एनबीएफसी को दीर्घकालिक रेपो सुविधा के तहत बैंकों से मिलेगा कर्ज,रिजर्व बैंक का 2021-22 में जीडीपी वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान;बैंकों को पूंजी संरक्षण कवच के आखिरी हिस्से को पूरा करने को छह माह का अतिरिक्त समय attacknews.in

मुंबई, पांच फरवरी । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में एक अप्रैल से शुरू अगले वित्त वर्ष के लिये जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा। यह अनुमान केंद्रीय बजट में जतायी गयी संभावना के अनुरूप है।

मुद्रास्फीति के बारे में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने ने कहा कि निकट भविष्य में सब्जियों के दाम नरम बने रहने की उम्मीद है। इसको देखते हुए खुदरा मुद्ररस्फीति चालू तिमाही में कम होकर 5.2 प्रतिशत पर आने की संभावना है। वहीं अगले वित्त वर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही में घटकर 4.3 प्रतिशत पर रह सकती है।

उन्होंने कहा कि वृद्धि परिदृश्य में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और टीकाकरण अभियान से आर्थिक पुनरूद्धार को गति मिलेगी।

दास ने कहा ककि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में सुधरकर 10.5 प्रतिशत पर आने का अनुमान है।

वित्त वर्ष 2021-22 के बजट की घोषणा के बाद आर्थिक मामलों के सचिव तरूण बजाज ने कहा था कि अगले वित्त वर्ष में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 10 से 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

आरबीआई गवर्नर ने यह भी कहा कि सरकार मार्च अंत तक मुद्रास्फीति लक्ष्य की समीक्षा करेगी।

आरबीआई गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति को सालाना महंगाई दर 31 मार्च 2021 तक 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने की जिम्मेदारी दी गयी हुई है।

एनबीएफसी को दीर्घकालिक रेपो सुविधा के तहत बैंकों से मिलेगा कर्ज

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) व्यवस्था के तहत बैंकों से कर्ज सुविधा दिलाने का प्रस्ताव किया।

टीएलटीआरओ योजना संकट ग्रस्त क्षेत्रों को कर्ज सुविधा के लिए पिछले साल अक्टूबर में विशेष रूप से शुरू की गयी है। इसके तहत केंद्रीय बैंक मुश्किल में फंसे क्षेत्र की इकाइयों की वित्तीय मदद के लिए बैंकों को रेपो दर से जुड़ी परिवर्तनशील ब्याज दर पर दीर्घकालिक कर्ज सुलभ कराने की व्यवस्था की है।

इसमें तीन साल तक के लिए वितीय सुविधा ली जा सकती है। आरबीआई ने इसमें एक लाख करोड़ रुपये तक धन सुलभ कराने का लक्ष्य रखा है। योजना 31 मार्च 2021 तक खुली है।

मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चाली बैठक के बाद जारी नीतिगत वक्तव्य में कहा गया है कि एनबीएसफी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) विभिन्न क्षेत्रों में कर्ज वितरण की आखिरी कड़ी की भूमिका निभाती है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है, ‘‘अब प्रस्ताव है कि चिह्नित संकटग्रस्त क्षेत्रों को अतिरिक्त कर्ज सुविधा पहुंचाने के लिए एनबीएफसी को मांग होने पर टीएलटीआरओ-आन-टैप (सदा सुलभ) व्यवस्था के तहत बैंकों से ऋण उपलब्ध कराया जाए।’’

बैंकों को पूंजी संरक्षण कवच के आखिरी हिस्से को पूरा करने को छह माह का अतिरिक्त समय

भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को पूंजी संरक्षण कवच (सीसीबी) के नियम के तहत न्यूनतम पूंजी कोष के प्रबंध के लिए आखिरी भाग की 0.625 प्रतिशत पूंजी की व्यवस्था करने को छह माह का समय और दिया है।

रिजर्व बैंक के गवर्ननर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति की द्वैमासिक समीक्षा बैठक के निर्णयों की जानकारी देते हुए कहा कि बैंकों को सीसीबी के लिए आखिरी हिस्से की 0.625 प्रतिशत टीयर1 (शेयर) पूंजी का प्रबंध करने की समय सीमा 01 अप्रैल 2021 से बढ़ा कर 01 अक्टूबर 2021 कर दी गयी है।

कोविड-19 से पैदा परेशानियां अभी बनी हुई है। बैंकों को इसी करण यह मोहलत दी गयी है।

बैंकों को विवेकपूर्ण बैंकिंग के बारे में बेसल-तीन नियमों के तहत सीसीबी के लिए 2.5 प्रतिशत के बराबर पूंजी का प्रावधान करने का नियम तय किया गया है। इसके लिए प्रारंभ में 31 मार्च 2021 तक का समय दिया गया था।

यह नियम 2008 के वैश्विक बैंकिंग संकट के बाद लागू किया गया था।

इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने बैंकों के लिए अपने कारोबार के परिचालन हेतु शुद्ध स्वस्थ धन के अनुपात (एनएसएफआर) की व्यवस्था लागू करने की सीमा भी आगामी पहली अप्रैल से खिसका कर 21 अक्टूबर 2021 कर दी है।

रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा, रुख को उदार बनाये रखा ताकि नीतिगत दर में कटौती की जा सके,2021-22 में जीडीपी 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान attacknews.in

मुंबई, 5 फरवरी ।भारतीय रिजर्व बैंक (#RBI) ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया और रेपो को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा। इसका मतलब है कि लोगों के आवास, वाहन समेत अन्य कर्ज की किस्तों में कोई बदलाव नहीं होगा।

हालांकि केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नीतिगत उदार रुख को बनाये रखा है। जिसका मतलब है कि भविष्य में जरूरत पड़ने पर कोविड-19 संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये मुद्रास्फीति को काबू में रखते हुए नीतिगत दर में कटौती की जा सकती है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एमपीसी के निर्णय की जानकारी देते हुए अपने ‘ऑनलाइन’ संबोधन में कहा, ‘‘नीतिगत दर रेपो को एमपीसी के सदस्यों ने आम सहमति से 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय किया।’’

इस निर्णय के बाद रेपो दर 4 प्रतिशत, जबकि रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत पर बनी रहेगी। रेपो वह दर है, जिसपर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को एक दिन का उधार देता है। रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर बैंक अपना जमा राशि केंद्रीय बैंक के पास रखते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘साथ ही एमपीसी के सभी सदस्यों ने उदार रुख को जब तक जरूरी है और कम-से-कम चालू वित्त वर्ष तथा अगले वित्त वर्ष में इसे बनाये रखने का निर्णय किया।’’

दास ने कहा, ‘‘यह निर्णय आर्थिक वृद्धि को समर्थन देते हुए मध्यम अवधि में 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (#CPI) आधारित मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने के लक्ष्य के अनुरूप है।’’

आर्थिक वृद्धि के बारे में आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा बयान में कहा गया है, ‘‘अन्य उपायों के साथ वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, नवप्रवर्तन और अनुसंधान समेत विभिन्न क्षेत्रों पर दिये गये जोर को देखते हुए 2021-22 में जीडीपी #GDP(सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।’’

इसमें अगले वित्त वर्ष पहली छमाही में वृद्धि दर 26.2 प्रतिशत से 8.3 प्रतिशत के बीच रहने और तीसरी तिमाही में 6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

रिजर्व बैंक ने गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों (एनबीएफसी इकाइयों) को संकटग्रस्त क्षेत्र तक कर्ज पहुंचाने के लिए दीर्घकालिक लक्षित रेपो सुविधा (टीएलटीआरओ) के तहत बैंकों से धन सुलभ कराने का प्रस्ताव भी किया है।

बयान के अनुसार, ‘‘कृषि क्षेत्र में बेहतर संभावना को देखते हुए गांवों में मांग मजबूत बने रहने की उम्मीद है। कोविड-19 मामलों में कमी और टीकाकरण अभियान के साथ शहरों में भी मांग अच्छी रहने की संभावना है जिससे वृद्धि को गति मिलेगी।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘उपभोक्ताओं में भरोसा बढ़ रहा है और विनिर्माण, सेवा तथा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में व्यापार को लेकर अपेक्षाएं उत्साहजनक हैं।’’

‘‘इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत दो और तीन के तहत सरकर की घोषित योजनाओं से सार्वजनिक निवेश में तेजी आएगी। हालांकि निजी निवेश कम क्षमता उपयोग से धीमा बना हुआ है।’’

मुद्रास्फीति के बारे में मौद्रिक नीति बयान में कहा गया है, ‘‘दिसंबर महीने में सब्जियों के दाम में नरमी से सकल मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब आयी है और आने वाले समय में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर निकट भविष्य के परिदृश्य को निर्धारित करेगी।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘आपूर्ति व्यवस्था बेतहर होने से मुख्य मुद्रास्फीति (कोर इनफ्लेशन) पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद है। हालांकि सेवा क्षेत्र और विनिर्माण में औद्योगिक कच्चे माल के दाम में वृद्धि से लागत दबाव पड़ सकता है।’’

इन सबके आधार पर आरबीआई ने 2020-21 की चौथी तिमाही के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर को संशोधित कर 5.2 प्रतिशत कर दिया है। साथ ही 2021-22 की पहली छमाही के लिये इसे 5.2 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत तथा तीसरी तिमाही के लिये 4.3 प्रतिशत कर दिया है।

आरबीआई के बयान में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को दो चरणों में पूर्व स्तर पर लाने की भी बात कही गयी है।

बैंकों को कोविड-19 संकट से उत्पन्न समस्या से राहत देने के लिये सीआरआर को एक प्रतिशत कम कर 3 प्रतिशत कर दिया गया था। 28 मार्च, 2020 को लागू यह व्यवस्था एक साल 26 मार्च, 2021 तक के लिये थी।

इसमें कहा गया है, ‘‘मौद्रिक और नकदी की स्थिति की समीक्षा के बाद सीआरआर को दो चरणों में पूर्व स्तर पर लाने का निर्णय किया गया है। इसके तहत बैंकों को 27 मार्च, 2021 से शुरू पखवाड़े से एनडीटीएल (शुद्ध मांग और समय देनदारी) का 3.5 प्रतिशत और 22 मई, 2021 से शुरू पखवाड़े से 4 प्रतिशत के स्तर पर लाना है।’’

आरबीआई के बयान के अनुसार, देश में बढ़ते डिजिटल भुगतान को देखते हुए सुरक्षा के कई उपाय किये गये हैं। केंद्रीय बैंक के भुगतान प्रणाली दृष्टिकोण दस्तावेज के तहत 24 घंटे काम करने वाला हेल्पलाइन स्थापित करने पर जोर दिया गया है, जो ग्राहकों की विभिन्न डिजिटल भुगतान से जुड़े सवालों का समाधान करेगा।

इसमें कहा गया है, ‘‘भुगतान प्रणाली से जुड़े बड़े परिचालकों को केंद्रीयकृत 24 घंटे सातों दिन काम करने वाली हेल्पलाइन व्यवस्था सितंबर 2021 तक करने की जरूरत है। इसका मकसद विभिन्न डिजिटल भुगतान के संदर्भ में ग्राहकों के सवालों के जवाब देना और शिकायतों की स्थिति के बारे में जानकारी देनी है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘आने वाले समय में इस हेल्पलाइन के जरिये ग्राहकों की शिकायतों के पंजीकरण और उसके समाधान पर विचार किया जाएगा।’’

छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की यह 27वीं बैठक थी। इसके सदस्य आशिमा गोयल, जयंत आर वर्मा और शशांक भिडे (बाह्य सदस्य), डा. मृदुल के सागर, डा. माइकल देबव्रत पात्रा और शक्तिकांत दास हैं। समिति की यह तीन दिवसीय बैठक तीन फरवरी को शुरू हुई थी।

मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 5-7 अप्रैल, 2021 को होगी।

जेफ बेजोस बने अमेजन के कार्यकारी अध्यक्ष ,सीईओ पद से दिया इस्तीफा,एंडी जेसी कंपनी के नये सीईओ बनाएं गये attacknews.in

वाशिंगटन 03 फरवरी (स्पूतनिक) अमेजन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जेफ बेजोस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

श्री बेजोस ने कर्मचारियों को लिखे एक मेल में मंगलवार को कहा कि वह कंपनी में सीईओ की भूमिका को छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं यह घोषणा करने के लिए उत्साहित हूं कि मैं अमेजन बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभाऊंगा तथा एंडी जेसी कंपनी के सीईओ होंगे।”

उन्होंने कहा कि अमेजन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका से उन्हें कंपनी के साथ जुड़े रहने की अनुमति मिलेगी। साथ ही डे 1 फंड, बेजोस अर्थ फंड, ब्लू ओरिजिन, द वाशिंगटन पोस्ट और अन्य मामलों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समय भी दे पाएंगे।

एक ऑनलाइन बुकस्टोर के रूप में अमेजन की शुरुआत करने और उसे खरीदारी तथा मनोरंजन की दुनिया का महारथी बनाने वाले जेफ बेजोस इस साल कंपनी के सीईओ का पद छोड़ देंगे और एंडी जेसी उनके उत्तराधिकारी होंगे।

कंपनी द्वारा मंगलवार को जारी बयान के मुताबिक करीब 30 वर्षों तक इस पद पर रहने के बाद अब कार्यकारी अध्यक्ष की नई भूमिका में होंगे।

बेजोस (57) गर्मियों में अपना पद छोड़ेंगे और उनकी जगह अमेजन के क्लाउड-कंप्यूटिंग व्यवसाय का संचालन करने वाले एंडी जेसी लेंगे।

बेजोस ने कर्मचारियों को लिखे एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि उन्होंने नए उत्पादों और अमेजन में विकसित की जा रही शुरुआती पहलों पर ध्यान देने की योजना बनाई है।

उन्होंने कहा कि उनके पास अन्य परियोजनाओं के लिए अधिक समय होगा, जिसमें उनकी अंतरिक्ष अन्वेषण कंपनी ब्लू ओरिजिन, उनके द्वारा चलाए जाने वाले परोपकार के काम और वाशिंगटन पोस्ट की देखरेख शामिल है।

बेजोस अमेजन के सबसे बड़े शेयरधारक हैं, और कंपनी के कामकाज पर उनका व्यापक प्रभाव बना रहेगा।

अमेजन के मुख्य वित्तीय अधिकारी ब्रायन ओल्सवस्की ने संवाददाताओं को बताया, ‘‘जेफ वास्तव में कहीं भी नहीं जा रहे हैं। यह कामकाम के पुनर्गठन जैसा है।’’

अमेजन ने बुधवार को बताया था कि 2020 में उसकी कुल बिक्री 38 प्रतिशत बढ़कर 386.1 अरब डॉलर हो गई, जो 2019 में 280.5 अरब डॉलर थी।

बेजोस ने अपने उत्तराधिकारी के बारे में बताया, ‘‘जेसी को कंपनी में सभी अच्छी तरह जानते हैं और वह एक बेहतरीन नेतृत्वकर्ता साबित होंगे और मेरा उन पर पूरा विश्वास है।’’

उन्होंने कहा कि अमेजन का सीईओ होने एक बड़ी जिम्मेदारी है और ऐसे में दूसरी बातों पर ध्यान देना कठिन है और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में वह अमेजन की नई पहलों पर ध्यान देंगे। उन्होंने कहा ‘‘उनमें इतनी ऊर्जा कभी नहीं थी और यह उनकी सेवानिवृत्ति नहीं है।’’

बेजोस ने कहा, ‘‘अमेजन की यात्रा लगभग 27 साल पहले शुरू हुई था, जब कंपनी केवल एक विचार थी, और इसका कोई नाम नहीं था। उस समय मुझसे सबसे अधिक बार यह सवाल पूछा गया था, इंटरनेट क्या है? शुक्र है, मुझे अब यह समझाना नहीं पड़ता।’’

इस समय अमेजन में 13 लाख लोग काम करते हैं और ये दुनिया भर में करोड़ो लोगों और कारोबारों को सेवाएं देते हैं।

केंद्रीय बजट में रेलवे के लिए रिकॉर्ड 1.10 लाख करोड़ ₹ की घोषणा;भारतीय रेलवे ने भारत-2030 के लिए एक राष्ट्रीय रेल योजना तैयार की attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को रेलवे के लिए 1.10 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड राशि की घोषणा की, जिसमें से 1.07 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय के लिए हैं। उन्होंने कहा कि रेलवे मालगाड़ियों के अलग गलियारों के चालू होने के बाद उनका मौद्रिकरण करेगी।

सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2021-22 पेश करते हुए कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान देशभर में आवश्यक वस्तुओं के परिवहन के लिए रेलवे द्वारा दी गई सेवाओं की सराहना की।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं रेलवे के लिए 1,10,055 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड राशि की घोषणा कर रही हूं, जिसमें से 1,07,100 करोड़ रुपये केवल पूंजीगत व्यय के लिए हैं।’’

सीतारमण ने कहा, ‘‘भारतीय रेलवे ने भारत-2030 के लिए एक राष्ट्रीय रेल योजना तैयार की है। इस योजना का मकसद 2030 तक रेलवे प्रणाली को भविष्य के लिए तैयार करना है, ताकि उद्योग के लिए लॉजिस्टिक लागत को कम किया जा सके और मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिले।’’

उन्होंने उम्मीद जताई कि पूर्वी और पश्चिमी माल गलियारों (ईडीएफसी और डब्ल्यूडीएफसी) जून, 2022 तक चालू हो जाएंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा भी कुछ पहल प्रस्तावित हैं। ईडीएफसी पर 263 किलोमीटर के सोननगर-गोमो खंड को इस साल सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) में लिया जाएगा। साथ ही 274.3 किलोमीटर के गोमो-दनकुनी खंड को भी इसमें शामिल किया जाएगा।’’

वित्त मंत्री ने कहा कि रेलवे भविष्य की मालभाड़ा गलियारा परियोजनाओं – खड़गपुर से विजयवाड़ा के लिए पूर्वी तट गलियारा, भुसावल से खड़गपुर के लिए पूर्व-पश्चिम गलियारा और इटारसी से विजयवाड़ा तक उत्तर-दक्षिण गलियारा पर काम आगे बढ़ाएगी।

सीतारमण ने कहा कि पहले चरण के तहत विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाई जाएगी।

उन्होंने यात्री सुविधा और सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा कि रेलवे यात्रियों के बेहतर यात्रा अनुभव के लिए बेहतर ढंग से डिजाइन किए गए विस्टाडोम एलएचबी कोच लगाएगा।

संसद के इतिहास में पहली बार वित्त मंत्री ने आम बजट टैबलेट से पढ़ा, कुछ सदस्यों ने किसानों के मुद्दे पर नारेबाजी की और काला चोगा पहनकर पहुंचे पंजाब के कांग्रेस सांसद attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । कोविड-19 के प्रभाव के मद्देनजर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लीक से हटते हुए सोमवार को वित्त वर्ष 2021-22 का आम बजट कागजी दस्तावेज के बजाय टैबलेट से पढ़ा।

लोकसभा में सत्तापक्ष की सीट की दूसरी कतार में खड़ी वित्त मंत्री सीतारमण जब बजट पेश कर रही थीं तब शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल, सुखवीर सिंह बादल, आम आदमी पार्टी के भगवंत मान और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर विरोध दर्ज कराया।

हरसिमरत, सुखवीर, बेनीवाल अपने हाथों में तख्ती लिये हुए थे जिसमें केंद्र सरकार से तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग वाले नारे लिखे थे।

हरसिरमत कौर बादल, सुखवीर बादल और हनुमान बेनीवाल से सदन से वाकआउट भी किया ।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 1 घंटा 50 मिनट में पढ़े गए बजट भाषण के दौरान सत्तापक्ष के सदस्यों ने 90 से अधिक बाद मेज थपथपाकर विभिन्न प्रस्तावों का स्वागत किया । कई घोषणाओं का प्रधानमंत्री मोदी ने भी मेज थपथपा कर स्वागत किया।

बजट पेश करते समय जब वित्त मंत्री ने कृषि एवं किसानों से जुड़े प्रस्ताव पढ़ना शुरू किया तब कई विपक्षी दलों के सदस्यों ने ‘जय किसान’ और ‘कानून वापस लो’ के नारे लगाए ।

सीतारणम ने जब बजट प्रस्ताव में जब तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल से जुड़ी परियोजनाओं का उल्लेख किया तब तृणमूल कांग्रेस और कुछ अन्य दलों के सदस्यों को कुछ कहते देखा गया ।

बजट पेश किये जाने के समय सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह सहित केंद्रीय मंत्री मौजूद थे । कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अलावा सपा नेता मुलायम सिंह यादव, द्रमुक नेता टी आर बालू, एआईएमआईएम नेता असादुद्दीन ओवैसी, राकांपा नेता सुप्रिया सुले, बीजद नेता पिनाकी मिश्रा, नेकां नेता फारूक अब्दुल्ला आदि सदन में मौजूद थे ।

सीतारमण अगले वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय में भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है। सीतारमण ने सोमवार को आम बजट 2021-22 पेश करते हुए 2021-22 में पूंजीगत व्यय बढ़ाकर 5.54 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया है।

चालू वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पूंजीगत व्यय का बजट 4.39 लाख करोड़ रुपये है।

इस बार का बजट कागज पर प्रिंट नहीं हुआ है। बजट दस्तावेज सभी सांसदों समेत आम जनता के लिये डिजिटल स्वरूप में उपलब्ध कराया जाने वाला है।

सीतारमण आज सदन में बंगाल की लाल पार की साड़ी पहन कर आयी थीं जो विशेष अवसरों पर पहनी जाती है।

बजट भाषण पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह एवं बीजद नेता पिनाकी मिश्रा सहित कई नेताओं एवं सदस्यों ने वित्त मंत्री के पास जाकर उन्हें बधाई दी

बजट भाषण के दौरान कृषि कानूनों के विरोध में काला चोगा पहनकर पहुंचे पंजाब के कांग्रेस सांसद

कांग्रेस के पंजाब के तीन सांसद केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध जताते हुए काले चोगा पहनकर बजट भाषण के दौरान लोकसभा पहुंचे।

कांग्रेस के लोकसभा सदस्य बलबीर सिंह गिल, रवनीत सिंह बिट्टू और गुरजीत सिंह औजला ने जो चोगे पहन रखे थे उन पर ‘किसान की मौत का काला कानून वापस लो’ और ‘मैं किसान हूं, मैं खेत मजदूर हूं, मुझसे धोखा मत करो’ लिखा हुआ था।

सदन में पहुंचने से पहले इन सांसदों ने लोकसभा परिसर में भी नारेबाजी की और कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। ये सांसद इन कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए पिछले करीब दो महीनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

काला चोगा पहनकर संसद पहुंचने के बारे में पूछे जाने पर बलबीर सिंह गिल ने कहा, ‘‘किसान महीनों से विरोध जता रहे हैं, लेकिन सरकार सुन नहीं रही है। हमने इन कानूनों का विरोध करने और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया।’’

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह तीनों कानूनों को वापस ले।

केंद्रीय बजट: स्वास्थ्य पर खर्च दोगुना से अधिक 2.2 लाख ₹ रुपये किया, संसाधन जुटाने को आयातित उत्पादों पर नया कृषि उपकर,पेट्रोल पर 2.5 ₹ और डीजल पर 4 ₹ प्रति लीटर का उपकर,बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का प्रस्ताव attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । कोरोना वायरस महामारी के बीच सरकार ने अगले वित्त वर्ष में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च को दोगुना से अधिक कर दिया है। अगले वित्त वर्ष में सरकार का स्वास्थ्य क्षेत्र पर 2.2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा कुछ आयातित उत्पादों पर एक नया कृषि उपकर भी लगाया गया है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में वित्त वर्ष 2021-22 का आम बजट पेश करते हुए संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को उबारने, देश में विनिर्माण गतिविधियों को प्रोत्साहन देने तथा कृषि उत्पादों के बाजार की मजबूती के उपायों की घोषणा की।

बजट में कपास से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक विभिन्न उत्पादों पर आयात शुल्क भी बढ़ाने की घोषणा की।

अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने सेवानिवृत्ति कोष (भविष्य निधि कोष) पर कर-मुक्त ब्याज की सीमा को वार्षिक 2.5 लाख रुपये तक सीमित कर दिया है। हालांकि, अवकाश यात्रा रियायत (एलटीसी) पर कर छूट देने की घोषणा की है, बशर्ते व्यक्ति ने निर्धारित प्रकार के यात्रा खर्च किए हों।

सर्राफा, शराब, कोयला और सेब से लेकर दाल तक कृषि उत्पादों पर मंगलवार यानी कल से सीमा शुल्क पर एक नया कृषि संरचना एवं विकास उपकर लगाया जाएगा।

हालांकि, उपभोक्ताओं पर बोझ को कम करने के लिए इन उत्पादों पर सीमा शुल्क या आयात शुल्क घटाया गया है।

वित्त मंत्री ने पेट्रोल पर 2.5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 4 रुपये प्रति लीटर का उपकर लगाने की भी घोषणा की है। लेकिन उपभोक्ताओं को इस उपकर के बोझ से बचाने के लिए इसी अनुपात में उत्पाद शुल्क में कटौती का भी फैसला किया है।

इसके अलावा एक साल में 50 लाख रुपये से अधिक का सामान खरीदने पर 0.1 प्रतिशत का टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) लगाया जाएगा। इस कटौती की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर होगी जिसका कारोबार 10 करोड़ रुपये से अधिक होगा।

सरकार ने 75 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को आयकर रिटर्न दाखिल करने से राहत भी दी है। 75 साल से अधिक उम्र के ऐसे लोग जिनकी आमदनी का स्रोत सिर्फ पेंशन और ब्याज आय है, उन्हें आयकर रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी।

सस्ते मकानों की खरीद को प्रोत्साहन देने के लिए वित्त मंत्री ने आवास ऋण के भुगतान पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त कटौती का दावा करने की अवधि को एक साल बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 कर दिया है।

इसके अलावा प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को विदेशी सेवानिवृत्ति लाभ से होने वाली आय पर कराधान में अंतर के संदर्भ में राहत देते हुए सामंजस्य वाले नए नियमों को अधिसूचित करने की घोषणा की है।

साथ ही बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया गया है।

सरकार ने करदाताओं को राहत देते हुए कहा है कि लाभांश आय पर अग्रिम कर देनदारी लाभांश की घोषणा/भुगतान के बाद ही बनेगी।

इसके साथ ही स्टार्ट-अप के लिए कर अवकाश या छूट को एक साल बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 तक कर दिया गया है।

बजट में आयकर के पुन: आकलन के लिये समयसीमा को घटाकर तीन साल कर दिया गया है। अब तक छह साल पुराने मामलों को दोबारा खोला जा सकता था। पर यदि किसी साल में 50 लाख रुपये या इससे अधिक की अघोषित आय के सबूत मिलते हैं, तो उस मामले में 10 साल तक तक भी पुन: आकलन किया जा सकता है।

वित्त मंत्री ने लोकसभा में बजट संबोधन में कहा कि अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 प्रतिशत के बराबर रह सकता है। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में 9.5 प्रतिशत पर पहुंच जाने का अनुमान है।

बजट में स्वास्थ्य पर जीडीपी के एक प्रतिशत के बराबर खर्च करने का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये टीकाकरण अभियान के वित्तपोषण तथा देश में स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर बनाने पर 2.23 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव किया। सरकार चालू वित्त वर्ष में स्वास्थ्य क्षेत्र पर 94,452 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है।

सीतारमण ने कहा, ‘‘इस बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च को काफी बढ़ाया गया है।’’

बजट में सूती, रेशम, मक्का छिलका, चुनिंदा रत्नों व आभूषणों, वाहनों के विशिष्ट कलपुर्जों, स्क्रू व नट आदि पर सीमा शुल्क बढ़ाया गया है। इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने के लिये प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली, वायर व केबल, सोलर इन्वर्टर और सोलर लैंप पर भी सीमा शुल्क में बढ़ोतरी की गई है।

नेफ्था, लौह व इस्पात कबाड़, विमानों के कलपुर्जे तथा सोने-चांदी पर सीमा शुल्क कम किया गया है।

वित्त मंत्री ने गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के बोझ से दबे तथा देश की आर्थिक वृद्धि को नीचे खींच रहे सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये 20 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये।

बजट में जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) समेत सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों की बिक्री और निजीकरण के जरिये अगले वित्त वर्ष में 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।

केंद्रीय बजट 2020 – 2021 : बजट में कोरोना के खिलाफ टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया है।

उन्होंने लोकसभा में अगले वित्त वर्ष के लिए बजट पेश करते हुए कहा, ‘‘मैंने कोविड-19 के टीके के लिए 35,000 करोड़ रुपये मुहैया कराए हैं। अगर जरूरत हुई तो आगे भी धन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हूं। 2021-22 में स्वास्थ्य का बजट 2.23 लाख करोड़ रुपये है और इसमें 137 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।’’

भारत में गत 16 जनवरी को कोविड-19 के खिलाफ विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई थी।

सरकार के मुताबिक, सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों, अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले करीब कर्मियों और फिर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टीके की खुराक दी जाएगी। बाद के चरण में गंभीर रूप से बीमार 50 साल से कम उम्र के लोगों का टीकाकरण होगा।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित ऑक्सफोर्ड के कोविड-19 टीके ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक के स्वदेश में विकसित टीके ‘कोवैक्सीन’ को देश में सीमित आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है।

केंद्रीय बजट 2020-2021: महंगे होंगे मोबाइल फोन, सरकार ने पुर्जों, चार्जर पर आयात शुल्क बढ़ाया attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । सरकार ने मोबाइल फोन के पुर्जों तथा चार्जर पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है। स्थानीय मूल्यवर्धन को बढ़ाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। इससे मोबाइल फोन महंगे हो सकते हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 का आम बजट पेश करते हुए सीमा शुल्कों में 400 रियायतों की समीक्षा की घोषणा की। इनमें मोबाइल उपकरण खंड भी शामिल है।

सीतारमण ने कहा, ‘‘घरेलू मूल्यवर्धन बढ़ाने के लिए हम मोबाइल के चार्जर और कुछ पुर्जों पर छूट को वापस ले रहे हैं। इसके अलावा मोबाइल के कुछ पुर्जों पर आयात शुल्क शून्य से 2.5 प्रतिशत हो जाएगा।’’

उन्होंन कहा कि सीमा शुल्क नीति का दोहरा उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को प्रात्साहन देना और भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जोड़ना तथा निर्यात को बेहतर करना होना चाहिए।

सीतारमण ने कहा, ‘‘अब हमारा जोर कच्चे माल तक आसान पहुंच तथा मूल्यवर्धन का निर्यात है।’’

केंद्रीय बजट 2020-21: कर्ज से आयेंगे सर्वाधिक 36 पैसे, ब्याज भरने में खर्च होंगे 20 पैसे attacknews.in

नयी दिल्ली, एक फरवरी । सरकार अगले वित्त वर्ष के लिये पेश बजट के तहत सर्वाधिक 36 प्रतिशत धन कर्ज और अन्य देयताओं के माध्यम से जुटायेगी, जबकि सर्वाधिक 20 प्रतिशत खर्च ब्याज भरने में होगा। सोमवार को पेश बजट दस्तावेज में इसकी जानकारी दी गयी।

केंद्रीय बजट 2021-22 के सार में बताया गया कि सरकार को होने वाली प्राप्तियों को एक रुपया माना जाये, तो इसमें सर्वाधिक 36 पैसे उधार व अन्य देयताओं से आयेंगे।

बजट प्रस्ताव के अनुसार, प्रत्येक एक रुपये में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) से 15 पैसे, आयकर से 14 पैसे, निगम कर से 13 पैसे, केंद्रीय उत्पाद शुल्क से आठ पैसे और सीमा शुल्क से तीन पैसे मिलेंगे। सरकार को कर से इतर स्रोतों से छह पैसे तथा कर्ज के अतिरिक्त पूंजीगत प्राप्तियों से पांच पैसे प्राप्त होंगे।

इसी तरह बजट में प्रस्तावित कुल व्यय को एक रुपया माना जाये तो सबसे अधिक 20 पैसे ब्याज भरने पर खर्च होंगे। इसके अलावा केंद्र सरकार प्रत्येक एक रुपये में राज्यों को करों व शुल्कों में उनका हिस्सा प्रदान करने पर 16 पैसे खर्च करेगी। केंद्रीय योजनाओं पर 13 पैसे खर्च किये जायेंगे।

इसी तरह वित्त आयोग व अन्य हस्तांतरण के ऊपर सरकार को 10 पैसे का खर्च आयेगा। सरकार सब्सिडी प्रदान करने में नौ पैसे, केंद्र सरकार से वित्तपोषित योजनाओं पर नौ पैसे, रक्षा क्षेत्र पर आठ पैसे और पेंशन देने में पांच पैसे खर्च करेगी। बजट के प्रत्येक एक रुपये का 10 पैसा अन्य मदों पर खर्च होगा।

रिजर्व बैंक नहीं करेगा 4 प्रतिशत रेपो रेट में बदलाव:बैंक द्वारा मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखने और नरम रूख कायम रखने का संकेत attacknews.in

मुंबई, 31 जनवरी । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगामी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है। विशेषज्ञों ने यह राय जताई है।

केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के नतीजों की घोषणा आम बजट 2021-22 पेश होने के चार दिन बाद यानी पांच फरवरी को की जाएगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बदलाव से बचेगा। हालांकि, वह अपना नरम रुख कायम रखेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को लोकसभा में आम बजट पेश करेंगी। ऐसे में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति बजट प्रस्तावों से भी दिशा लेगी।

ब्रिकवर्क रेटिंग्स के मुख्य आर्थिक सलाहकार एम गोविंदा राव ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि एमपीसी ब्याज दरों के मोर्चे पर यथास्थिति कायम रखेगी। मुद्रास्फीति की दर में गिरावट की मुख्य वजह खाद्य वस्तुओं के दाम घटना है। मुख्य मुद्रास्फीति नीचे नहीं आई है। अत्यधिक तरलता पर नजर रखने की जरूरत है। वैक्सीन की उपलब्धता से वृहद अर्थव्यवस्था तत्काल प्रभावित नहीं होगी।’’

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन की बैठक तीन फरवरी से शुरू होगी। बैठक के नतीजों की घोषणा पांच फरवरी को होगी।

अभी रेपो दर चार प्रतिशत है। रिजर्व बैंक जिस दर पर बैंकों को धन उपलब्ध करता है, उसे रेपो दर कहते हैं।

इक्रा की प्रमुख अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि दिसंबर, 2020 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नीचे आई है, लेकिन इसका रुख ‘सख्त’ है। उन्होंने कहा, हमारा मानना है कि केंद्रीय बैंक अभी रेपो दर को यथावत रखेगा। अगस्त, 2021 या उससे आगे रिजर्व बैंक अपने रुख को बदलकर तटस्थ करेगा।

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रमुख अर्थशास्त्री एवं निदेशक सार्वजनिक वित्त सुनील कुमार सिन्हा का भी मानना है कि नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं होगा।

सिन्हा ने कहा कि वृद्धि को मौद्रिक नीति के जरिये समर्थन मिलना चाहिए। यही वजह है कि रिजर्व बैंक का नरम रुख जारी रहेगा।

मनीबॉक्स फाइनेंस के सह-संस्थापक मयूर मोदी की भी राय है कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति में नरम रुख जारी रखेगा क्योंकि अभी अर्थव्यवस्था उबर नहीं पाई है।

जेएलएल इंडिया के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) रमेश नायर ने कहा कि महामारी और कई तरह के अंकुशों से रियल एस्टेट क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक को नीतिगत दरों में कटौती करनी चाहिए, जिससे आवास ऋण सस्ता होगा। इससे रियल एस्टेट क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।

आर्थिक समीक्षा का सार:वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्‍तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो देश की आजादी के बाद सर्वाधिक attacknews.in

व्‍यापक टीकाकरण अभियान, सेवा क्षेत्र में तेजी से हो रही बेहतरी और उपभोग एवं निवेश में त्‍वरित वृद्धि की बदौलत ‘V’ आकार में आर्थिक विकास होगा

निरंतर आने वाले डेटा जैसे कि बिजली की मांग, रेल माल भाड़ा, ई-वे बिलों, जीएसटी संग्रह और इस्‍पात के उपभोग में उल्‍लेखनीय वृद्धि के बल पर ‘V’ आकार में आर्थिक प्रगति होगी

आईएमएफ के अनुसार, भारत अगले दो वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगा

वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर (-) 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान

इस वर्ष कृषि वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत होगी, जबकि उद्योग वृद्धि दर (-) 9.6 प्रतिशत और सेवा वृद्धि दर (-) 8.8 प्रतिशत रहेगी

भारत में चालू खाता अधिशेष वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी का 2 प्रतिशत रहेगा, जो 17 वर्षों के बाद ऐतिहासिक उच्‍चतम स्‍तर है

देश में शुद्ध एफपीआई प्रवाह नवम्‍बर 2020 में 9.8 अरब डॉलर के सर्वकालिक मासिक उच्‍चतम स्‍तर पर रहा

नईदिल्ली 29 जनवरी ।वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्‍तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो देश की आजादी के बाद सर्वाधिक है। व्‍यापक टीकाकरण अभियान, सेवा क्षेत्र में तेजी से हो रही बेहतरी और उपभोग एवं निवेश में त्‍वरित वृद्धि की संभावनाओं की बदौलत देश में ‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव होगा।

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की जिसमें कहा गया है कि पिछले वर्ष के अपेक्षा से कम रहने वाले संबंधित आंकड़ों के साथ-साथ कोविड-19 के उपचार में कारगर टीकों का उपयोग शुरू कर देने से देश में आर्थिक गतिविधियों के निरंतर सामान्‍य होने की बदौलत ही आर्थिक विकास फिर से तेज रफ्तार पकड़ पाएगा। देश के बुनियादी आर्थिक तत्‍व अब भी मजबूत हैं क्‍योंकि लॉकडाउन को क्रमिक रूप से हटाने के साथ-साथ आत्‍मनिर्भर भारत मिशन के जरिए दी जा रही आवश्‍यक सहायता के बल पर अर्थव्‍यवस्‍था बड़ी मजबूती के साथ बेहतरी के मार्ग पर अग्रसर हो गई है। इस मार्ग पर अग्रसर होने की बदौलत वर्ष 2019-20 की विकास दर की तुलना में वास्‍तविक जीडीपी में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी जिसका मतलब यही है कि अर्थव्‍यवस्‍था दो वर्षों में ही महामारी पूर्व स्‍तर पर पहुंचने के साथ-साथ इससे भी आगे निकल जाएगी। ये अनुमान दरअसल आईएमएफ के पूर्वानुमान के अनुरूप ही हैं जिनमें कहा गया है कि भारत की वास्‍तविक जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 11.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022-23 में 6.8 प्रतिशत रहेगी। आईएमएफ के अनुसार भारत अगले दो वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगा।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ‘सौ साल में एक बार’ भारी कहर ढाने वाले इस तरह के गंभीर संकट से निपटने के लिए भारत ने अत्‍यंत परिपक्‍वता दिखाते हुए जो विभिन्‍न नीतिगत कदम उठाए हैं उससे विभिन्‍न देशों को अनेक महत्‍वपूर्ण सबक मिले हैं जिससे वे अदूरदर्शी नीतियां बनाने से बच सकते हैं। इसके साथ ही भारत के ये नीतिगत कदम दीर्घकालिक लाभों पर फोकस करने के महत्‍वपूर्ण फायदों को भी दर्शाते हैं। भारत ने नियंत्रण, राजकोषीय, वित्तीय और दीर्घकालिक ढांचागत सुधारों के चार स्‍तम्‍भों वाली अनूठी रणनीति अपनाई। देश में उभरते आर्थिक परिदृश्‍य को ध्‍यान में रखते हुए सुव्‍यवस्थित ढंग से राजकोषीय और मौद्रिक सहायता दी गई। इसके साथ ही इस दौरान क्रमिक रूप से अनलॉक करते समय संबंधित सरकारी उपायों के राजकोषीय प्रभावों और कर्जों की निरंतरता को भी ध्‍यान में रखते हुए लॉकडाउन के दौरान सर्वाधिक असुरक्षित पाए गए लोगों को आवश्‍यक सहायता दी गई और इसके साथ ही विभिन्न वस्‍तुओं के उपभोग एवं निवेश को काफी बढ़ावा मिला। अनुकूल मौद्रिक नीति से पर्याप्‍त तरलता सुनिश्चित हुई। इसी तरह मौद्रिक नीति के कदमों का लाभ प्रदान करते समय कर्जदारों को अस्‍थायी मोहलत के जरिए तत्‍काल राहत प्रदान की गई।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर (-) 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। प्रथम छमाही में जीडीपी में 15.7 प्रतिशत की तेज गिरावट और दूसरी छमाही में 0.1 प्रतिशत की अत्‍यंत कम गिरावट को देखते हुए ही यह अनुमान लगाया गया है। विभिन्‍न क्षेत्रों पर नजर डालने पर यही पता चलता है कि कृषि क्षेत्र अब भी आशा की किरण है, जबकि लोगों के आपसी संपर्क वाली सेवाओं, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए थे जिनमें धीरे-धीरे सुधार देखे जा रहे हैं। सरकारी उपभोग और शुद्ध निर्यात के बल पर ही आर्थिक विकास में और ज्‍यादा गिरावट देखने को नहीं मिल रही है।

जैसा कि अनुमान लगाया गया था, लॉकडाउन के कारण प्रथम तिमाही में जीडीपी में (-) 23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। वहीं, बाद में ‘V’ आकार में वृद्धि यानी निरंतर अच्‍छी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जो दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की अपेक्षाकृत कम गिरावट और सभी महत्‍वपूर्ण आर्थिक संकेतकों में हो रही बेहतरी में प्रतिबिंबित होती है। गत जुलाई माह से ही ‘V’ आकार में आर्थिक बेहतरी निरंतर जारी है जो प्रथम तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी में दर्ज की गई अपेक्षाकृत कम गिरावट में परिलक्षित होती है। भारत में महामारी के प्रकोप के बाद बढ़ती गति‍शीलता पर ध्‍यान देने पर यह पता चलता है कि विभिन्‍न संकेतक जैसे कि ई-वे बिल, रेल माल भाड़ा, जीएसटी संग्रह और बिजली की मांग बढ़कर न केवल महामारी पूर्व स्‍तरों पर पहुंच गई है, बल्कि पिछले वर्ष के स्‍तरों को भी पार कर गई है। राज्‍य के भीतर और एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में आवाजाही को फिर से चालू कर देने और रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुंच गए मासिक जीएसटी संग्रह से यह पता चलता है कि देश में औद्योगिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों को किस हद तक उन्‍मुक्‍त कर दिया गया है। वाणिज्यिक प्रपत्रों की संख्‍या में तेज वृद्धि, यील्‍ड में कमी आने और एमएसएमई को मिले कर्जों में उल्‍लेखनीय वृद्धि से यह पता चलता है कि विभिन्‍न उद्यमों को अपना अस्तित्‍व बनाए रखने और विकसित होने के लिए व्‍यापक मात्रा में कर्ज मिल रहे हैं।

विभिन्‍न क्षेत्रों में बेहतरी के रुख को ध्‍यान में रखते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में भी उल्‍लेखनीय मजबूती देखी गई, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती मांग से समग्र आर्थिक गतिविधियों को आवश्‍यक सहारा मिला और इसके साथ ही तेजी से बढ़ते डिजिटल लेन-देन के रूप में उपभोग संबंधी ढांचागत बदलाव देखने को मिले।

समीक्षा में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र की बदौलत वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को कोविड-19 महामारी से लगे तेज झटकों के असर काफी कम हो जाएंगे। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पहली तिमाही के साथ-साथ दूसरी तिमाही में भी 3.4 प्रतिशत रही है। सरकार द्वारा लागू किए गए विभिन्‍न प्रगतिशील सुधारों ने जीवंत कृषि क्षेत्र के विकास में उल्‍लेखनीय योगदान दिया है जो वित्त वर्ष 2020-21 में भी भारत की विकास गाथा के लिए आशा की किरण है।

वित्त वर्ष के दौरान औद्योगिक उत्‍पादन में ‘V’ आकार में बेहतरी देखने को मिली विनिर्माण क्षेत्र ने फिर से तेज रफ्तार पकड़ी। इसी तरह औद्योगिक मूल्‍य या उत्‍पादन फिर से सामान्‍य होने लगा। भारत का सेवा क्षेत्र महामारी के दौरान गिरावट दर्शाने के बाद फिर से बेहतरी के मार्ग पर निरंतर अग्रसर हो गया है। दिसम्‍बर में पीएमआई सेवाओं के उत्‍पादन और नए कारोबार में लगातार तीसरे महीने बढ़ोतरी दर्ज की गई।

जोखिम न उठाने की प्रवृत्ति और कर्जों की घटती मांग के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में बैंक कर्जों का स्‍तर निम्‍न स्‍तर पर बना रहा। हालांकि, कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के लिए दिए गए कर्ज अक्‍टूबर 2019 के 7.1 प्रतिशत से बढ़कर अक्‍टूबर 2020 में 7.4 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच गए। अक्‍टूबर 2020 के दौरान निर्माण, व्‍यापार एवं आतिथ्‍य जैसे क्षेत्रों में कर्ज प्रवाह में उल्‍लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में बैंक कर्ज का प्रवाह धीमा ही बना रहा। सेवा क्षेत्र को कर्ज प्रवाह अक्‍टूबर 2019 के 6.5 प्रतिशत से बढ़कर अक्‍टूबर 2020 में 9.5 प्रतिशत हो गया।

खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण ही वर्ष 2020 में महंगाई उच्‍च स्‍तर पर बनी रही। हालांकि, दिसम्‍बर 2020 में महंगाई दर गिरकर 4+/-2 प्रतिशत की लक्षित रेंज में आकर 4.6 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि नवम्‍बर में यह 6.9 प्रतिशत थी। खाद्य पदार्थों विशेषकर सब्जियों, मोटे अनाजों और प्रोटीन युक्‍त उत्‍पादों की कीमतों में गिरावट होने और पिछले वर्ष के अपेक्षाकृत कम आंकड़ों से ही संभव हो पाया।

बाह्य क्षेत्र से भी भारत में विकास को काफी सहारा मिला। दरअसल, चालू खाते में अधिशेष वर्ष की प्रथम छमाही के दौरान जीडीपी का 3.1 प्रतिशत रहा, जो सेवा निर्यात में उल्‍लेखनीय वृद्धि और कम मांग की बदौलत संभव हुआ। इस वजह से निर्यात (वाणिज्यिक निर्यात में 21.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ) की तुलना में आयात (वाणिज्यिक आयात में 39.7 प्रतिशत की गिरावट के साथ) में तेज गिरावट दर्ज की गई। इसके परिणामस्‍वरूप देश में विदेशी मुद्रा भंडार इतना अधिक बढ़ गया जिससे 18 माह के आयात को कवर किया जा सकता है।

जीडीपी के अनुपात के रूप में बाह्य या विदेशी ऋण मार्च 2020 के आखिर के 20.6 प्रतिशत से मामूली बढ़कर सितम्‍बर 2020 के आखिर में 21.6 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच गया। हालांकि, विदेशी मुद्रा भंडार में उल्‍लेखनीय वृद्धि की बदौलत विदेशी मुद्रा भंडार और कुल एवं अल्‍पकालिक ऋण (मूल एवं शेष) का अनुपात बेहतर हो गया।

भारत वित्त वर्ष 2020-21 में भी पसंदीदा निवेश गंतव्‍य बना रहा, जो वैश्विक निवेश को शेयरों में लगाने और उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में तेजी से बेहतरी आने की संभावनाओं के मद्देनजर संभव हो पाया है। देश में शुद्ध एफपीआई प्रवाह नवम्‍बर 2020 में 9.8 अरब डॉलर के सर्वकालिक मासिक उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गया जो निवेशकों में फिर से जोखिम उठाने की प्रवृत्ति बढ़ने, वैश्विक स्‍तर पर मौद्रिक नीति को उदार बनाने और घोषित किए गए राजकोषीय प्रोत्‍साहन पैकेजों के मद्देनजर अनुकूल यील्‍ड हासिल करने पर विशेष जोर देने और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने से संभव हुआ। भारत वर्ष 2020 में विभिन्‍न उभरते बाजारों में एकमात्र ऐसा देश रहा जहां इक्विटी में एफआईआई का प्रवाह हुआ।

तेजी से ऊंची छलांग लगाते सेंसेक्‍स और निफ्टी की बदौलत भारत ने बाजार पूंजीकरण और सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) अनुपात अक्‍टूबर 2010 के बाद पहली बार 100 प्रतिशत के स्‍तर को पार कर गया। हालांकि, इससे वित्तीय बाजारों और वास्‍तविक क्षेत्र में कोई सामंजस्‍य न होने पर चिंता जताई जाने लगी है।

वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में 5.8 प्रतिशत और आयात में 11.3 प्रतिशत की गिरावट होने की संभावना है। भारत में चालू खाते में अधिशेष वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी का 2 प्रतिशत रहने की संभावना है जो 17 वर्षों के बाद ऐतिहासिक उच्‍चतम स्‍तर है।

जहां तक आपूर्ति से जुड़ी स्थिति का सवाल है, सकल मूल्‍य वर्द्धित (जीवीए) की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2020-21 में (-) 7.2 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह 3.9 प्रतिशत आंकी गई थी।

कोविड-19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को लगे तेज झटकों का असर कृषि क्षेत्र की बदौलत कम हो जाने की संभावना है क्‍योंकि इसकी वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत रहने की आशा है, जबकि वित्त वर्ष के दौरान उद्योग एवं सेवा वृद्धि दर क्रमश: (-) 9.6 तथा (-) 8.8 प्रतिशत रहने की संभावना है।

आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2020 के दौरान जहां एक ओर कोविड-19 महामारी ने व्‍यापक कहर ढाया, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्‍तर पर आर्थिक सुस्‍ती गहरा जाने की आशंका है जो वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सर्वाधिक गंभीर स्थिति को दर्शाती है। लॉकडाउन और सामाजिक दूरी से जुड़े विभिन्‍न मानकों के कारण पहले से ही धीमी पड़ रही वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था और भी अधिक सुस्‍त हो गई। वर्ष 2020 में वैश्विक स्‍तर पर आर्थिक उत्‍पादन में 3.5 प्रतिशत (आईएफएम ने जनवरी 2021 में यह अनुमान लगाया है) की गिरावट आने का अनुमान है, जो पूरी शताब्‍दी में सर्वाधिक गिरावट को दर्शाती है। इसे ध्‍यान में रखते हुए दुनिया भर की सरकारों और केन्‍द्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को आवश्‍यक सहारा देने के लिए अनेक नीतिगत उपाय किए जैसे कि महत्‍वपूर्ण नीतिगत दरों में कमी की गई, मात्रात्‍मक उदारीकरण उपाय किए गए, कर्जों पर गारंटी दी गई, नकद राशि हस्‍तांतरित की गई और राजकोषीय प्रोत्‍साहन पैकेज घोषित किए गए। भारत सरकार ने महामारी से उत्‍पन्‍न विभिन्न व्‍यवधानों को पहचाना और इसके साथ ही कई अंतर्राष्‍ट्रीय संस्‍थानों द्वारा भारत के लिए निराशाजनक विकास अनुमानों को व्‍यक्‍त किए जाने के बीच देश की विशाल आबादी, उच्‍च जनसंख्‍या घनत्‍व और अपेक्षा से कम स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को ध्‍यान में रखते हुए अपने देश के लिए विशिष्‍ट विकास मार्ग पर चलना सुनिश्चित किया।

आर्थिक समीक्षा में इस ओर ध्‍यान दिलाया गया है कि देश में महामारी का प्रकोप शुरू होने के समय (जब भारत में कोविड के केवल 100 पुष्‍ट मामले ही थे) ही जिस तरह से काफी सख्‍त लॉकडाउन लागू किया गया वह यह दर्शाता है कि इससे निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम कितने मायनों में अनूठे थे। पहला, महामारी विज्ञान और आर्थिक अनुसंधान दोनों से ही प्राप्‍त निष्‍कर्षों को ध्‍यान में रखकर नीतिगत उपाय किए गए। विशेषकर महामारी के फैलने को लेकर व्‍याप्‍त अनिश्चितता को ध्‍यान में रखते हुए सरकारी नीति के तहत हैनसन और सार्जेंट के नोबल पुरस्‍कार प्राप्‍त करने वाले अनुसंधान (2001) को लागू किया गया जिसके तहत ऐसी नीति अपनाने की सिफारिश की गई है जिसमें बेहद विषम परिदृश्‍य में भी कम-से-कम लोगों की मृत्‍यु हो। अप्रत्‍याशित महामारी को ध्‍यान में रखते हुए इस बेहद विषम परिदृश्‍य में अनेकों जिंदगियां बचाने पर विशेष जोर दिया गया। इसके अलावा, महामारी विज्ञान संबंधी अनुसंधान में विशेषकर ऐसे देश में शुरू में ही अत्‍यंत सख्‍त लॉकडाउन लागू किए जाने के महत्‍व पर प्रकाश डाला गया है जहां अत्‍यधिक जनसंख्‍या घनत्‍व के कारण सामाजिक दूरी के मानकों का पालन करना काफी कठिन होता है। अत: लोगों की जिंदगियां बचाने पर फोकस करने वाली भारत के नीतिगत मानवीय उपाय के तहत यह बात रेखांकित की गई कि शुरू में ही सख्‍त लॉकडाउन लागू किए जाने से भले ही लोगों को थोड़े समय तक कष्‍ट हों, लेकिन इससे लोगों को मौत के मुंह से बचाने और आर्थिक विकास की गति तेज करने के रूप में दीर्घकालिक लाभ प्राप्‍त होंगे। दीर्घकालिक लाभ हेतु अल्‍पकालिक कष्‍ट उठाने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले भारत द्वारा किए गए विभिन्‍न साहसिक उपायों से ही देश में अनेकों जिंदगियों को बचाना और ‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव हो पाया है।

दूसरा, भारत ने इस बात को भी अच्‍छी तरह से काफी पहले ही समझ लिया कि महामारी से देश की अर्थव्‍यवस्‍था में वस्‍तुओं की आपूर्ति और मांग दोनों ही प्रभावित हो रही हैं। इसे ध्‍यान में रखते हुए अनेक सुधार लागू किए गए, ताकि लॉकडाउन के कारण वस्‍तुओं की आपूर्ति में लंबे समय तक कोई खास व्‍यवधान न आए। इस दृष्टि से भी भारत का यह कदम सभी प्रमुख देशों की तुलना में अनूठा साबित हुआ है। वस्‍तुओं की मांग बढ़ाने वाली नीति के तहत इस बात को ध्‍यान में रखा गया कि विभिन्‍न वस्‍तुओं, विशेषकर गैर-आवश्‍यक वस्‍तुओं की कुल मांग के बजाय बचत पर ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए जो व्‍यापक अनिश्चितता की स्थिति में काफी बढ़ जाती है। अत: महामारी के आरंभिक महीनों, जिस दौरान अनिश्चितता बेहद ज्‍यादा थी और लॉकडाउन के तहत आर्थिक पाबंदियां लगाई गई थीं, में भारत ने अनावश्‍यक वस्‍तुओं के उपभोग पर बहुमूल्‍य राजकोषीय संसाधन बर्बाद नहीं किया। इसके बजाय नीति में सभी आवश्‍यक वस्‍तुओं को सुनिश्चित करने पर फोकस किया गया। इसके तहत समाज के कमजोर तबकों को प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरित करने और 80.96 करोड़ लाभार्थियों को लक्षित करने वाले विश्‍व के सबसे बड़े खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया। भारत सरकार ने संकटग्रस्‍त सेक्‍टरों को आवश्‍यक राहत प्रदान करने के लिए आपातकालीन ऋण गारंटी योजना भी शुरू की जिससे कि विभिन्‍न कंपनियों को अपने यहां रोजगारों को बनाए रखने और अपनी देनदारियों की अदायगी में मदद मिल सके।

‘अनलॉक’ चरण, जिस दौरान अनिश्चितता के साथ-साथ बचत करने की जरूरत कम हो गई और आर्थिक आवाजाही बढ़ गई, में भारत सरकार ने अपने राजकोषीय खर्च में काफी वृद्धि कर दी है। अनुकूल मौद्रिक नीति ने पर्याप्‍त तरलता या नकदी सुनिश्चित की और मौद्रिक नीति का लाभ लोगों को देने के लिए अस्‍थायी मोहलत के जरिए कर्जदारों को तत्‍काल राहत दी गई। अत: भारत की मांग बढ़ाने संबंधी नीति के तहत यह बात रेखांकित की गई है कि केवल बर्बादी को रोकने पर ही ब्रेक लगाया जाए और विभिन्‍न गतिविधियों में तेजी लाने का काम निरंतर जारी रखा जाए।

वर्ष 2020 ने नोवल कोविड-19 वायरस का व्‍यापक कहर पूरी दुनिया पर ढाया जिससे लोगों की आवाजाही, सुरक्षा और सामान्‍य जीवन यापन सभी खतरे में पड़ गया। इस वजह से भारत सहित समूची दुनिया पूरी शताब्‍दी की सबसे कठिन आर्थिक चुनौती का सामना करने पर विवश हो गई। इस महामारी का कोई इलाज या टीका न होने के मद्देनजर इस व्‍यापक संकट से निपटने की रणनीति सरकारों की सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य नीति पर ही केन्द्रित हो गई। जहां एक ओर महामारी के बढ़ते प्रकोप को नियंत्रण में रखने की अनिवार्यता महसूस की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इसे काबू में रखने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के तहत विभिन्‍न आर्थिक गतिविधियों पर लगाई गई पाबंदियों से उत्‍पन्‍न आर्थिक सुस्‍ती से लोगों की आजीविका भी संकट में पड़ गई। आपस में जुड़ी इन समस्‍याओं के कारण ही ‘जान भी है, जहान भी है’ की नीतिगत दुविधा उत्‍पन्‍न हो गई।


आर्थिक समीक्षा 2020-21 के महत्वपूर्ण तथ्य

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की। कोविड योद्धाओं को समर्पित इस आर्थिक समीक्षा 2020-21 के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैः

शताब्दियों में होने वाले संकट के दौरान जीवन और आजीविका की सुरक्षा

• कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद भारत ने जीवन और आजीविका की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
• यह प्रयास उस मानवीय सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अंतर्गत
• लोगों की जिंदगी वापस नहीं लायी जा सकती।
• महामारी के कारण जीडीपी में कमी आई। जीडीपी में रिकवरी संभावित।
• शुरुआत में ही कड़े लॉकडाउन के कारण लोगों के जीवन की रक्षा करने तथा आजीविका सुरक्षित करने में सहायता मिली। (मध्य और लम्बी अवधि में आर्थिक रिकवरी)
• हैन्सेन एंड सार्जेंट (2001) की नोबेल पुरस्कार से सम्मानित शोध से भी यह रणनीति प्रेरित थी।
• अत्यधिक अनिश्चितता की स्थिति में कम से कम नुकसान होने की नीति अपनाई गई।
• भारत की रणनीति ने ग्राफ को संरेखीय बनाया और सबसे खराब स्थिति आने की संभावना को सितंबर 2020 तक टाल दिया।
• सितंबर में सबसे अधिक मामलों के दर्ज होने के बाद भारत में प्रतिदिन नए मामलों की संख्या में कमी दर्ज की गई है, जबकि आवागमन बढ़ा है।
• पहली तिमाही में जीडीपी पर 23.9 प्रतिशत की कमी, जबकि दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की कमी। यह वी-शेप रिकवरी को दर्शाती है।
• कोविड महामारी ने मांग और आपूर्ति दोनों को प्रभाविक किया।
• भारत एक मात्र देश था जिसने आपूर्ति बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधार घोषित किए ताकि उत्पादन क्षमताओं का कम से कम नुकसान हो।
• आर्थिक गतिविधियों पर लगी रोक को हटाने के साथ मांग बढ़ाने को लेकर नीतियां बनाई गईं।
• नेशनल इंफ्रास्ट्रकचर पाइपलाइन में सार्वजनिक निवेश ताकि मांग में वृद्धि हो।
• महामारी संक्रमण के दूसरे दौर को रोकने में सफलता, अर्थव्यवस्था में तेजी

अर्थव्यवस्था परिदृश्य 2020-21: प्रमुख तथ्य

• कोविड-19 महामारी के कारण पूरे विश्व को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। यह वैश्विक वित्तीय संकट से भी अधिक गंभीर।
• लॉकडाउन तथा एक-दूसरे से आवश्यक दूरी बनाए रखने के नियमों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा।
• आकलन के अनुसार वैश्विक आर्थिक उत्पादन 2020 में 3.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की जाएगी। (आईएमएफ, जनवरी 2021 अनुमान)
• पूरी दुनिया में सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने विभिन्न नीतियों के माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन दिया।
• भारत ने चार आयामों वाली रणनीति को अपनाया-महामारी पर नियंत्रण, वित्तीय नीति और लम्बी अवधि के संरचनात्मक सुधार।
• वित्तीय और मौद्रिक समर्थन दिया गया। लॉकडाउन के दौरान कमजोर वर्ग को राहत दी गई। अनलॉक के दौरान खपत और निवेश को प्रोत्साहन।
• मौद्रिक नीति ने नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित की। कर्ज लेने वालों को राहत दी गई।
• एनएसओ के अग्रिम नुकसान के अनुसार भारत की जीडीपी की विकास दर वित्त वर्ष 2021 (-) 7.7 प्रतिशत रहेगी। वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही की तुलना में दूसरी छमाही में 23.9 प्रतिशत की वृद्धि।
• वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी की विकास दर 11.0 प्रतिशत रहेगी तथा सांकेतिक जीडीपी की विकास दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वाधिक होगी।
• कोविड-19 वैक्सीन की शुरुआत के बाद से आर्थिक गतिविधियां और भी सामान्य हुई हैं।
• सरकारी खपत और निर्यात ने विकास दर में और कमी नहीं आने दी, जबकि निवेश और निजी क्षेत्र खपत ने विकास दर को कम किया।
• वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में रिकवरी सरकारी खपत के कारण होगी। 17 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
• वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में निर्यात में 5.8 प्रतिशत और आयात में 11.3 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।
• वित्त वर्ष 2021 में चालू खाता सरप्लस, जीडीपी के 2 प्रतिशत के बराबर होने का अनुमान। 17 वर्षों के बाद ऐसी स्थिति।
• आपूर्ति में वित्त वर्ष 21 के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) की विकास दर -7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान, यह वित्त वर्ष 20 में 3.9 प्रतिशत थी।
• कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान को कम करने में कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 21 के लिए 3.4 प्रतिशत आंकी गई है।
• वित्त वर्ष 21 के दौरान उद्योग और सेवा क्षेत्र में क्रमशः 9.6 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।
• सेवा क्षेत्र, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा। ये क्षेत्र अब तेजी से सामान्य होने की स्थिति में आगे बढ़ रहे हैं। कृषि क्षेत्र ने बेहतर परिणाम दिए हैं।
• वित्त वर्ष 20-21 के दौरान भारत निवेश के लिए सबसे पसंदीदा देश रहा।
• नवम्बर 2020 में कुल एफपीआई प्रवाह 9.8 बिलियन डॉलर रहा, जो महीने के संदर्भ में सर्वाधिक है।
• उभरते हुए बाजारों में भारत एक मात्र देश है जिसे 2020 में इक्विटी के रूप में एफआईआई प्राप्त हुआ।
• सेंसेक्स और निफ्टी भारत के बाजार पूंजी तथा जीडीपी अनुपात के 100 प्रतिशत को पार कर लिया, ऐसा अक्तूबर 2010 के बाद पहली बार हुआ।
• सीपीआई महंगाई दर में हाल में कमी दर्ज की गई है। आपूर्ति में अवरोधों को समाप्त किया गया है।
• निवेश में 0.8 प्रतिशत की मामूली कमी आने का अनुमान। पहली छमाही में 29 प्रतिशत की गिरावट।
• राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच आवागमन में बढ़ोतरी से जीएसटी संग्रह रिकॉर्ड स्तर पर। औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियां को अनलॉक किया गया।
• वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में चालू खाता खाता सरप्लस जीडीपी का 3.1 प्रतिशत।
• सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी और मांग में कमी से निर्यात (वाणिज्यिक निर्यात में 21.2 प्रतिशत की कमी) की तुलना में आयात (वाणिज्यिक आयात में 39.7 प्रतिशत की कमी) में कमी आई।
• दिसंबर 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार अगले 18 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त।
• जीडीपी के अनुपात में विदेशी कर्ज मार्च 2020 के 20.6 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2020 में 21.6 प्रतिशत हुआ।
• विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से विदेशी मुद्रा और कुल एवं लघु अवधि कर्ज का अनुपात बेहतर हुआ।
• वी (V) आकार में सुधार जारी है, जैसा कि बिजली की मांग, इस्पात की खपत ई-वे बिल, जीएसटी संग्रह आदि तेज उतार-चढ़ाव वाले संकेतकों में निरंतर बढ़ोतरी के रूप में प्रदर्शित हुआ है।
• भारत 6 दिन में सबसे तेजी से 10 लाख टीके लगाने वाला देश बन गया है और साथ ही अपने पड़ोसी देशों और ब्राजील को टीकों के अग्रणी आपूर्तिकर्ता के रूप में भी उभरा है।
• व्यापक टीकाकरण अभियान की शुरुआत के साथ अर्थव्यवस्था सामान्य स्थिति की ओर लौट रही है :
o सेवा क्षेत्र, खपत और निवेश में मजबूती के साथ सुधार की उम्मीद बढ़ी
o भारत को अपनी विकास की संभावनाओं के अहसास में सक्षम बनाने और महामारी के विपरीत प्रभाव को खत्म करने तक सुधार जारी रहने चाहिए
• ‘सदी के पहले’ संकट से निपटने के लिए भारत की परिपक्व नीतिगत प्रतिक्रिया से लोकतंत्रों को सीमित नीतिगत निर्माण से बचने और दीर्घकालिक लाभों पर ध्यान केंद्रित करने के फायदों के प्रदर्शन के लिए अहम सबक मिले हैं।

लॉकडाउन में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 प्रतिशत बढ़ी, गरीबों को पड़ गए खाने के लाले और करोड़ों लोगों के लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया:ऑक्सफैम की रिपोर्ट जारी attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 जनवरी । गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 प्रतिशत बढ़ गई, जबकि इस दौरान करोड़ों लोगों के लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘इनइक्वालिटी वायरस’ में कहा गया, ‘‘मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है। इतनी राशि का वितरण यदि देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में किया जाए, तो इनमें से प्रत्येक को 94,045 रुपये दिए जा सकते हैं।’’

रिपोर्ट में आय की असमता का जिक्र करते हुए बताया गया कि महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है और इसके चलते 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ।

ऑक्सफैम इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने कहा, ‘‘इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से कैसे सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौरान सबसे धनी लोगों ने बहुत अधिक संपत्ति अर्जित की, जबकि करोड़ों लोग बेहद मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं।’’

चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में आ सकती है 25 प्रतिशत की गिरावट, GDP में बड़ी गिरावट से बजट अनुमान पूरी तरह दायरे से बाहर निकला attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 जनवरी। देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरुण कुमार का मानना है कि सरकार के दावे के विपरीत अर्थव्यवस्था में अधिक तेजी से सुधार नहीं आ रहा है। कुमार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।

कुमार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ी गिरावट से बजट अनुमान पूरी तरह दायरे से बाहर निकल गया है और बजट को दुरुस्त करने की जरूरत है।

कुमार ने साक्षात्कार में कहा, ‘‘देश की आर्थिक वृद्धि में उतनी तेजी से सुधार नहीं आ रहा है, जैसा सरकार दिखा रही है। असंगठित क्षेत्र की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है और सेवा क्षेत्र के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से भी उबर नहीं पाए हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विश्लेषण के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत की गिरावट आएगी। अप्रैल-मई में लॉकडाउन के दौरान सिर्फ आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन हुआ। यहां तक कि कृषि क्षेत्र में भी वृद्धि नहीं हुई।’’

भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी। वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अर्थव्यवस्था में 7.7 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर कुमार ने कहा कि सरकार ने अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर की तिमाहियों के लिए जो जीडीपी दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं, उनमें भी कहा गया है कि इन आंकड़ों में बाद में संशोधन होगा।

उन्होंने कहा कि भारत का राजकोषीय घाटा पिछले साल से अधिक रहेगा। राज्यों का राजकोषीय घाटा भी ऊंचे स्तर पर रहेगा।

उन्होंने कहा कि विनिवेश राजस्व भी कम रहेगा। कर और गैर-कर राजस्व में भी कमी आएगी।

कुमार ने कहा कि भारत का आर्थिक पुनरोद्धार कई कारकों पर निर्भर करेगा। ‘कितनी तेजी से टीकाकरण होता है और कितनी तेजी से लोग अपने काम पर लौट पाते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम 2021 में 2019 के उत्पादन स्तर पर नहीं पहुंच पाएंगे। संभवत: टीकाकरण के बाद 2022 में हम 2019 के उत्पादन का स्तर हासिल कर पाएं।’’

उन्होंने कहा कि आगामी वर्षों में वृद्धि दर निचले आधार प्रभाव की वजह से अच्छी रहेगी, लेकिन उत्पादन 2019 की तुलना में कम रहेगा।

पेट्रोल और डीजल पर रिकार्ड उत्पाद शुल्क की वसूली: पेट्रोल पर 32.98 ₹और डीजल पर 31.83 ₹ प्रति लीटर की वसूली; चालू वित्त वर्ष में पेट्रोल पर दो बार में उत्पाद शुल्क 13 ₹, डीजल पर 16₹ प्रति लीटर बढ़ाया attacknews.in

डीजल, पेट्रोल पर रिकॉर्ड कर वृद्धि से चालू वित्त वर्ष में उत्पाद शुल्क संग्रह 48 प्रतिशत बढ़ा

नयी दिल्ली, 17 जनवरी । महामारी के कारण भले ही लगभग हर प्रकार के कर संग्रह में कमी आयी हो, लेकिन उत्पाद शुल्क संग्रह में चालू वित्त वर्ष के दौरान 48 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। इसका कारण डीजल और पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क दर में रिकॉर्ड वृद्धि है।

महालेखा नियंत्रक (सीजीए) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-नवंबर 2020 के दौरान उत्पाद शुल्क का संग्रह 2019 की इसी अवधि के 1,32,899 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,96,342 करोड़ रुपये हो गया।

उत्पाद शुल्क संग्रह में यह वृद्धि चालू वित्त वर्ष के आठ महीने की अवधि के दौरान डीजल की बिक्री में एक करोड़ टन से अधिक की कमी के बावजूद हुई। डीजल भारत में सबसे ज्यादा खपत होने वाला ईंधन है।

पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से नवंबर 2020 के दौरान डीजल की बिक्री साल भर पहले के 5.54 करोड़ टन से कम होकर 4.49 करोड़ टन रह गयी। इस दौरान पेट्रोल की खपत भी साल भर पहले के 2.04 करोड़ टन से कम होकर 1.74 करोड़ टन रही।

पेट्रोलियम उत्पादों और प्राकृतिक गैस को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था से बाहर रखा गया है। देश में जुलाई 2017 से जीएसटी व्यवस्था अमल में आई है। पेट्रोलियम उत्पादों और प्राकृतिक गैस पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क वसूलती है, जबकि राज्य सरकारें मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाती हैं।

उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती के बावजूद उत्पाद शुल्क संग्रह में हुई वृद्धि का मुख्य कारण पेट्रोल और डीजल पर कर की दर में रिकॉर्ड वृद्धि का होना है।

सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान पेट्रोल पर दो बार में उत्पाद शुल्क 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 16 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया है। इससे पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क बढ़कर 32.98 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर हो गया।

दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत 84.70 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 74.88 रुपये प्रति लीटर है।

महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों के अनुसार 2019- 20 पूरे वित्त वर्ष में कुल उत्पाद शुल्क प्राप्ति 2,39,599 करोड़ रुपये रही है।

विमान ईंधन एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) की कीमतों में तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी,पेट्रोल,पिछले दो माह में कीमतों में यह चौथी वृद्धि, डीजल-कीमतों में बदलाव नहीं attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 जनवरी । विमान ईंधन एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) की कीमतों में शनिवार को तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ने के बीच पिछले दो माह में यह एटीएफ कीमतों में चौथी वृद्धि है। हालांकि, नयी ऊंचाई छूने के बाद पेट्रोल और डीजल कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों की मूल्य अधिसूचना के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में एटीएफ का दाम 1,512.38 रुपये प्रति किलोलीटर की बढ़ोतरी के साथ 52,491.16 रुपये प्रति किलोलीटर पर पहुंच गया गया है।

एटीएफ कीमतों में यह एक दिसंबर, 2020 से चौथी वृद्धि है। उस दिन एटीएफ के दाम 7.6 प्रतिशत या 3,288.38 रुपये प्रति किलोलीटर बढ़ाए गए थे। 16 दिसंबर को एटीएफ कीमतों में 6.3 प्रतिशत या 2,941.5 रुपये प्रति किलोलीटर और एक जनवरी को 3.69 प्रतिशत या 1,817.62 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई थी।

एटीएफ कीमतों में प्रत्येक महीने की एक और 16 तारीख को बेंचमार्क अंतरराष्ट्रीय दरों के औसत मूल्य और पिछले पखवाड़े की विदेशी विनिमय दर के हिसाब से संशोधन होता है।

मुंबई में शनिवार को एटीएफ का दाम 49,083.65 रुपये से बढ़कर 50,596.02 रुपये प्रति किलोलीटर हो गया। स्थानीय करों की वजह से विभिन्न राज्यों में एटीएफ के दाम भिन्न होते हैं।

हालांकि, शनिवार को पेट्रोल और डीजल कीमतों में संशोधन नहीं हुआ। दिल्ली में 14 जनवरी को पेट्रोल अपने सर्वकालिक उच्चस्तर 84.70 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया। मुंबई में यह 91.32 रुपये प्रति लीटर है।

हालांकि, मुंबई में डीजल का दाम 81.60 रुपये प्रति लीटर के रिकॉर्ड स्तर पर है। दिल्ली में डीजल 74.88 रुपये प्रति लीटर है।