विपक्षी दलों का प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए नीतीश कुमार कभी भी बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर महागठबंधन की सरकार बना लेंगे;अस्पताल के वार्ड में लिखी गई उठापटक की पटकथा!attacknews.in

जेडीयू-बीजेपी में तनातनी के बीच बिहार के CM नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से संपर्क किया

पटना/नईदिल्ली 8 अगस्त।बहुत ही बड़ी रणनीति के तहत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष का प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वमान्य चेहरा बनने के लिए सोनिया गांधी और लालू प्रसाद यादव को साधकर एनडीए से अलग होने की तैयारी कर ली हैं और कभी भी बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाकर विपक्षी दलों का नेतृत्व कर सकते हैं ।

दिन बुधवार और तारीख थी छह जुलाई। यही कोई सुबह 11:00 बजे का वक्त था। पटना के पारस अस्पताल के बाहर अचानक सुरक्षा इंतजाम चाक-चौबंद होने लगे। पुलिस प्रशासन से लेकर सुरक्षा एजेंसियों का पूरा अमला चंद मिनट में अस्पताल को अपने घेरे में ले चुका था।

इतनी सतर्कता के बीच अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पारस अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर बने वीवीआइपी वार्ड में लालू यादव से मिलने पहुंचते हैं।

वार्ड में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा जाता है कि क्या लालू यादव को सरकारी खर्चे पर दिल्ली भेजा जाएगा। सवाल सुनते ही नीतीश कुमार ने कहा…यह कोई पूछने वाली बात है। लालू जी को तो सिंगापुर लेकर जाना था इलाज के लिए। फिलहाल दिल्ली एम्स में उनकी सभी जाचें होंगी और इलाज होगा। उसके बाद डॉक्टर तय करेंगे कि आगे क्या किया जाना है।

इसके बाद बिहार में सियासी अटकलों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बात करने का दावा किया जा रहा है. बताया गया है कि दोनों नेताओं के बीच मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा हुई।

बताया जा रहा है कि आने वाले 48 घंटे बिहार में गठबंधन राजनीति के लिए बेहद अहम हैं. जेडीयू एक बार फिर महा गठबंधन के साथ फिर से सरकार बना सकता है. बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने विधायक दल की बैठक बुलाई है।

सूत्रों के मुताबिक, सांसदों और विधायकों की बैठक में अहम फैसला हो सकता है. 2017 में महागठबंधन से अलग होकर जेडीयू एनडीए में शामिल हुई थी. 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद महागठबंधन बना था, तब उसके साथ जदयू भी थी.

कांग्रेस प्रभारी पटना रवाना

इस बीच बिहार कांग्रेस प्रभारी पटना रवाना हो गए हैं. आरसीपी सिंह के इस्तीफे के बाद जेडीयू ने पार्टी सांसदों की बैठक बुलाई है, जिसके बाद सूबे की राजनीति में अटकलों का दौर तेज हो गया है. पार्टी ने सभी सांसदों को सोमवार शाम तक पटना आने को कहा है. इस बैठक में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह भी मौजूद रहेंगे.

कई पार्टियों ने बुलाई बैठक

इसके अलावा मंगलवार को कांग्रेस ने भी विधायक दल की बैठक बुलाई है. जबकि आरजेडी ने भी अपने विधायकों से पटना में रहने को कहा है. इन सारे घटनाक्रमों से अटकलें लगाई जा रही हैं कि बिहार की राजनीति जल्द ही करवट लेने वाली है.

हालांकि जेडीयू यह भी कह रही है कि वह नरेंद्र मोदी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनेगी लेकिन दोनों पार्टियां साथ हैं. मगर राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए अटकलें तेज हो गई हैं कि दोनों पार्टियों के बीच सब ठीक नहीं है.

पिछले महीने सीएम नीतीश कुमार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं आए थे. कल 7 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली नीति आयोग की बैठक से भी सीएम नीतीश कुमार नदारद रहे.

भाजपा-जद यू की दोस्ती टूटने की नौबत…

बिहार में चल रही भाजपा-जद यू की दोस्ती टूटने की नौबत किनारे पर है। बिहार में तेज हुई सियासी हलचल के बीच बड़े फेरबदल की भी संभावनाएं जताई जा रही हैं। साथ ही जेडीयू और भाजपा की राहें भी अलग होने के आसार हैं।

शनिवार को ही पूर्व केंद्रीय मंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच जदयू से इस्तीफा दे दिया था। बिहार में आरसीपी सिंह और कुमार के बीच बीते कुछ समय से मतभेद की खबरें हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, बीते साल केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में सिंह बगैर कुमार की सहमति के केंद्रीय मंत्री बन गए थे।जारी सियासी उथल-पुथल के बीच आज राज्य के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने का वक्त मांगा है. बीते कुछ दिनों की सियासी घटनाओं के कारण शुरू हुए प्रतिक्रियाओं के दौर के बीच उपमुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री से मिलने का वक्त मांगा है. मुलाकात के दौरान राज्य की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा होने की संभावना है. इधर, कांग्रेस ने भी अपने विधायकों की एक बैठक पटना में बुलाई है.

गौरतलब है कि इन दिनों बीजेपी और जेडीयू के बीच खूब खींचतान हो रही है. लेकिन दोनों पार्टियां इस बात को स्वीकार नहीं कर रहीं हैं. जेडीयू ने अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी बीजेपी के साथ अनबन की अटकलों को खारिज करते हुए उसके साथ सब कुछ ठीक होने का दावा किया है, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह फिर से केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं होगी.

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन ने रविवार को पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अनुपस्थिति के बारे में सवालों को खारिज करते हुए कहा, ”आपको मुख्यमंत्री से इस बारे में पूछना चाहिए.

नीति आयोग की बैठक में नीतीश की अनुपस्थिति को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई स्पष्टीकरण अब तक नहीं आया है पर मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमण के बाद की अपनी शारीरिक कमजोरी का हवाला देते हुए नीतीश ने उक्त बैठक में शामिल होने पर असमर्थता जताई. हालांकि, इस वजह से कयासों का गौर निकल पड़ा है.

उधर विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपने विधायकों को अगले कुछ दिनों के लिए पटना में रहने का आदेश दिया है, जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्य में एक और महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम होने वाला है.

ललन ने बीजेपी के साथ सबकुछ ठीक होने का दावा करते हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में जेडीयू के समर्थन का हवाला दिया. उन्होंने कहा, ”हमारे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने व्हीलचेयर पर मतदान केंद्र पहुंचकर मतदान किया जेडीयू अध्यक्ष ने कहा, ”बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का इससे मजबूत प्रदर्शन नहीं हो सकता.

अश्विनी चौबे ने कहा की बिहार में कोई संकट नही है;

अश्विनी चौबे केंद्रीय मंत्री,ने बिहार के राजनीतिक हालात पर कहा की कोई संकट नही है,गठबंधन है और रहेगा,अफवाहों का बाजार गर्म है,नीतीश दिल्ली नही आए कुछ कारण हो सकते है लेकिन गठबंधन बरकरार रहेगा।

नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी को मिलाया फोन?

इधर नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से तकरार की खबरों के बीच विधायकों और सांसदों की बैठक बुलाई ।

उन्होंने रविवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी बात की। खास बात है कि जनता दल यूनाइटेड के नेता पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में शामिल होने के बात से इनकार कर चुके हैं।

कांग्रेस हो रही सक्रिय!-

रविवार को दिल्ली में पीएम मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की बैठक हुई थी, जिसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी समेत कई बड़े नाम शामिल हुए थे। खास बात है कि इस मीटिंग से कुमार गायब रहे थे। जबकि, खबरें हैं कि वह प्रदेश की राजधानी पटना में आयोजित दो कार्यक्रमों में शामिल हुए थे।विधायक दल की बैठक बुलाई है।

बिहार विधानसभा में दलीय स्थिति :

कुल सदस्य 243
भाजपा 77
जदयू 45
हम 4
निर्दलीय 1
कुल 127
महागठबंधन
राजद 80
कांग्रेस 19
भाकपा माले 12
भाकपा 2
माकपा 2
एआईएमआईएम 01
-कुल 115

अस्पतालों के वार्डों में लिखी गई राजनीतिक उठापटक की पटकथा!

दिन बुधवार और तारीख थी छह जुलाई। यही कोई सुबह 11:00 बजे का वक्त था। पटना के पारस अस्पताल के बाहर अचानक सुरक्षा इंतजाम चाक-चौबंद होने लगे। पुलिस प्रशासन से लेकर सुरक्षा एजेंसियों का पूरा अमला चंद मिनट में अस्पताल को अपने घेरे में ले चुका था।

इतनी सतर्कता के बीच अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पारस अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर बने वीवीआइपी वार्ड में लालू यादव से मिलने पहुंचते हैं।

वार्ड में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा जाता है कि क्या लालू यादव को सरकारी खर्चे पर दिल्ली भेजा जाएगा। सवाल सुनते ही नीतीश कुमार ने कहा…यह कोई पूछने वाली बात है। लालू जी को तो सिंगापुर लेकर जाना था इलाज के लिए। फिलहाल दिल्ली एम्स में उनकी सभी जाचें होंगी और इलाज होगा। उसके बाद डॉक्टर तय करेंगे कि आगे क्या किया जाना है।
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लोकसभा चुनाव के पहले ही बिखर गया विपक्ष;राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव से विपक्ष में उभरा मतभेद, कांग्रेस-टीएमसी में घमासान तेज attacknews.in

नयी दिल्ली 8 अगस्त । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है लेकिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच जुबानी जंग शुरू होने के साथ विपक्षी दलों में कड़वाहट बढ़ती दिख रही है।

इन चुनावों में विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की हार अपेक्षित थी, लेकिन कई लोगों को तब हैरानी हुई जब विपक्ष के बीच राजनीतिक मतभेद उजागर हो गया। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों मुख्य विपक्षी दलों के वाकयुद्ध में उतरने और टीएमसी के उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी बनाने के फैसले से 2024 के आम चुनाव की लिए तैयारी कर रहे विपक्ष के मनोबल पर असर पड़ा है और उनकी राजनीतिक संभावना को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है।

कांग्रेस और टीएमसी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का साझा उम्मीदवार तय करने के लिए श्रेय लेने की होड़ में थी लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान दोनों के मतभेद उजागर हो गए।

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्गरेट आल्वा को विपक्ष ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के जगदीप धनखड़ के खिलाफ उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में उतारा, लेकिन ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी ने घोषणा की कि पार्टी चुनाव से दूर रहेगी क्योंकि उम्मीदवार पर फैसला करने से पहले कोई उचित परामर्श नहीं हुआ।

आल्वा की पहली प्रतिक्रिया कठोर थी , जिसमें उन्होंने कहा कि यह अहंकार या क्रोध का समय नहीं है, बल्कि साहस, नेतृत्व और एकजुटता का समय है। हालांकि, उन्हें उम्मीद थी कि बनर्जी साथ देंगी और उनका समर्थन करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हार के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सार्वजनिक टिप्पणी में टीएमसी को लेकर नाराजगी प्रकट की। रमेश ने ट्वीट कर कहा कि मार्गरेट आल्वा ने एक उत्साही अभियान चलाया और यह बहुत बुरा है कि टीएमसी ने उनका समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी पहली महिला उपराष्ट्रपति के लिए इंतजार करना होगा।

आल्वा ने चुनाव में उनका समर्थन नहीं करने को लेकर तृणमूल कांग्रेस पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन करके, कुछ दलों और उनके नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।

आल्वा ने कहा कि यह चुनाव विपक्ष के लिए साथ मिलकर काम करने, अतीत को भुलाने और विश्वास बहाल करने का अवसर था।

आल्वा ने कहा, ‘‘चुनाव संपन्न हो गया। हमारे संविधान की रक्षा करने, लोकतंत्र को मजबूत बनाने और संसद की गरिमा बहाल करने के लिए संघर्ष जारी रहेगा।’’

वहीं, टीएमसी नेता साकेत गोखले ने एक टीवी चैनल पर कहा कि कांग्रेस टीएमसी की सहयोगी नहीं है और वे समान विचारधारा वाली पार्टियां थीं।

उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद कहा, ‘‘कांग्रेस ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पश्चिम बंगाल में टीएमसी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिस तरह से विपक्षी उम्मीदवार का फैसला किया गया था, उसके कारण हमने दूर रहने का फैसला किया।’’

टीएमसी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने रविवार को धनखड़ को उनकी जीत पर बधाई दी और कहा, ‘‘आशा और कामना है तथा आग्रह है कि आप उन सभी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे, जिन्होंने आपको वोट दिया और समर्थन किया और जो अनुपस्थित रहे या मतदान या समर्थन नहीं किया। जय हिंद!’’

विपक्षी दलों में मतभेद ही नहीं उजागर हुए बल्कि इन दलों को चुनावों में ‘क्रॉस वोटिंग’ का भी सामना करना पड़ा।

राष्ट्रपति चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने के बजाय राजग उम्मीदवार का साथ दिया।

असम, झारखंड और मध्य प्रदेश विधानसभाओं में बड़ी संख्या में विपक्षी दलों के विधायकों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया।

उपराष्ट्रपति चुनाव में, शिशिर अधिकारी और उनके बेटे दिब्येंदु अधिकारी ने अपनी पार्टी टीएमसी के मतदान से दूर रहने का फैसला करने के बावजूद मतदान किया।

राजग उम्मीदवार मुर्मू और धनखड़, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में आराम से जीत गए और विपक्ष को अपेक्षित संख्या से भी कम समर्थन मिला।

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि चुनावों के परिणाम पहले से ही स्पष्ट थे, लेकिन विपक्षी दलों के बीच एकजुटता की कमी ने सत्तारूढ़ राजग को चुनौती देने वाली पार्टियों के लिए 2024 की राह को और कठिन बना दिया है।

किदवई ने कहा, ‘‘विपक्षी दलों में दरार उजागर हो गई है। इसने विपक्ष के लिए 2024 को लेकर बहुत सारी समस्याएं पैदा कर दी हैं क्योंकि इसने दो प्रमुख विपक्षी दलों के बीच संवाद की कमी को उजागर किया है तथा दोनों दलों के बीच एक-दूसरे के नेताओं को अपने पाले में करने का दौर फिर से शुरू होने की खबर है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस स्थिति में पहुंचने के लिए दोनों दल जिम्मेदार हैं। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी उसकी सबसे बड़ी ताकत है और इसी तरह टीएमसी को यह समझने की जरूरत है कि कांग्रेस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी हुई है।’’

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए, राजनीतिक टिप्पणीकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर संजय के पांडे ने कहा कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में जो हुआ वह विपक्षी दलों के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों की आलोचना की सार्वजनिक टिप्पणियों ने कोई मदद नहीं की और असल में मतभेदों को बढ़ाया।

पांडे ने कहा ,उनकी एकजुटता से परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन 2024 के चुनावों के लिए एक संदेश जाता।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे पता चलता है कि उनमें से कोई भी एकता के बारे में चिंतित नहीं है, बल्कि केवल उन्हें अपने हित से मतलब है।’’
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