मुंबई, पांच अक्टूबर । बाजार के अनुमानों के विपरीत रिजर्व बैंक ने द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में शुक्रवार को अपनी नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखा। साथ ही उसने आगाह किया कि कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उछाल तथा वैश्विक स्तर पर वित्तीय हालात मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि की दृष्टि से बड़ा जोखिम है।
रिजर्व बैंक ने वालू वित्त वर्ष की चौथी द्वैमासिक नीतिगत बैठक में अपने ‘‘नीतिगत रुख’’ में बदलाव करते हुए उसे ‘‘तटस्थ ’’ की जगह ‘‘सधे अंदाज में सख्ती वाला’’ कर दिया है।
केंद्रीय बैंक ने मध्य अवधि में मुद्रास्फीति के लक्ष्य को हासिल करने की प्रतिबद्धता भी दोहरायी है।
अधिकांश विश्लेषक और बैंक मान रहे थे कि केंद्रीय बैंक अपनी रेपो दर कम से कम 0.25 प्रतिशत बढ़ाएगा। पिछले कुछ दिनों की गतिविधियां, विशेषकर रुपये की गिरावट से ऐसी अटकलें भी लगायी जा रही थीं कि रिजर्व बैंक रेपो को 0.50 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
बैठक के नतीजों की घोषणा के तुरंत बाद पहली बार रुपया डालर के मुकाबले गिर कर 74 के नीचे चला गया। इससे आयात और महंगा हो गया है तथा चालू खाता घाटा बढ़ने का जोखिम अधिक हो गया है।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिन की बैठक के बाद कहा गया, ‘‘समिति मजबूती से मुख्य या खुदरा मुद्रास्फीति के मध्यम अवधि लक्ष्य को चार प्रतिशत के दायरे में रखने की प्रतिबद्धता दोहराती है।’’
रिजर्व बैंक की रेपो दर फिलहाल 6.5 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर 6.25 प्रतिशत के पिछले स्तर पर बनी रहेगी।
आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने रिजर्व बैंक के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि मुद्रास्फीति के बारे में सरकार का आकलन और रिजर्व बैंक का आकलन एक जैसा है।
गर्ग ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि आर्थिक वृद्धि दर मौद्रिक नीति समिति के अनुमान से अधिक रहेगी।’’
समिति के पांच सदस्यों ने दर यथावत रखने के पक्ष मत दिया। सिर्फ चेतन घटे ने अकेले 0.25 प्रतिशत वृद्धि का पक्ष लिया।
समिति ने कहा कि मूल मुद्रास्फीति अनुमान से कम रही है क्योंकि खाद्य कीमतों में होने वाली मौसमी तेजी प्रभावी नहीं हुई है और खाद्य एवं ईंधन को छोड़ कर बाकी वर्गों में मुद्रास्फीति नरम हुई है।
समिति ने मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को अगस्त समीक्षा से कम करते हुए कहा कि सितंबर तिमाही के अंत तक मुख्य मुद्रास्फीति के बढ़कर 3.7 प्रतिशत, चालू वित्त वर्ष के अंत तक 3.8 से 4.5 प्रतिशत तक और अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक 4.8 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है।
समिति ने कहा है कि खाद्य मुद्रास्फीति असामान्य तरीके से निमस्तर पर बनी हुई है। समिति ने कहा कि कीमतों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा, कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों, सरकारी कर्मचारियों को एचआरए भत्ते के दूसरे दौर के आवंटन तथा रुपये की गिरावट से असर हो सकता है।
रिजर्व बैंक ने व्यापार तनाव बढ़ने, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों तथा वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों के सख्त होने को आर्थिक वृद्धि तथा मुद्रास्फीति परिदृश्य के लिए बड़ा जोखिम बताया है। उसने कहा कि इससे घरेलू स्तर पर वृहद आर्थिक परिस्थितियां आगे और कठिन होंगी।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में की गयी हालिया कटौती से मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद मिलेगी।
सरकार ने गुरुवार को पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में डेढ़ रुपये प्रति लीटर की कटौती करने की घोषणा की थी तथा तेल विपणन कंपनियों को एक रुपये प्रति लीटर का बोझ वहन करने को कहा था।
रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा कि मुख्य मुद्रास्फीति मार्च 2019 तक 4.5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और इसके ऊपर जाने का जोखिम होगा। मार्च 2020 तक यह 5.1 प्रतिशत तक जा सकता है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि कच्चे तेल का भाव 86 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 88 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाने से मुख्य मुद्रास्फीति 0.20 प्रतिशत तक ऊपर जा सकती है और वृद्धि दर 0.15 प्रतिशत तक गिर सकती है।
उसने कहा कि चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर पिछले साल के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। अगले वित्त वर्ष में यह और बढ़कर 7.6 प्रतिशत रहेगी।
रिजर्व बैंक ने कहा कि संरक्षणवाद की बढ़ती प्रवृत्तियां, मुद्रा युद्ध की आशंकाएं तथा अमेरिका में नीतियों में नरमी घरेलू आर्थिक वृद्धि के लिए सबसे बड़े जोखिम हैं।
इससे पहले समिति पिछली दो बैठकों में दरों में कुल 0.50 प्रतिशत की वृद्धि कर चुकी है।
इस बीच रुपया डॉलर के मुकाबले नये निचले स्तर तक गिरता जा रहा है। हालांकि सरकार और रिजर्व बैंक ने रुपये की गिरावट थामने के लिए कई कदम उठाये हैं लेकिन विश्लेषकों ने इन कदमों को अपर्याप्त बताया है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि रुपये की गिरावट का कारण डॉलर का मजबूत होना है। इसके अलावा कच्चे तेल की अधिक कीमतों के कारण बढ़ता व्यापार घाटा और चालू खाता घाटा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की लगातार निकासी तथा पोर्टफोलियो निवेशकों की धारणा में जोखिम बढ़ने से भी रुपया कमजोर हुआ है।attacknews.in