वाशिंगटन/काबुल, 19 अगस्त । अफगानिस्तान ने कश्मीर को उसके यहां अमेरिका की अगुवाई में चल रही शांति प्रक्रिया से जोड़ने की पाकिस्तान की कोशिश को ‘धृष्ट, अवांछित और गैर जिम्मेदाराना’ करार दिया।
साथ ही अफगानिस्तान ने अपने यहां लंबे समय तक हिंसा फैलाने के इस्लामाबाद के ‘नापाक इरादे’ की भी आलोचना की।
अफगानिस्तान ने कश्मीर मामले पर एक बार फिर पाकिस्तान की खिंचायी करते हुए इसे भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा करार दिया है।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत असद माजीद खान के कश्मीर मुद्दे के कारण अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया प्रभावित होने संबंधी बात कहे जाने के एक दिन बाद सोमवार को अफगानिस्तान सरकार ने उनके (श्री खान) के बयान को दुस्साहसी , बेबुनियाद और गैर जिम्मेदार करार दिया।
अफगानिस्तान सरकार ने अपने बयान में कहा है कि कश्मीर मसला भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है। हमारा मानना है कि पाकिस्तान का उदेश्य जानबूझकर अफगानिस्तान को कश्मीर मुद्दे से जोड़ना और अफगानिस्तान की सरजमीं पर हो रही हिंसा को लंबा खींचने का प्रयास है।
बयान में कहा गया, “अफगानिस्तान की स्थिरता को पाकिस्तान आधारित, उसके द्वारा पोषित और सहायता प्राप्त आतंकवादियों तथा आतंकवादी समूहों से लगातार खतरा रहा है। ये आतंकवादी समूह पाकिस्तान के सरकारी जमीन से संचालित हो रहे हैं और लगातार अफगानिस्तान की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी राजदूत ने कश्मीर मुद्दे पर बोलते हुए कहा था कि इससे अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत असद माजिद खान ने पिछले हफ्ते न्यूयार्क टाईम्स से कहा था कि ताजा भारत-पाक तनाव के बीच उनका देश अफगानिस्तान से लगती सीमा से लेकर कश्मीर तक सैनिकों की फिर से तैनाती कर सकता है।
अखबार की खबर है कि इससे अमेरिका और तालिबान के बीच चल रही शांति वार्ता उलझ सकती है।
खान का बयान ऐसे वक्त में आया है जब भारत द्वारा अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म कर दिये जाने के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनाव बढ़ गया है। भारत के इस फैसले पर पाकिस्तान ने उसके साथ राजनयिक संबंध घटाते हुए अपने यहां से भारत के उच्चायुक्त को वापस भेज दिया।
पाकिस्तान के राजदूत के बयान को ‘गुमराह करने वाला बयान’ करार देते हुए अमेरिका में अफगानिस्तान की राजदूत रोया रहमानी ने कहा, ‘‘ अफगान शांति प्रयास को कश्मीर की उभरती स्थिति से जोड़ने वाले ऐसे कोई भी बयान घृष्ट, अवांछित एवं गैर जिम्मेदाराना हैं।’’
रविवार को वाशिंगटन स्थित अफगान दूतावास से जारी बयान में रहमानी ने कहा, ‘‘ अफगानिस्तान अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत असद माजिद खान के इस बयान पर दृढ़ता से प्रश्न खड़ा करता है कि कश्मीर के वर्तमान तनाव से अफगानिस्तान की शांति प्रकिया प्रभावित हो सकती है।’’
कश्मीर को भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला बताते हुए रहमानी ने कहा कि उनके देश का मानना है कि कश्मीर मुद्दे से अफगानिस्तान को जानबूझकर जोड़ने का पाकिस्तान का मकसद अफगान धरती पर जारी हिंसा को और बढ़ाना है।
उन्होंने कहा, ‘‘ पाकिस्तान को अफगानिस्तान की ओर से कोई खतरा नहीं है। अफगान सरकार को पाकिस्तान द्वारा अपनी पश्चिमी सीमा पर हजारों सैनिकों को तैनात करने का कोई विश्वसनीय कारण नजर नहीं आता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ उल्टा, अफगानिस्तान का स्थायित्व पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के कारण अक्सर खतरे में पड़ जाता है।’’
रहमानी ने कहा कि उनके पाकिस्तानी समकक्ष का बयान उन सकारात्मक और रचनात्मक मुलाकात के ठीक विपरीत है जो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की हालिया यात्रा के दौरान उनके, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तथा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच हुई थी।
काबुल में अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने वहां जारी एक बयान में कहा कि कश्मीर की स्थिति को अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया से जोड़ने की पाकिस्तान की कोशिश अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के संबंध में उसके नापाक मंसूबे को दर्शाती है।
तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच शांति- समझौता वार्ता अच्छी चल रही है: ट्रम्प
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए तालिबान के साथ शांति समझौते पर बातचीत में प्रगति की सराहना की और कहा कि तालिबान और अफगान सरकार दोनों के साथ वार्ता अच्छी चल रही है।
ट्रंप ने न्यूजर्सी में रविवार को संवाददाताओं से कहा,‘‘ तालिबान के साथ हमारी अच्छी बातचीत जारी है। अफगानिस्तान सरकार के साथ भी बातचीत अच्छी चल रही है।’’ अमेरिका को तालिबान के साथ शांति समझौते की उम्मीद है, जिसके बाद वह अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाना शुरू कर देगा।
अमेरिका, अफगानिस्तान में अपना दखल बंद करना चाहता है,जहां वह अभी तक एक खरब डॉलर खर्च कर चुका है। ट्रंप राष्ट्रपति पद पर अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और तालिबान के बीच किसी समझौते मात्र से अफगानिस्तान में शांति नहीं आएगी बल्कि तालिबान को अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान की सरकार से साथ भी बातचीत कर कोई सहमति बनानी होगी।
पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बनाना मूर्खता होगी: विशेषज्ञ
जम्मू कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव तथा अफगान शांति वार्ता के बीच अमेरिका की विदेश नीति मामलों के एक विशेषज्ञ ने पाकिस्तान के प्रति किसी भी प्रकार के रणनीतिक झुकाव और भारत से दूरी के प्रति ट्रंप प्रशासन को आगाह किया है।
विदेश संबंधों की परिषद के अध्यक्ष रिचर्ड एन हास ने पिछले सप्ताह एक लेख लिखा है। जिसमें वह कहते हैं,‘‘पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बनाना अमेरिका के लिए नासमझी भरा कदम होगा।’’
हास लिखते हैं कि पाकिस्तान काबुल में एक मित्रवत सरकार देख रही है जो उसकी सुरक्षा के लिए अहम है और उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारत को टक्कर दे सके। हास का यह लेख पहले प्रोजेक्ट सिंडिकेट में प्रकाशित हुआ और इसके बाद यह सीएफआर की वेबसाइस पर भी जारी हुआ।
हास ने कहा, ‘‘इसपर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि सेना और खुफिया एजेंसी, जो पाकिस्तान को अभी भी चला रही है, तालिबान पर लगाम लगाएगी या आतंकवाद को नियंत्रित करेगी।’’
उन्होंने लिखा, ‘‘उसी तरह से, भारत से दूरी बनाना अमेरिका की नासमझी होगी। हां, भारत में संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की परंपरा रही है और अक्सर रणनीतिक मुद्दों पर पूरी तरह से सहयोग करने की अनिच्छा अमेरिकी नीति निर्माताओं को निराश करती है।’’
उन्होंने लिखा, लेकिन लोकतांत्रिक भारत, जो जल्द ही चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, पर दांव लगाना एक दीर्घकालिक लाभ होगा।
उनक कहना है, ‘‘यह चीन से सामना करने में मदद के तौर पर भारत एक स्वाभाविक साझेदार है। भारत ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भागीदारी से इनकार कर दिया, जबकि आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने इसे गले लगा लिया।
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