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1962 के तीसरे आम चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियों के असर के बाद भारत की राजनीति का चेहरा ही बदल गया जिससे दिग्गज नेता धराशायी हो गए थे attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 मार्च । लोकसभा के वर्ष 1962 में हुये तीसरे आम चुनाव में न केवल नवगठित क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया बल्कि इस दौरान राजनीतिक बदलाव का जो दौर शुरू हुआ उसमें कई दिग्गज नेता धराशायी हो गये।

इस चुनाव में समाजवादी विचारधारा वाली सोशलिस्ट पार्टी, पंजाब में अकाली दल और मद्रास में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके), मुस्लिम लीग, गणतंत्र परिषद आदि को चुनावी दावपेंच आजमाने का अवसर प्रदान किया और डीएमके जैसे कुछ दलों का उभार दिखायी दिया। बदलाव की बयार में कांग्रेस के बड़ेे नेताओं में शामिल ललित नारायण मिश्र, प्रख्यात मजदूर और कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे और समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया को भी चुनाव हरा दिया था।

कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त था जबकि अकाली दल, डीएमके, गणतंत्र परिषद, फारवर्ड ब्लाक, हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, पीजेंट एंड वर्कर पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी और राम राज्य पार्टी को मान्यता प्राप्त दल का दर्जा हासिल था। गैर मान्यता प्राप्त दलों में ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन, गोरख लीग, हरियाणा लोक समिति, नूतन महागुजरात परिषद, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट लेबर पार्टी तथा तमिल नेशनल पार्टी।

लोकसभा के इस चुनाव में 494 सीट के लिये कुल 1985 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था। कुल 21 करोड़ 63 लाख 61 हजार 569 मतदाताओं में से 55.42 प्रतिशत ने मतदान में हिस्सा लिया था। एक लोकसभा सीट पर औसतन चार से अधिक उम्मीदवार थे और राजस्थान की एक सीट पर सबसे अधिक 11 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।

कांग्रेस ने सर्वाधिक 488, भाकपा ने 137, जनसंघ ने 196, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 168, सोसलिस्ट पार्टी ने 107 और स्वतंत्र पार्टी ने 173 उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस के 361 उम्मीदवार निर्वाचित हुये थे और उसे 44.72 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था। भाकपा को 29 सीटें मिली थी और वह तीसरी बार लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। इस चुनाव में उसे 9.94 प्रतिशत वोट मिला था।

जनसंघ को पहली बार 14 सीटें, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 12 तथा स्वतंत्र पार्टी को 18 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल हुयी थी। अकाली दल के तीन आैर डीएमके के सात प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे थे। कुल 479 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने बलबूते पर चुनाव लड़ा था और इनमें से 20 निर्वाचित होने में कामयाब रहे थे। निर्दलीय उम्मीदवारों ने 11.05 प्रतिशत मत प्राप्त किया था । हिन्दू महासभा , फारवर्ड ब्लाक , गणतंत्र परिषद आदि को छिटपुट रूप से सफलता मिली थी।

इस चुनाव में कांग्रेस नेता जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, गुलजारी लाल नंदा, रेणुका राय, कम्युनिस्ट नेता इन्द्रजीत गुप्त, हिरेन्द्र नाथ मुखर्जी, ए. के. गोपालन, समाजवादी नेता किसन पटनायक, अकाली नेता बूटा सिंह और धन्ना सिंह निर्वाचित हुये थे। इस चुनाव का एक मजेदार तथ्य यह था कि उत्तर प्रदेश के फूलपुर क्षेत्र में नेहरु के खिलाफ समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया ने चुनाव लड़ा था। नेहरु को 118931 तथा सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े लोहिया को 54360 वोट मिला था। नेहरु उत्तर प्रदेश से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गये थे।

बिहार में बड़ी बात यह हुयी कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल ललित नारायण मिश्र सहरसा सीट पर सोसलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी भूपेन्द्र नाथ मंडल से चुनाव हार गये। श्री मिश्र को 81905 तथा श्री मंडल को 97038 वोट मिले थे। बाम्बे सिटी सेंट्रल साउथ सीट पर भाकपा के टिकट पर दूसरी बार चुनाव लड़े श्रीपाद अमृत डांगे को कांग्रेस प्रत्याशी विट्ठल बालकृष्ण गांधी ने पराजित कर दिया था। श्री गांधी एक लाख 36 हजार से अधिक मत लाने में सफल रहे जबकि श्री डांगे 97891 मत ही ला सके।

भाकपा के इन्द्रजीत गुप्त ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण पश्चिम सीट पर एक लाख 43 हजार से अधिक मत लाकर कांग्रेस के इस्माइल इब्राहिम को पराजित कर दिया। श्री इब्राहिम को एक लाख 32 हजार से अधिक मत मिले थे। इसी राज्य में भाकपा के हिरेन्द्रनाथ मुखर्जी कांग्रेस के बलाई चंद्र पाल को हरा दिया था। भाकपा उम्मीदवार ए के गोपालन केरल के कासेरगोड सीट पर 62.17 प्रतिशत वोट लाकर प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के के आर करंत को हराया था।

सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उड़ीसा के संबलपुर सीट से चुनाव लड़े किसन पटनायक ने कांग्रेस के विनोद बिहारी दास को तीन हजार से कुछ अधिक मतों के अंतर से पराजित कर दिया था। श्री पटनायक को 37009 और श्री दास को 34641 वोट मिले थे। कांग्रेस के गुलजारी लाल नंदा साबरकंठा सीट पर स्वतंत्र पार्टी के पी पटेल को लगभग 25 हजार मतों के अंतर से पराजित कर दिया था।

इस चुनाव में कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 34, असम में 09, बिहार में 39, गुजरात में 16, केरल में 06, मध्य प्रदेश में 24, मद्रास में 31, महाराष्ट्र में 41, मैसूर में 25, उड़िसा में 14, पंजाब में 14, राजस्थान में 14, उत्तर प्रदेश में 62, पश्चिम बंगाल में 22, दिल्ली में 05, हिमाचल प्रदेश में 04 और मणिपुर में एक सीट मिली थी।

भाकपा को आन्ध्र प्रदेश में 07, बिहार में एक, केरल में 06, मद्रास में 02, उत्तर प्रदेश में 02, पश्चिम बंगाल में 09 तथा त्रिपुरा में एक सीट मिली थी। जनसंघ को मध्य प्रदेश में 03, पंजाब में 03, राजस्थान में एक, और उत्तर प्रदेश में सात सीटें मिली थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को असम में दो, बिहार में दो, गुजरात में एक, मध्य प्रदेश में तीन, महाराष्ट्र में एक, उड़ीसा में एक और उत्तर प्रदेश में दो सीटें मिली थी। सोशलिस्ट पार्टी को बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में एक-एक सीट मिली थी। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक पांच निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे।

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