई। परंतु कर्मचारियों को वेतन भुगतान उनके बैंक खातों में न करके निर्धारित राशि से कम राशियों का भुगतान किया गया और प्राप्त रशीद लगभग दुगनी राशि की प्राप्त की गई।

ये भी ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017 से 19 के मध्य कई निजी सुरक्षा एजेंसियों को बिना खुली निविदा के करोड़ों का भुगतान किया गया। वर्ष 2018 में जिस खुली निविदा द्वारा सुरक्षा एजेंसी का चयन किया जाना था उसकी विज्ञापित धरोहर राशि 15 लाख से कुलपति द्वारा डेढ लाख कर दी गई थी और अन्य निविदाकारों की धरोहर राशि के बैंक ड्राफ्ट गुमा दिए गए थे इस संबंध में एक कनिष्ठ कर्मचारी पर आरोप लगाकर निलंबित किया जाता उसके पूर्व ही एक अन्य निविदाकार के उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने पर उक्त कार्यवाही निरस्त हो गई। और कुलपति ने बिना खुली निविदा के ही किसी अपनी परिचित निजी सुरक्षा एजेंसी को आदेश दे दिया।

भुगतान के समय निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उक्त ईपीएफ राशि बैंक चालान से ईपीएफ कार्यालय में जमा होना बताया गया है।जबकि ईपीएफ कार्यालय द्वारा ऐसी कोई राशि ईपीएफ कार्यालय में जमा नही होनें से कर्मचारियों के खातें में जमा नही होना बताया गया । अतः निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जमा कराई गई राशि के अभिलेखों की प्रमाणिकता कुलपति अथवा उनके सहयोगी अधिकारियों और भुगतान पारित करने वाले ऑडिट सम्परिक्षकों नें किस तरह कराई ये भविष्य के गर्त में है।

इन अनियमितताओं के संबंध में विश्वविद्यालय प्रबंध बोर्ड की स्वीकृति बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। यदि उक्त प्रकरणों की जांच हो जाये तो आर्थिक अनियमितताएं और रिश्वतखोरी स्वतः सामनें आ जाएंगी। उक्त घोटालों की जांच कुलपति सोनवलकर द्वारा रिश्वत कें अलावा और कोई आधार पर नही रोकी जा सकती।

भोज विवि में फर्जी प्रतिनुक्ति के पद पर नियमित संस्कृत से पढ़ा पंडित सनद पांडेय को बनाया लेखपाल।

1, इस मामले में कुलपति ने की फर्जी पोस्टिंग

2 बनाया गया लेखापाल पर महिला से छेड़छाड़ के आरोप में थाना चूनाभट्टी में प्रकरण दर्ज हैं, चालन की कार्यबाही लम्बित हैं।

3 जिस विषय में योग्यता नही उसमे कार्य करने की मंजूरी कुलपति ने दी ।

4 कार्यमुक्त को कैसे बनाया लेखपाल इस बारे में गंभीर जांच सामने आई।

5 लेखापाल विशाल की हटाने का कारण कुलपति के काले भुकतान नही हो रहे थे

6 विशाल 20 साल से एक ही पद पर लेखपाल था।

7 प्रतिनुक्ति के पद और नियमित जॉच, रोस्टर का खुला उल्लंघन किया गया हैं

8 नियुक्त लेखापाल की प्रथम नियुक्ति फर्जी चपरासी पद पर थी, लिपिक कैसे बना, अब लेखपाल बना दिया गया ।

9 विवि में है 300 करोड की एफ डी है।

NEET परिणाम घोषित:720 में से 720 अंक लाकर ओडिशा का छात्र शोएब टाॅपर बना attacknews.in

नयी दिल्ली 16 अक्टूबर । देशभर के मेडिकल कॉलेजों में ग्रेजुएट और पोस्‍ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिले के लिए आयोजित ऑल इंडिया एलिजिबिलिटी एग्‍जाम (नीट 2020) का परिणाम आज जारी किया गया जिसमें शोएब आफताब ने 720 में से 720 अंक लाकर टॉप किया है।

नीट का परिणाम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की आधिकारिक वेबसाइट ntaneet.nic.in पर जारी किया गया है। रिजल्ट के साथ एनटीए ने फाइनल प्रश्नोत्तर भी जारी कर दिया है। इस परीक्षा में शोएब आफताब ने 720 में से 720 अंक लाकर टॉप किया है।

शोएब ने इसके अलावा ओडीशा में पहली बार नीट टॉपर बनकर इतिहास रचा है। 100 प्रत‍िशत अंक पाने वाले शोएब के पर‍िजन अपने बेटे की मेहनत और जज्बे से बहुत खुश हैं।

इस परीक्षा के लिए कुल 15.97 लाख उम्मीदवारों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था। इनमें से 85 फीसदी से 90 फीसदी परीक्षार्थियों ने एग्जाम दिया था। इस साल करीब 14.37 लाख से अधिक उम्मीदवार कोरोना महामारी के बावजूद 13 सितंबर प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए थे। कैंटोनमेंट जोन में होने के चलते जो छात्र परीक्षा नहीं दे पाए थे उनके लिए 14 अक्टूबर को फिर से परीक्षा का आयोजन किय गया था इसलिए रिजल्ट में थोड़ी देरी हो गई। इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करने वाले परीक्षार्थियों को देश के सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में संचालित एमबीबीएस और बीडीएस कोर्सेज में एडमिशन मिलेगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने छात्रों को दी बधाई दी और कहा है कि विद्यार्थियों के करियर की प्रगति एवं बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए इन परीक्षाओं का आयोजन बेहद जरूरी था।

वैश्विक आपदा कोविड-19 के कारण संपूर्ण विश्व का शैक्षिक एवं अकादमिक जगत व्यापक रूप से प्रभावित हो रहा था और वर्तमान हालात में शीघ्र ही हमें इस बीमारी से निजात मिलती हुई भी दिखाई नहीं दे रही थी। ऐसे में छात्रो के बेहतर भविष्य के लिए इन परीक्षाओं का आयोजन करवाना जरुरी था। वैसे कठिन परिसिथिति में नीट का आयोजन करवाना कठिन चुनौती भरा काम था।

केंद्रीय मंत्री ने एनटीए को परीक्षा के बेहतर संचालन को लेकर बधाई दी है। उन्होंने कहा है कि सभी लोगों के कठिन परिश्रम के चलते परीक्षा का सफल आयोजन और समय पर रिजल्ट जारी हो पाया है। उन्होंनें साफ कहा है कि कोविड महामारी के चलते देशभर में परीक्षा के आयोजन को लेकर माहौल खराब करने की कोशिश की गई थी लेकिन बेहतर संकल्प और इच्छाशक्ति के चलते न केवल छात्रों का एक साल बच गया है बल्कि देश-विदेश में कही भी अध्ययन में छात्रों को बाधा नहीं उत्पन्न होगी।

उन्होने कहा है सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी परीक्षा के संचालन में प्रशासनिक मदद की और विपरित परिस्थितियों में सहयोग किया। वही देशभर में लॉकडाउन का पालन करते हुए इस परीक्षा का आयोजन करवाना किसी चुनौती से कम नहीं था। इन परीक्षाओं का आयोजन से जहां छात्रों का एक साल बर्बाद होने से बच गया वही छात्रों की योग्यता, विश्वसनीयता, छात्रवृत्ति, पुरस्कार, प्लेसमेंट तथा विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय में प्रवेश की स्वीकार्यता और बेहतर भविष्य-निर्माण की संभावनाओं अब कोई बाधा नहीं आएगी।

संक्रमित मरीजों पर किये गये शोध से परिणाम सामने आया कि,कोरोना वायरस संक्रमण के बाद पांच महीने के लिए विकसित हो जाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता attacknews.in

वाशिंगटन, 14 अक्टूबर । अमेरिका में भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता के अध्ययन में सामने आया है कि एक बार कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद शरीर में कम से कम पांच महीने के लिए कोविड-19 के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।

एरिजोना विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लगभग छह हजार लोगों के नमूनों में उत्पन्न हुए एंडीबॉडी का अध्ययन किया।

विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर दीप्ता भट्टाचार्य ने कहा, “हमने स्पष्ट रूप से उच्च गुणवत्ता वाले एंटीबॉडी देखे जो संक्रमण होने के पांच से सात महीने बाद भी उत्पन्न हो रहे थे।”

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि जब वायरस कोशिकाओं को पहली बार संक्रमित करता है तब प्रतिरक्षा तंत्र, वायरस से लड़ने के लिए कुछ देर जीवित रहने वाली प्लाज्मा कोशिकाओं को तैनात करता है जो एंटीबॉडी उत्पन्न करती हैं।

उन्होंने कहा कि संक्रमण होने के 14 दिन बाद तक रक्त की जांच में यह एंटीबॉडी सामने आती हैं।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया के दूसरे चरण में दीर्घकाल तक जीवित रहने वाली प्लाज्मा कोशिकाएं पैदा होती हैं जो उच्च गुणवत्ता वाली एंटीबॉडी बनाती हैं जिनसे लंबे समय तक रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है।

भट्टाचार्य और उनके सहयोगियों ने कई महीनों तक कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में एंटीबॉडी के स्तर का अध्ययन किया।

अनुसंधानकर्ताओं को पांच से सात महीने तक रक्त की जांच में कोरोना वायरस एंटीबॉडी प्रचुर मात्रा में मिले। उनका मानना है कि प्रतिरोधक क्षमता इससे अधिक समय तक रह सकती है।

इसलिए बंद हो रहे हैं मध्यप्रदेश के हजारों सरकारी स्कूल , 30 हजार से घटाकर 17 हजार स्कूलों का इस तरह किया जाएगा संचालन attacknews.in

भोपाल 13 सितम्बर । मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा विभाग ने ऐसा कदम उठाया है जिसकी वजह से हजारों सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे. प्रदेश के करीब 30 हजार स्कूल ऐसे थे जो एक ही कैम्पस में चल रहे थे, अब उन स्कूलों को मिलाकर 17 हजार कर दिया गया है।

आखिर क्या कारण था कि प्राथमिक, मिडिल और हाई स्कूलों को एक-दूसरे के साथ मिला दिया गया:

मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा की नीतियां बनाने के लिए जिम्मेदार, राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त लोकेश जाटव का कहना हैं कि “एक परिसर-एक शाला के सिद्धांत के तहत एक ही परिसर में मौजूद स्कूलों का विलय किया जा रहा है और उसे मजबूती प्रदान की जा रही है.”

इसका मतलब अगर कोई स्टैंड अलोन प्राइमरी स्कूल था और एक स्टैंड अलोन हाई सेकंडरी स्कूल था तो उसे मिलाकर अब एक ही स्कूल कक्षा 1 से लेकर 10 तक बना दिया गया ,स्कूलों को मिलाने के बाद उपलब्ध जगह को कंप्यूटर केंद्र, स्टाफ रूम या लाइब्रेरी के रुप में इस्तेमाल किया जाएगा.”

स्कूलों को एक-दूसरे में मिलाने की सबसे बड़ी वजह छात्रों की संख्या का कम होना है. मध्यप्रदेश में कुल 52 जिले हैं और सबसे कम छात्रों की संख्या वाला जिला है सतना. जहां करीब 600 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां 20 से भी कम छात्र हैं. सतना के जिला शिक्षा अधिकारी कमल सिंह कुशवाह इसका कारण बताते हुए कहते हैं “ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों का काम की तलाश में पलायन कर जाना और नि:शुल्क प्रवेश के तहत गैरसरकारी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत प्रवेश मिलना छात्रों की संख्या कम होने की मुख्य वजह है.” केवल सतना ही नहीं बल्कि छिंदवाड़ा, सिवनी और मंडला में 500 से ज्यादा स्कूल, रीवा में 400 से ज्यादा और इंदौर संभाग के दो जिले खरगोन और बड़वानी में 300 से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां छात्र संख्या इतनी कम है कि उन्हें एक-दूसरे में मिलाए जाने पर विचार चल रहा है।

नीति आयोग द्वारा चुने गए देश के 110 आकांक्षी जिलों में इंदौर संभाग का बड़वानी जिला भी शामिल है जो कि अनुसूचित जनजाति बहुल इलाका है. इन इलाकों में लोग नगर या कस्बे में इकठ्ठा होकर नहीं रहते हैं बल्कि 10-15 घरों के समूह में रहते हैं जिन्हें फलिए भी कहा जाता है. स्कूलों को एक-दूसरे में मिलाए जाने से इन इलाकों के बच्चों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है।

इस मुद्दे पर इंदौर संभाग के स्कूली शिक्षा के संयुक्त संचालक मनीष वर्मा कहते हैं, “नई शिक्षा नीति में 3 साल के बच्चे के भी पढ़ाने की बात चल रही है, केजी-1, केजी-2 और नर्सरी, तीन क्लास और जुड़ रहे हैं, बच्चे इतनी दूर कैसे आ पाएंगे और उनकी मांएं तीन साल के बच्चे को कहां से छोड़ने आ पाएगीं, तो अभी उसके ऊपर नीति तैयार हो रही है और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कार्य योजना बनाएंगे.”

मध्यप्रदेश में साल 2019-20 के बजट में शिक्षा के लिए कुल खर्च का 15.1 प्रतिशत रखा गया है जो कि अन्य राज्यों की तुलना में कम है. वहीं स्कूली शिक्षा विभाग के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए 24,499 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.

सरकारी स्कूलों की जमीन पर अटकलें

लेकिन मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों के विलय की एक और अहम वजह है. सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्र एक अहम मुद्दे पर अपनी चिंता जताते हुए कहते हैं, “ब्रिटिश टाइम में और उसके बाद भी शहरों की सबसे मुख्य जगहों पर स्कूल खुले हैं और अब उन स्कूल की जमीनों की कीमत बहुत हो गई है.” चिन्मय मिश्र की मांग है कि सरकार पहले ये कह दे कि स्कूल बंद हों या न हों पर स्कूल की जमीनें स्कूल विभाग के पास रहेंगी और किसी को ट्रांसफर नहीं होंगी.”

भारत में ऐसे भी स्कूल, लेकिन पढ़ाई महंगी

सरकारी स्कूलों की घटती लोकप्रियता का एक और प्रमुख कारण बड़ी संख्या में नए प्राइवेट स्कूलों का खुलना है. दिल्ली स्थित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के एलिमेंटरी एजुकेशन विभाग के प्रोफेसर अनूप कुमार राजपूत कहते हैं, “प्राइवेट स्कूलों की मशरूमिंग हो रही है उसकी क्वालिटी पर ध्यान देने की जरूरत है. जो राज्य इन स्कूलों को मान्यता देता है वो स्कूलों की मॉनिटरिंग भी करे. शिक्षा एक सेवा है जो कि नियम और दिशानिर्देशों के अनुसार ही होनी चाहिए.” वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के पूर्व डीन प्रो. अनिल सद्गोपाल कई कारणों की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, “सरकारी स्कूलों की बढ़ती हुई बदहाली, पर्याप्त शिक्षकों और कमरों की कमी, शिक्षकों को अक्सर गैर-शैक्षिक कामों में लगाना, 70 फीसदी प्राथमिक स्कूलों व 55 फीसदी मिडिल स्कूलों में छह साल से प्रधान शिक्षकों का न होना, तीन-चौथाई में बिजली न होना, पाठ्यपुस्तकें देरी से मिलना, इन जैसी वजहों से ही बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं.”

कैसे लौटेगी सरकारी स्कूलों की रौनक:

तो आखिर शासकीय स्कूलों की रौनक वापस कैसे लाई जा सकती है? इसका एक उपाय हाल ही में सामने आई नई शिक्षा नीति-2020 में दिखाई पड़ता है, जिसमें पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाने पर जोर दिया गया है. अगर स्कूलों में बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए तो संभावना है कि बच्चे स्कूलों की तरफ आकर्षित हों।

इस संबंध में एनसीईआरटी की प्रोफेसर ऊषा शर्मा कहती हैं, “जब बच्चे अपनी मातृभाषा के माहौल में रहते हैं और वही मातृभाषा उनके पढ़ने का भी माध्यम बनती है तो उन्हें ज्यादा सहूलियत होती है. अन्यथा बच्चे दोतरफा संघर्ष करेंगे. जब टीचर क्लास में बच्चे की मातृभाषा को छोड़कर किसी और भाषा में समझने-समझाने की बात करती हैं तो बच्चों को काफी दिक्कतें आती हैं.”

वहीं शिक्षाविद प्रोफेसर अनिल सद्गोपाल के मुताबिक, “दुनिया भर के शिक्षाविद् व भाषाविज्ञानी एकमत हैं कि आधुनिक ज्ञान हासिल करने और पराई भाषा (अंग्रेजी समेत) सीखने के लिए विश्वविद्यालय तक मातृभाषा माध्यम ही सबसे बेहतरीन जरिया है.” इस बारे में एनसीईआरटी के प्रोफेसर अनूप कुमार का कहना है, “1968 के कोठारी कमीशन में और 1986 की नीति में तीन भाषाओं के फार्मूले के तहत ये लिखा गया था कि पहले पांच साल की शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं हुआ क्योंकि क्रियान्वयन बड़ी समस्या रही.” उनके मुताबिक बच्चों के प्राइवेट स्कूल में जाने का एक मुख्य कारण है अंग्रेजी भाषा. मां-बाप को लगता है कि मेरा बच्चा अंग्रेजी बोलेगा तो उसको नौकरी अच्छी मिल जाएगी, इसलिए मां-बाप उन्हें प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं. इसलिए सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी भाषा सिखाई जानी चाहिए. एक बच्चे में इतनी क्षमता होती है कि वो तीन-चार भाषाएं सीख सकता है.”

क्वालिटी पर जोर देने की मांग

मातृभाषा में पढ़ाई के अन्य फायदों पर प्रोफेसर ऊषा शर्मा कहती हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि इससे बच्चों की स्कूल आने की इच्छा बढ़ेगी क्योंकि बच्चों को अपनी भाषा में गीत गाने का मौका मिलेगा या कहानी कहने का मौका मिलेगा. बच्चों की अपनी भाषा उनके स्कूल की भाषा भी होगी. उनके मुताबिक, “मातृभाषा के माध्यम से स्कूली शिक्षा देने पर बच्चों को चीजें जल्दी समझ आती है और मस्तिष्क पर कम भार पड़ता है. बच्चों को मजा आएगा, उन्हें जूझना नहीं पड़ेगा और उन्हें सेंस ऑफ एचीवमेंट भी महसूस होगा.”

मध्यप्रदेश के कई पूर्व और वर्तमान सरकारी शिक्षक कुछ और उपाय अपनाने की सलाह देते हैं. उनके मुताबिक सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता और सुविधाएं मुहैया कराया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे दाखिला लें. साथ ही बच्चों के माता-पिता उन्हीं शासकीय स्कूलों की तरफ आकर्षित होते हैं जहां पढ़ाई अच्छी होती है. सरकारी स्कूलों को समय की मांग के हिसाब से चलाना बहुत जरूरी है. कोरोना महामारी की वजह से आम लोगों की कमाई पर गहरा असर पड़ा है, उस पर निजी स्कूलों की भारी फीस माता-पिता की जेब हल्की कर रही है. ऐसे में सरकारी स्कूल एक अच्छा विकल्प दिखाई देते हैं जहां बिना किसी शुल्क के शिक्षा मुहैया कराई जाती है।