नईदिल्ली 22 मार्च। कार्ड से पेमेंट करेंगे तो ज्यादा पैसा चुकाना पड़ेगा. एटीएम से इतनी बार ही मुफ्त में पैसा निकलेगा. कैशलेस इंडिया बहुत महंगा साबित हो रहा है. और ऐसा लगता है जैसे सरकार और रिजर्व बैंक को यह बात समझ में आ ही नहीं रही है.
भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ नरेन्द्र मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं.
नोटबंदी के बाद सरकार ने कैशलैस इंडिया का अभियान छेड़ा. नकद भुगतान को कम करने की कोशिश की, कार्ड से पेमेंट को बढ़ावा दिया.
कैशलैस भुगतान में हर सौदा बैंक रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता है. टैक्स और वित्तीय पारदर्शिता के लिहाज से यह अच्छी पहल है. लेकिन पर्याप्त तैयारियों के बिना ये कदम आम लोगों पर अनचाहा वित्तीय बोझ बन रहा है, और सरकार इसकी अनदेखी कर रही है.
उदाहरण के लिए आप 10,000 हजार रुपये का कोई सामान खरीदिए. कैश से पेमेंट करने पर आपको 10,000 रुपये की एमआरपी ही चुकानी पड़ती है. लेकिन बहुत संभव है कि कई जगहों पर कार्ड से भुगतान करने पर डेढ़ फीसदी या ढाई फीसदी ज्यादा पैसा चुकाना पड़े. यानि 10,000 रुपये की एमआरपी के लिए 10,150 या 10,250 रुपये चुकाने पड़ें. और ऐसा सिर्फ महंगे सामानों के साथ ही नहीं है. कार्ड स्वाइप करने पर छोटे छोटे सौदे भी महंगे पड़ते हैं.
खाते में न्यूनतम बैलेंस न हो तो हर बार कार्ड से स्वाइप करने पर 17 से 25 रुपये की पेनल्टी.
ऐसे में कैशलैस अर्थव्यवस्था लोकप्रिय कैसे होगी, उसकी साख कैसे बनेगी? कार्ड से पारदर्शी सौदा करने वाले को बार बार ज्यादा कीमत क्यों चुकानी चाहिए?
भारत में दुकानदार कार्ड स्वाइप मशीन ऑपरेट करने के लिए किसी बैंक की सेवा लेते हैं.
बैंक, कार्ड स्वाइप मशीन की सर्विस देने के बदले कुछ चार्ज लेता है. इस चार्ज की भरपाई सीधे उपभोक्ता से सिर उड़ेली जा रही है.
ज्वैलर्स या इलेक्ट्रॉनिक आइटम बेचने वाले कई व्यापारी अब भी कैश ज्यादा पसंद करते हैं, इसके पीछे उनकी क्या मंशा है, यह तो वही जानें, लेकिन ग्राहकों की मंशा साफ है, क्योंकि एक्स्ट्रा चार्ज कैशलैस इंडिया में रह रहे ग्राहक को देना पड़ता है.
इसके अलावा एटीएम के इस्तेमाल पर भी चार्ज लगने लगा है. किसी बैंक के एटीएम से महीने में सिर्फ छह बार निःशुल्क पैसा निकाल सकते हैं तो किसी के एटीएम से 10 बार 10 निकासी संभव है. निकासी की यह लिमिट खत्म होने के बाद अगर उपभोक्ता अपने बैंक एटीएम से भी पैसा निकालता है तो उसे अतिरिक्त शुल्क देना पड़ रहा है. यानि लोग पैसा निकालें तो भी खर्चा, कार्ड से पेमेंट करें तो भी एक्स्ट्रा चार्ज.
हर बैंक के अपने नियम कायदे हैं. भारत में बैंकिंग जनता के वित्तीय समावेशन के लिए नहीं बल्कि मुनाफा कमाने का जरिया बनती दिख रही है.
यह समस्या रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके रघुराम राजन के समय में भी थी. अब उर्जित पटेल के काल में भी हैं. वित्त मंत्रालय से जुड़े सभी अधिकारी इससे वाकिफ हैं.
दूसरे देशों के बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर पर लगातार नजर रखने वाले ये सभी लोग इन समस्याओं को दूर करने की फिलहाल कोई पहल नहीं कर रहे हैं.
आम लोगों के लिए सहूलियत भरी कैशलैस व्यवस्था कैसे बनाई जा सकती है, इसकी सीख यूरोप से ली जा सकती है.
जर्मनी, फ्रांस, इटली, नॉर्वे, फिनलैंड और स्वीडन समेत यूरोपीय संघ के सभी देशों में कार्ड से भुगतान करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता. कार्ड में पैसा हो तो उसे खरीदारी के लिए ढेरों बार इस्तेमाल किया जा सकता है. अपने एटीएम से बार बार पैसे निकाले जा सकते हैं. सिर्फ दूसरे बैंकों के एटीएम से पैसा निकालने पर शुल्क देना पड़ता है. ग्राहकों की सुविधा के लिए बैंकों ने दूसरे बैंकों के साथ एटीएम सहयोग समझौता कर लिया है. चालू खाता रखने के लिए बहुत कम मासिक न्यूनतम फीस जरूर देनी पड़ती है, लेकिन यह शुल्क बाकी मुश्किलों से बचाता है. कई बैंकों में न्यूनतम राशि रखने पर यह मासिक शुल्क नहीं लगता. ऑनलाइन बैंकों में तो यह मुफ्त है ही. आखिर बैंक ग्राहकों के खातों में रखे धन से कमाई कर ही रहे हैं.
यूरोपीय संघ में अब 28 देशों के बीच आम नागरिकों के लिए ईजी कार्ड पेमेंट सिस्टम बनाया जा रहा है. जर्मन संसद ने 2017 में यूरोपीय संघ के फैसले के बादर कार्ड पेमेंट पर किसी भी तरह के एक्स्ट्रा चार्ज पर रोक लगा दी. इसके अलावा क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल को भी सस्ता और सुरक्षित बनाया गया.
यूरोपीय संघ ने निर्देश यूरोप में आम लोगों की सुविधा बढ़ाने के लिए जारी किए. जून 2017 से पहले जर्मनी में ङी क्रेडिट कार्ड के जरिए इंटरनेट से फ्लाइट, या होटल बुक करने पर अतिरिक्त चार्ज की वसूली शुरू हो गई थी. संसद ने ग्राहकों को इस खर्च से बचाने के लिए इस पर रोक लगा दी. पूरे यूरोप में अब ऐसा नहीं किया जा सकेगा.
क्रेडिट कार्ड लोगों की मदद करने के लिए है, उन्हें लूटने के लिए नहीं. कैश की ही तरह वह भी भुगतान का अतिरिक्त साधन है. उस पर शुल्क लगाना ग्राहकों की लूट के अलावा और कुछ नहीं है. इस लूट को रोकना सरकारों की जिम्मेदारी है.
भारत में अब भी क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने में लोगों को घबराहट होती है. वह कर्ज का ऐसा जंजाल बन जाता है, जो कभी खत्म ही नहीं होता. इस बीच पेटीएम और मोबाइल मनी जैसी सेवाओं ने आम लोगों की मदद की है. लेकिन इन सेवाओं के साथ साथ बैंकिंग में मौजूद मूलभूत समस्याओं को भी हल करने की जरूरत है. वरना कैशलैस इंडिया का नारा सिर्फ एक जुमला बनकर रह जाएगा.attacknews.in