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खामोश … शत्रु की खामोशी के लिए पटना साहिब की जनता खामोशी से कर रही है इंतज़ार, भाजपा छोड़ने का खामियाजा भुगत सकते है शत्रुघ्न सिन्हा attacknews.in

पटना 18 मई । बिहारी बाबू के नाम से चर्चित फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा इस बार पाला बदलकर कांग्रेस की टिकट पर पटना संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से सीधा मुकाबला करने उतरे हैं जिसमें तय हो जाएगा कि ‘ शत्रु ‘ अपने विरोधियों को ‘खामोश’ करते हैं या जनता उन्हें ‘खामोश’ करेगी ।

श्री सिन्हा भाजपा की स्थापना से ही उससे जुड़े थे और वह पार्टी के लिए स्टार प्रचारक थे । भाजपा ने उन्हें दो बार राज्य सभा का सदस्य बनाया और उसके बाद 2009 और 2014 में वह पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीतकर लोकसभा पहुंचे। इससे पहले वह वाजपयी मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य और जहाजरानी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके है।

भाजपा के दिग्गज नेता लाकृष्ण आडवाणी को अपना “ फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड ” मानने वाले शत्रुघ्न सिन्हा उसी समय से बागी हो गए थे जब वर्ष 2013 में श्री नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था । वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें पटना साहिब से उम्मीदवार तो बना दिया लेकिन पार्टी ने वर्ष 2014 के बाद हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्हें अपना स्टार प्रचारक नहीं बनाया। श्री सिन्हा को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली जिसके बाद वह खुलेआम सरकार की आलोचना करने लगे ।

भाजपा के सांसद होने के बावजूद उन्होंने नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की। श्री सिन्हा कई बार विपक्ष के दिग्गज नेताओं के साथ मंच साझा करते भी नजर आए।

अनेक मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अटल-आडवाणी वाली भाजपा नहीं बल्कि “ वन मैन शो, टू मैन आर्मी ” वाली पार्टी बता कर तथा सरकार की नीतियों की आलोचना की इसके बावजूद पार्टी ने उनके खिलाफ कोई अनुशासनिक कार्यवाही करने से परहेज किया । इस बार उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए जब उम्मीदवार नहीं बनाया तब वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए ।

भाजपा ने इस बार पटना साहिब से केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सदस्य रविशंकर प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है। श्री प्रसाद पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। पेशे से वकील श्री प्रसाद बिहार में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से रहे स्वर्गीय ठाकुर प्रसाद के पुत्र हैं । स्व. प्रसाद वर्ष 1977 में कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में सदस्य भी थे । श्री प्रसाद की राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता से हुई । देश में आपातकाल के समय वह जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में बिहार में एक छात्र नेता के रूप में आन्दोलन में हिस्सा लिया और जेल भी गए । अखिल भारतीय विद्याथी परिषद् के साथ कई वर्षों तक जुड़े रहे श्री प्रसाद उस समय पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव चुने गए थे जब श्री लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष और श्री सुशील कुमार मोदी महासचिव थे ।

वर्ष 2000 में राज्यसभा के सदस्य चुने जाने के बाद वर्ष 2001 में केन्द्रीय कोयला एवं खनन राज्य मंत्री बनाए गए और 2002 में विधि एवं न्याय राज्य मंत्री का अतिरिक्त प्रभार दिया गया । इसके बाद उन्हें 2003 से 2004 तक सूचना और प्रसारण मन्त्रालय में राज्य मत्री का स्वतन्त्र प्रभार दिया गया। वर्ष 2014 में जब फिर से भाजपा की सरकार बनी तब उन्हें केंद्रीय मंत्री विधि एवं न्याय और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई ।

वहीं पटना साहिब से जीत की हैट्रिक लगाने उतरे श्री सिन्हा कांग्रेस की टिकट पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के उम्मीदवार हैं । दिलचस्प बात है कि हाल तक दोनों एक ही दल के सदस्य थे और दोनों एक ही जाति से भी आते हैं। आज दोनों एक दूसरे के खिलाफ हैं लेकिन दोनों ने ही शालीनता और भाषा की मर्यादा बनाए रखी है। दोनों दावा करते हैं कि वे विचारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है ।

श्री प्रसाद मोदी सरकार के कार्यों और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांग रहे हैं वही श्री सिन्हा नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी को मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता बता कर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों जिस जाति से आते हैं उसके मतदाताओं की संख्या इस संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक है और वे भाजपा के समर्थक माने जाते हैं । श्री सिन्हा यदि इसमें सेंध लगाने में कामयाब रहे तो उनकी जीत तय हो जायेगी ।

वैसे कांटे की टक्कर में यहां का मतदाता श्री सिन्हा के बहुचर्चित फिल्मी डायलॉग ‘खामोश’पर तालियां तो बजा रहा है लेकिन चुनाव परिणाम ही बतायेगा कि इस चुनावी जंग में श्री सिन्हा अपने विरोधियों को खामोश करते हैं या जनता उन्हें खामोश करती है।

वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में पटना सीट पटना साहिब हो गयी। उस वर्ष छोटे पर्दे के अमिताभ कहे जाने वाले अभिनेता शेखर सुमन कांग्रेस की टिकट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। वहीं, भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा चुनावी मैदान में थे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी इस सीट पर विजय कुमार को उम्मीदवार बनाया था। श्री सिन्हा ने इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के विजय कुमार को 166770 मतों से हराया। श्री सिन्हा को 316549 जबकि विजय कुमार को 149779 मत मिले। कांग्रेस प्रत्याशी शेखर सुमन को महज 61308 मत मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे।

इसी तरह 16 वें लोकसभा चुनाव (2014) में कांग्रेस की टिकट पर भोजपुरी सिनेमा के महानायक कुणाल सिंह चुनावी समर में उतरे। वहीं, भाजपा ने एक बार फिर श्री सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया। शत्रुघ्न सिन्हा को रिकॉर्ड 485905 वोट मिले। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को 265805 मतो के अंतर से मात दी। श्री सिंह को 220100 मत मिले। जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के गोपाल प्रसाद सिन्हा तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 91024 वोट हासिल हुये।

पटनासाहिब संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें बख्तियारपुर ,दीघा, बाँकीपुर ,कुम्हरार ,पटना साहिब और फतुहा शामिल है। पिछला विधानसभा चुनाव जदयू ,भाजपा से से अलग होकर लड़ी थी और उसे किसी क्षेत्र में सफलता नहीं मिली थी। बख्तिारपुर से रणविजय सिंह (भाजपा) ,दीघा से संजीव चौरसिया (भाजपा) ,बांकीपुर से नितीन नवीन (भाजपा),कुम्हरार से अरूण कुमार सिन्हा (भाजपा) ,पटनासाहिब से नंद किशोर यादव (भाजपा) और फतुहां से रामानंद यादव (राजद) के विधायक हैं।

सतरहवें लोकसभा चुनाव (2019) में पटनासाहिब संसदीय सीट से भाजपा, कांग्रेस ,आठ निर्दलीय समेत 18 उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 21 लाख 37 हजार मतदाता हैं। इनमें करीब 11 लाख 28 हजार पुरूष और 10 लाख 09 हजार महिला शामिल हैं जो सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को होने वाले मतदान में प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।

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