रायपुर, 10 मार्च । छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती। इसी के चलते आदिवासी नेता विक्रम उसेंडी को राज्य का नेतृत्व सौंप कर पार्टी ने नाराज आदिवासियों को कांग्रेस के खेमे से खींचकर वापस अपने पक्ष में करने का दांव खेला है।
उसेंडी ने पिछड़ा वर्ग के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का स्थान लिया है। कौशिक अगस्त 2014 से राज्य में भाजपा का कमान संभाल रहे थे।
उसेंडी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कांकेर लोकसभा सीट से सांसद हैं और पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में वह अंतागढ़ सीट से कांग्रेस के अनुप नाग से हार गए थे। उसेंडी बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं और वर्ष 1993 में वह पहली बार अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे। वह वर्ष 2008 से वर्ष 2013 के दौरान रमन मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे हैं। वर्ष 2013 में अंतागढ़ विधानसभा सीट से चुने जाने के बाद वह वर्ष 2014 में कांकेर लोकसभा सीट के लिए निर्वाचित हुए हैं।
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण होने के बाद वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 11 में से 10 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस के टिकट से महासमुंद से जीत हासिल की थी। भाजपा ने इस जीत को वर्ष 2009 और 2014 में भी कायम रखा। इन चुनावों में भी भाजपा को 11 में से 10 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस को वर्ष 2009 में एकमात्र कोरबा सीट :चरणदास महंतः पर तथा वर्ष 2014 में दुर्ग सीट :ताम्रध्वज साहूः पर ही जीत मिल सकी थी।
लेकिन इस वर्ष होने के वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए इस जीत को कायम रख पाना आसान नहीं है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य की 90 में से 68 सीटों पर कांग्रेस ने, 15 सीटों पर भाजपा ने तथा सात सीटों पर अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ :जेः और बसपा गठबंधन ने जीत हासिल की है। इस चुनाव में कांग्रेस को आदिवासियों का साथ मिला है और राज्य की 29 आदिवासी सीटों में से 25 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीते हैं। वहीं तीन आदिवासी सीटों पर भाजपा ने तथा एक मात्र सीट पर जोगी की पार्टी ने जीत हासिल की है।
राज्य में आदिवासी सीटों पर जनाधार खोने के बाद एक बार फिर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आदिवासी नेता को कमान सौंपी है। वैसे राज्य निर्माण के बाद से नंदकुमार साय, शिवप्रताप सिंह, विष्णुदेव साय और रामसेवक पैकरा जैसे आदिवासी नेता भी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन इस बार के हालात अलग है और उसेंडी के लिए राह आसान नहीं है। हालांकि भाजपा को उम्मीद है कि उसेंडी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त होने से पार्टी को आदिवासी वर्ग का एक बार फिर साथ मिलेगा।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं कि राज्य निर्माण के बाद से पार्टी ने ज्यादातर आदिवासी वर्ग को नेतृत्व सौंपा है। उसेंडी बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं और वह लगातार सक्रिय भी हैं। उनकी छवि का लाभ पार्टी को जरूर मिलेगा।
इधर कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी का कहना है कि इसबार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तीन चौथाई बहुमत मिला है। राज्य सरकार लगातार आदिवासी हित में काम कर रही है। आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार तय है। ऐसे में विक्रम उसेंडी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनके सर पर हार का ठीकरा फोड़ने की भूमिका बनाई जा रही है।
राज्य में राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि बीते विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा से जो भी आदिवासी नेता चुनाव जीते हैं वह अपने प्रभाव के कारण जीते हैं। ऐसे में विक्रम उसेंडी इन सीटों पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाल पाएंगे यह कह पाना कठिन है।
राज्य में 11 लोकसभा सीटों में से चार अनुसूचित जनजाति के लिए तथा एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। लगभग 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले राज्य में उसेंडी इस चुनाव में कितना प्रभाव डाल पाते हैं यह आने वाला समय ही बताएगा।
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