नयी दिल्ली, 27 दिसम्बर । सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि देश की सशस्त्र सेनाएं धर्मनिरपेक्ष हैं और मानवाधिकारों का पूरी तरह सम्मान करती हैं।
सेना प्रमुख जनरल रावत ने कहा कि सशस्त्र बल मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते है और उन्होंने न केवल देश के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा की है बल्कि अपने दुश्मनों के अधिकारों की रक्षा भी की है।
वह यहां मानवाधिकार भवन में “युद्धकाल और युद्धबंदियों के मानवाधिकारों का संरक्षण” विषय पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के प्रशिक्षुओं और वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।
एक बयान में जनरल रावत के हवाले से बताया गया, “भारतीय सशस्त्र बल बेहद अनुशासित हैं और वे मानवाधिकार कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते हैं। भारतीय सशस्त्र बल न केवल अपने लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करते हैं, बल्कि युद्धबंदियों के साथ भी जिनेवा संधि के अनुसार व्यवहार करते हैं।”
उन्होंने कहा कि भारतीय सेनाओं का व्यवहार इंसानियत और शराफत के मूलमंत्र पर आधारित है। वे पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष हैं। प्रौद्योगिकी के उदय के साथ युद्ध के बदलते तौर तरीके बड़ी चुनौती हैं। सैन्य हमलों के विपरीत आतंकवादी हमलों के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानून में किसी तरह की जवाबदेही नहीं है। इसलिए आतंकवाद रोधी और उग्रवाद रोधी अभियानों से निपटते समय लोगों का दिल जीतना जरूरी है। इन अभियानों को अंजाम देते समय वास्तविक आतंकवादियों का पता लगाना जरूरी है और यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे आस पास की संपत्ति या अन्य लोगों को नुकसान नहीं पहुंचे। यह बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन काम है।
सेना प्रमुख ने कहा कि सैन्य मुख्यालयों में मानवाधिकार शाखा बनायी गयी थी जिनका दायरा बढाते हुए अब इन्हें निदेशालय के स्तर तक ले जाया गया है और अतिरिक्त महानिदेशक को इनका प्रमुख बनाया गया है। इनमें सैन्यकर्मियों के खिलाफ मानवाधिकार शिकायतों के समाधान के लिए साथ में पुलिसकर्मी भी रहते हैं।
उन्होंने कहा कि तलाशी अभियानों के दौरान विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सेना ने अब सेना पुलिस में महिलाओं की भर्ती भी शुरू कर दी है।
जनरल रावत ने कहा कि हर आतंकवाद या उग्रवाद रोधी अभियान के बाद कोर्ट आफ इन्कवायरी की जाती है जिसमें उससे संबंधित सभी घटनाओं का ब्योरा रखा जाता है।
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम का जिक्र करते हुए सेेना प्रमुख ने कहा कि इसमें सेना को भी तलाशी और पूछताछ के मामले में पुलिस की तरह अधिकार मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सेना ने खुद ही इसके इस्तेमाल में कुछ ढील दी है और इसके लिए सेना प्रमुख की ओर से विशेष आदेश दिये जाते हैं जिनका सख्ती से पालन जरूरी है। सेना इस बारे में उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों का भी सख्ती से पालन करती है। आतंकवाद रोधी अभियानों से पहले जवानों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
इससे पहले मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति पी सी पंत ने भी मानवाधिकारों से संबंधित कानूनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कर्तव्य की वेदी पर सशस्त्र सेनाओं को अपने कुछ मौलिक अधिकारों को भी तिलांजलि देनी पड़ती है।
इस मौके पर मानवाधिकार आयोग के महासचिव जयदीप गोविंद , आयोग के सदस्य डी एम मलय, महानिदेशक (जांच) प्रभात सिंह, संयुक्त सचिव अनिता सिन्हा और कई वरिष्ठ अधिकारी तथा कर्मचारी भी मौजूद थे।