लखनऊ 26 दिसम्बर । दशकों से प्राकृतिक आपदा और सरकारी उदासीनता के चलते आर्थिक बदहाली और पिछड़ेपन का दंश झेलने को मजबूर बुंदेलखंड के विकास के लिये मौजूदा सरकार की तमाम कवायद के बावजूद पृथक राज्य की मांग का शोर बदस्तूर जारी रहा।
कभी जल संरक्षण और संवर्धन के लिये विख्यात बुंदेलखंड अब पानी की समस्या के अलावा बेरोजागारी और भुखमरी के कारण चर्चा में रहता है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के सात जिले चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर का भूभाग आता है।
लगभग 29 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में कुल 24 तहसीलें, 47 ब्लाक है। उत्तर प्रदेश के भूभाग वाले बुंदेलखंड की आबादी करीब एक करोड़ है हालांकि राजनीतिक स्तर पर जिस पृथक राज्य की परिकल्पना है उसमें 23 जिले हैं जिनमें मध्यप्रदेश के भिंड, मुरैना, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, नरसिंहपुर, सागर, दमोह, ग्वालियर, दतिया, जबलपुर, टीकमगढ़, भिंड, छतरपुर, पन्ना और सतना भी शामिल हैं।
बुंदेलखंड क्षेत्र को गरीबी और बदहाली से निकालने के लिये समय समय पर तमाम योजनाये लायी गयी लेकिन अमली जामा पहनाने से पहले इनमें से अधिकतर योजनायें दम तोड़ गयी। इसी कड़ी में वर्ष 2014 में केन्द्र में आयी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने सूखा प्रभावित इस क्षेत्र की सुधि ली मगर प्रदेश सरकार से तालमेल के अभाव में केन्द्र की योजनाये परवान नहीं चढ़ सकी।
पिछले साल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के अस्तित्व में आने के बाद केन्द्र के सहयोग से बुंदेलखंड के विकास के लिये कई योजनाओं पर काम जारी है लेकिन इसके बावजूद झांसी,महोबा,हमीरपुर और बांदा समेत समूचे बुंदेलखंड में सारा साल पृथक राज्य की मांग जोर पकड़े रही। हाल ही में सम्पन्न विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा के सदस्यों ने इस मसले पर चर्चा की मांग कर सरकार की किरकिरी की।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी विकास के लिए प्रदेश को छोटे-छोटे राज्यों में विभाजन की परिकल्पना करती रही है। कुछ अन्य राजनीतिक दल भी छोटे राज्य के हिमायती हैं। प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर के मुताबिक कि प्रदेश के चार टुकड़े होने पर ही सही तरह से विकास होगा हालांकि राज्य की योगी सरकार विभाजन के बजाय विकास पर तवज्जो देने के लिये ज्यादा फिक्रमंद नजर आती है।
बुंदेलखंड को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिये इन दिनों बाण सागर, अर्जुन सहायक, मध्य गंगा नहर, सरयू नहर समेत कई परियोजनओं पर काम जारी है जिसकी समय समय पर समीक्षा की जा रही है। सरकार का दावा है कि इन परियोजनाओं के बूते यह क्षेत्र पानी के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा। वहीं डिफेंस कारीडोर और बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे इस क्षेत्र में विकास के नये आयाम स्थापित करेंगे।
दो रोज पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में पूर्वांचल विकास बोर्ड और बुंदेलखंड विकास बोर्ड के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी देकर सरकार ने इस क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन के संकल्प को दोहराया। दोनों विकास बोर्डो के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे।
हालांकि सरकार की तमाम कवायदों को धता बताते हुये पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग पर कोई असर नहीं दिखा। महोबा में पृथक बुंदेलखंड की मांग में आंदोलनरत बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर और जिला अधिवक्ता समिति के पूर्व अध्यक्ष सुखनंदन यादव के समर्थन में बजरंग सेना समेत बड़ी तादाद में लोग आगे आये। पिछले अगस्त महीने में इस मांग को लेकर सामूहिक मुंडन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। एल्डर्स कमेटी के सदस्य लोचन सिंह ने कहा कि आजादी के बाद वर्ष 1956 तक बुंदेलखंड राज्य था। अगर इसका विभाजन न होता तो बुंदेलखंड की ये दुर्दशा न होती।
नीला जहां के संयोजक नंद कुमार वर्मा ने कहा “ बुंदेलखंड में अपार समस्यायों वाला क्षेत्र हैं, इसे नकारा नहीं जा सकता लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इन समस्याओं का मानवीय स्तर पर समाधान भी संभव है, शर्त यह है कि इसके लिए ईमानदार पहल हो। सरकारें बदलती गईं लेकिन मगर बुंदेलखंड के हालात नहीं बदले। जल संकट, सूखा, बेरोजगारी और पलायन का आज भी स्थायी समाधान नहीं खोजा जा सका है। राजनेताओं ने खूब सब्ज-बाग दिखाए, लेकिन जमीनी हकीकत वही बंजर जमीन जैसी है।
महाेबा के अलावा वीरंगना की कर्मभूमि झांसी और बांदा में भी साल भर पृथक बुंदेलखंड की मांग गूंजती रही। इस दौरान अलग अलग संगठनों द्वारा कम से कम तीन बार झांसी बंद का ऐलान किया गया।
उधर, बुंदलेखंड के विकास के लिये करीब 26 हजार करोड़ रूपये की योजना के बारे में सरकार का कहना है कि यह परियोजना बुंदेलखंड के लोगों के लिए खुशहाली की सौगात लाएगी। इससे पेयजल उपलब्धता के साथ सिंचाई सुविधा को बेहतर बनाया जा सकेगा इसके कारण लोगों का पलायन भी रुकेगा।
इस बीच योगी सरकार ने झांसी से इटावा के बीच 293 किमी लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे को अंतिम रूप दिया। यह एक्सप्रेस-वे चार लेन का होगा। इटावा में यह आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे से जुड़ जाएगा। बुंदेलखंड परियोजना अपने आप में यूपी का पहला ऐसा एक्सप्रेस-वे होगा जो राज्य के सबसे पिछड़े जिलों चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, जालौन और औरैया से होकर गुजरेगा।
इसके अलावा सरकार ने बुंदेलखंड में डेयरी परियोजना के संचालन के जरिये महिलाओं के सशक्तीकरण एवं आर्थिक रूप से मजबूत करने की कवायद शुरू की है। परियोजना पर तीन वर्षों की अवधि में 43.58 करोड़ रुपये की धनराशि व्यय की जाएगी। इसमें केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार क्रमशः 26.15 करोड़ रुपये और 17.43 करोड़ रुपये की राशि व्यय करेंगी।
बुंदेलखंड के सात जिलों के विकास के लिये बुंदेलखंड विकास बोर्ड में दो उपाध्यक्ष तथा 11 नामित सदस्य होंगे। इस बोर्ड में सरकार अधिकारियों में दो विशेषज्ञों को शामिल करने के अलावा नामित सदस्य होंगे। बोर्ड का कार्यकाल तीन साल का होगा।
इतिहासकार राजीव निगम बताते है कि एक जमाने में बुंदेलखंड में जातीय पंचायतें अपने किसी सदस्य की अक्षम्य गलती पर जब दंड देती थीं तो उसे दंड में प्रायः तालाब बनाने को कहती थीं। बुंदेलखंड की औसत बारिश 95 सेंटीमीटर है, जिससे यहाँ पानी की कमी बनी रहती है। यही कारण है कि यहाँ कम बारिश में पनपने वाली फसलों को प्रोत्साहन दिया जाता पर सरकार और कुछ बड़े किसानों ने सोयाबीन और कपास जैसे विकल्पों के चुना मगर पिछले कुछ दशकों में निजी आर्थिक हितों की मंशा को पूरा करने के लिए नकद फसलों को बढावा दिया गया। इससे जमीन की नमी गयी तो गहरे नलकूप खोद कर जमीन का पानी खींच कर निकाल लिया और भू-जल स्रोतों को सुखाना शुरू कर दिया।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के आंकडो के अनुसार बुंदेलखंड क्षेत्र के जिलों के कुओं में पानी का स्तर नीचे जा रहा है और भू-जल हर साल दो से चार मीटर के हिसाब से गिर रहा है वहीं दूसरी ओर हर साल बारिश में गिरने वाले 70 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में से 15 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही जमीन में उतर पाता है।
श्री निगम ने कहा कि बुंदेलखंड को विकास के क्रांतिकारी नज़रिए की जरूरत है। इस नज़रिए में उसे अपने बारे में सोचने और अपने विकास के रूपरेखा गढ़ने की स्वतंत्रता मिल जाए तो सूखा भी हरा हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से भी बुंदेलखंड प्रक्रति के प्रकोपों से जूझता रहा है। पानी का संकट वहां इसलिए पनपता रहा क्योंकि वहां कि भौगोलिक और जमीनी स्थितियां पानी, बारिश के पानी को टिकने नहीं देती हैं। वहां जमीन में पत्थर भी है और कुछ इलाकों में अच्छी जमीन भी। यही कारण है कि बुंदेलखंड के समाजों और राजसत्ता ने तालाबों के निर्माण को तवज्जो दी और कृषि के तहत ऐसी फसलों को अपनाया जिनमे पानी कम लगता है।
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