नयी दिल्ली 22 सितम्बर । फ्रांस सरकार के बाद अब राफेल विमान बनाने वाली कंपनी डसाल्ट एविएशन ने भी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद के बयान पर सफाई देते हुये कहा है कि राफेल विमान सौदे में ऑफसेट समझौते के तहत खुद उसने ही अनिल अंबानी नीत रिलायंस समूह की कंपनी को साझेदार बनाया था।
डसाल्ट की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है, “यह ऑफसेट समझौता रक्षा खरीद प्रक्रिया, 2016 के नियमों के तहत किया गया है। इसके तहत और मेक इन इंडिया नीति के अनुरूप डसाल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस समूह के साथ साझेदारी का निर्णय लिया था। यह डसाल्ट एविएशन की पसंद है और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक ट्रेपियर ने गत अप्रैल में एक साक्षात्कार में यह स्पष्ट भी किया था।”
वक्तव्य में आगे कहा गया है कि इस साझेदारी के परिणामस्वरूप फरवरी 2017 में एक संयुक्त उपक्रम डसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड बनी। डसाल्ट एविएशन और रिलायंस ने फाल्कन और राफेल विमानों के कलपूर्जे बनाने के लिए नागपुर में एक सयंत्र बनाया है।
यह वक्तव्य भारत में फ्रांस के राजदूत एलेक्जेन्डर जिग्लेर ने ट्विटर पर पोस्ट किया है। नागपुर को इसलिए चुना गया है क्योंकि यहां हवाई अड्डे के निकट जमीन उपलब्ध है जो सीधे एयरपोर्ट रनवे से जुड सकती है। वैमानिकी गतिविधियों के लिए यह शर्त जरूरी है।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान से भारतीय राजनीतिक हलकों में मचे बवाल के बाद फ्रांसीसी सरकार ने भी एक वक्तव्य जारी कर कहा था कि फ्रांसीसी कंपनियों को अपना भारतीय भागीदार चुनने की पूरी स्वतंत्रता है।
पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने कहा था कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को डसाल्ट एविएशन का साझीदार बनाने का प्रस्ताव भारत सरकार ने किया था और फ्रांस के पास इसे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
डसाल्ट एविएशन ने यह भी कहा है कि उसने भारत की कुछ अन्य कंपनियों के साथ भी समझौते किये हैं।
रक्षा मंत्रालय ने कहा:सरकार की कोई भूमिका नहीं है:
राफेल विमान सौदे के बारे में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद के बयान के बाद ऑफसेट समझौते पर एक बार फिर सफाई देते हुए सरकार ने कहा है कि इसमें उसकी कोई भूमिका नहीं है और इस मामले में बेवजह विवाद खड़ा किया जा रहा है।
श्री ओलांद के शुक्रवार को फ्रांसीसी मीडिया में आये साक्षात्कार में कहा गया है कि राफेल सौदे के ऑफसेट समझौते में रिलायंस डिफेंस इन्डस्ट्रीज को साझेदार बनाने का प्रस्ताव भारत का था और विमान निर्माता कंपनी डसॉल्ट एविएशन के पास रिलायंस के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि ऑफसेट समझौते में उसने किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया है और श्री ओलांद के बयान से संबंधित रिपोर्ट की सच्चाई का पता लगाया जा रहा है।
काग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा शनिवार को इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर करारा निशाना साधे जाने के बाद रक्षा मंत्रालय ने एक बार फिर दोहराया कि आॅफसेट समझौते में भारतीय साझेदार चुनने में सरकार की कोई भूमिका नहीं रही और यह विमान निर्माता फ्रांसीसी कंपनी का ही निर्णय है।
मंत्रालय ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि रिलायंस डिफेंस और डसाल्ट एविएशन के बीच संयुक्त उपक्रम गत वर्ष फरवरी में अस्तित्व में आया। यह दो निजी कंपनियों के बीच वाणिज्यिक व्यवस्था होती है। संयोग से फरवरी 2012 में आई मीडिया रिपोर्ट इस बात का संकेेत देती हैं कि संयुक्त प्रगितशील गठबंधन सरकार के समय 126 बहुउद्देशीय विमानों की खरीद की प्रतिस्पर्धा में जैसे ही राफेल सबसे कम कीमत वाला विमान चुना गया उसके दो सप्ताह के भीतर ही डसाल्ट एविएशन ने रिलायंस इन्डस्ट्रीज के साथ रक्षा क्षेत्र में साझेदारी की थी।
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि श्री ओलांद के बयान को लेकर बेवजह का विवाद खड़ा किया जा रहा है। इस बयान को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत है , फ्रांसीसी मीडिया ने पूर्व राष्ट्रपति से संबंधित लोगों के हिताें के टकराव का मुद्दा भी उठाया है। उसके बाद आये वक्तव्य भी इस संबंध में प्रासंगिक हैं। सरकार पहले भी कह चुकी है और दोहरा रही है कि रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट साझेदार चुने जाने में उसकी कोई भूमिका नहीं है।attacknews.in