फैजाबाद 3 दिसम्बर। अयोध्या में 25 साल पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान तनाव के बीच जब पत्रकारों का जमघट वहां जुटा, तब कर्फ्यू प्रभावित शहर का एक होटल उनके रहने का ठिकाना बना था।
इस होटल के मालिक अनंत कुमार कपूर ने उनके लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं कीं और अपनी सफेद रंग की एंबेसेडर कार से खाने-पीने की एवं दूसरी जरूरी चीजें जुटायीं।
इकहत्तर साल के कपूर फैजाबाद जिले के होटल ‘शान-ए-अवध’ के निदेशकों में से एक हैं।
अयोध्या इसी जिले में आता है. कपूर का होटल 1986 में बना था और अयोध्या नगर निगम के कार्यालय के ठीक पीछे है।
वहां राम मंदिर आंदोलन को कवर करने के लिए अयोध्या में जमा हुए देश-विदेश के पत्रकार रुके थे और 46 साल (तब) के कपूर ने होटल का पूरा कामकाज संभाला था।
कपूर ने दिसंबर 1992 के उन दिनों को याद करते हुए कहा-‘‘होटल में भारत और विदेशों के 100 से ज्यादा पत्रकार रुके थे. पूरा होटल पत्रकारों से भरा हुआ था. हमें कमरों में अतिरिक्त चारपाइयां डालनी पड़ी थीं ताकि उनकी व्यवस्था हो सके, जिन्हें कोई कमरा नहीं मिला.
छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में जमा हुए कार सेवकों ने 16वीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद ढहा दी थी, जिससे पूरे देश में हंगामा शुरू हो गया था. विध्वंस के बाद दंगे हुए और अयोध्या में कर्फ्यू लगाना पड़ा.
उन्होंने बताया, ‘‘जिला प्रशासन ने कर्फ्यू लगाने का आदेश जारी किया था और सफेद रंग की एंबेसडर कार सच में मेरे लिए वरदान साबित हुई. कार से मुझे होटल में रुके लोगों के लिए खाने-पीने की चीजें और दूसरी जरूरी चीजें जमा करने में मदद मिली. मुझे सामान लेने के लिए फैजाबाद के बाहरी इलाके में जाना पड़ा.’’ कपूर ने कहा कि चूंकि कर्फ्यू पूरे फैजाबाद में लगा था, इस वजह से सभी टेलीफोन बूथ भी बंद पड़े थे.
उन्होंने कहा, ‘‘यहां (होटल में) रुके अधिकतर पत्रकार होटल की एसटीडी सुविधा का इस्तेमाल कर अपने संपादकीय सहकर्मियों को खबरें लिखाते थे. वे सभी जरूरी सूचना देने के लिए करीब एक से डेढ़ घंटे बात करते थे.’’
कपूर ने बताया कि होटल की सीढ़ियां कुछ फोटोग्राफर के लिए डार्क रूम बन गयी थी जहां वे तस्वीरें तैयार करते और फिर डाकघर जाकर उस दिन की तस्वीरें फैक्स से भेजते.
कपूर ने कहा कि उन्होंने बाबरी मस्जिद ढहाने से एक दिन पहले यानि पांच दिसंबर, 1992 को आखिरी बार उसे देखा था.
1992 में ‘नवजीवन’ और ‘कौमी आवाज’ अखबारों के लिए विशेष संवाददाता के तौर पर काम कर रहे कृपाशंकर पांडे (68) ने बताया, ‘‘मैं विवादित ढांचे को ढहाए जाने से करीब 10 मिनट पहले उसके अंदर था और जब उसे गिराया जा रहा था, तब उससे करीब 50 मीटर की दूरी पर था.’’
उन्होंने उस समय को याद करते हुए बताया, ‘‘तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट रवींद्र श्रीवास्तव ने मुझसे कहा, ‘पांडेजी यहां से हट जाइए’ .’’
पांडे ने कहा, ‘‘मैं वहां सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक था. विवादित ढांचा दोपहर 12 बजे से एक बजे के बीच गिराया गया. मैं यह देखकर हैरान था कि लोग मलबे के पत्थर लेने के लिए इतने उत्साहित थे जैसे कि वह सोना हो.’’
पांडे फैजाबाद-अयोध्या रोड पर स्थित अपने कार्यालय से काम कर रहे थे. उन्होंने कहा कि घटना को कवर करने आए पत्रकार उनके कार्यालय की टेलीफोन लाइन का इस्तेमाल कर रहे थे.attacknews.in